Wednesday, 14 December 2016

आरएसएस की स्थापना कब और क्यों हुई?

विजय दशमी ( इस बार 11 अक्टूबर) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का स्थापना दिवस है. 
इस अवसर पर संघ के गठन की आवश्यकता और इतिहास पर संक्षिप्त विवरण **********************************************************************************
सन 1921 ई. में अंग्रेजो ने तुर्की के सुल्तान को गद्दी से उतार दिया. इसके बिरोध में भारत के मुसलमानों ने खिलाफत आन्दोलन शुरू कर दिया. अंग्रेजों के सामने तो उनकी कुछ नहीं चली, तो उन्होंने देश में जगह जगह दंगे शुरू कर दिए, जिसका शिकार अंग्रेजों के बजाय बेकसूर हिन्दू बने.
मालाबार, मुल्तान, कोहाट के हिंसक दंगों में बड़ी संख्या में हिंदुओं का कत्ल हुआ और स्त्रियों की इज्जत लूटी गई. यूँ तो गांधी के राजनीतिक पटल पर आने के साथ ही मुस्लिम सांप्रदायिकता ने अपना सिर उठाना प्रारंभ कर दिया था. लेकिन खिलाफत आन्दोलन को सविनय अवज्ञा आन्दोलन से जोड़ने से और हांलात खराब हो गए.
मालाबार दंगो का हाल जानने एवं वहां के लूटे पिटे हिंदुओं की सहायता के लिए मालाबार (केरल) गये.इनमें नागपुर के प्रमुख हिंदू महासभाई नेता डॉ. बालकृष्ण शिवराम मुंजे, डॉ. हेडगेवार एवं आर्य समाज के नेता स्वामी श्रद्धानंद जी आदि प्रमुख थे. उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि हिन्दूओं एकता ही उनकी सुरक्षा कर सकती है.
नागपुर में डॉ. मुंजे ने कुछ हिंदू नेताओं की बैठक बुलाई, जिनमें डॉ. हेडगेवार एवं डॉ. परांजपे भी थे, इस बैठक में उन्होंने एक हिंदू-मिलीशिया बनाने का निर्णय लिया, उद्देश्य था “हिंदुओं की रक्षा करना एवं हिन्दुस्थान को एक सशक्त हिंदू राष्ट्र बनाना”. इस मिलीशिया को खड़े करने की जिम्मेवारी डॉ. मुंजे ने डॉ. केशव बलीराम हेडगेवार को सौंपी.
डॉ. केशव बलीराम हेडगेवार ने प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की असफल क्रान्ति और तत्कालीन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने एक अर्ध-सैनिक संगठन की नींव रखी. 28/9/1925 (विजयदशमी दिवस) को डॉ. हेडगेवार ने एक हिन्दू युवक क्लब की नींव डाली, जिसका नाम कालांतर में "राष्ट्रीय स्वंयसेवक" संघ हो गया.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (R.S.S.) एक हिंदू राष्ट्रवादी संघटन है जिसके सिद्धान्त हिंदुत्व में निहित और आधारित हैं. संघ की इस बारे में मान्यता है कि - हर वह व्यक्ति जो भारत को अपनी मातृ-भूमि व पितृ-भूमि मानता है वह "हिन्दू" है. बीबीसी के अनुसार "संघ" विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संस्थान है.
"राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ" राष्ट्रहित के कार्यों में दिनरात लगा हुआ है. संघ के महत्त्व को हिदुओं से ज्यादा हिन्दुओं के दुष्मन समझते है.संघ के हिन्दू हित के कार्यों से, कुछ हिन्दू भले ही अनजान बने रहें लेकिन हिन्दू बिरोधी अच्छी तरह से जानते हैं कि - हिन्दूओं को कोई भी नुकशान पहुंचाने से पहले उन्हें "संघ" का सामना करना पड़ेगा.
पापिस्तान बनने के बाद, अखवार "दि डान" ने 15- अगस्त -1947 को अपने सम्पादकीय में लिखा था कि - "अगर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 15-साल बाद बनता तो हम दोगुना पापिस्तान लेते लेकिन अगर कही ये 15-साल पहले बन गया होता, तो हम कभी भी पापिस्तान नहीं बना पाते" इसी से संघ के महत्त्व का पता चलता है.
प्राक्रतिक आपदा हो या भीषण दुर्घटना, सीमा पर दुश्मन देश का हमला हो या आंतरिक दुश्मनों द्वारा दंगा --फसाद, हर हालात में संघ के स्वयंसेवक अपनी सेवाएँ देने को सदैव तत्पर रहते हैं. चीन के साथ हुए युद्ध में, की गई सैनिको की सहायता को देखते हुए "नेहरु" जैसे कट्टर संघ बिरोधी भी "गणतंत्र दिवस परेड" में संघ को बुलाने को मजबूर हो गए थे.
संघ के द्वारा संस्कारित स्वयंसेवको का राजनैतिक संगठन " भारतीय जनता पार्टी" आज सारे देश के लोगों का प्रतिनधि बनकर देश को विकास के रस्ते पर ले जा रहा है. आज सारी दुनिया में भारत को वो महत्त्व मिल रहा है जो पिछले सत्तर साल में कभी नहीं मिल सका था.

No comments:

Post a Comment