Wednesday, 14 December 2016

आप्रेसन जिंजर

यूपीए सरकार की कायरता का सबूत 2011 का सर्जिकल स्ट्राइक "आप्रेसन जिंजर"
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30 जुलाई 2011 की दोपहर में कुपवाड़ा सेक्टर के गुगलधार रिज में, पाक की बॉर्डर एक्शन टीम (BAT) ने अचानक हमला कर 6 भारतीय सैनिको को मार दिया था और उनमे से 2 सैनिकों के सर काट कर ले गए थे. सेना ने इसके खिलाफ कार्यवाही करने की इजाज़त मांगी मगर UPA सरकार ने सेनाको कोई कारवाही की इजाजत नहीं दी. सैनिक गुस्से में थे मगरसरकार के निक्कमेपन से उनके हाथ बंधे हुए थे.
कुछ दिनों बाद, भारतीय सेना ने घुसपैठ कर रहे एक आतंकी को मरा. उस आतंकी के पास से एक वीडियो मिला जिसमें पापिस्तानी सैनिक और आतंकी, भारतीय सैनिकों के कटे हुए सर को सामने रखकर डांस कर रहे थे. इसके बाद स्थानीय आर्मी यूनिट में बहुत गुस्सा बढ़ गया, लेकिन सरकार की तरफ से फिर भी कोई आदेश नहीं मिला. तब सेना के, 28 डिवीज़न के चीफ मेजर जनरल यस के चक्रवर्ती ने एक गुप्त ऑपरेशन को प्लान और एक्सीक्यूट किया.
उन्होंने सैनिको को स्पष्ट कर दिया था कि - पापिस्तान की सीमा में पकडे या मारे जाने परउनको पहेचानने से इनकार कर दिया जाएगा. आप्रेसन फेल होने पर उनका कोर्ट मार्शल भी किया जा सकता है, लेकिन कोई भी सैनिक पीछे हटने को तैयार नहीं था. तब 25 सैनको की एक टीम ने LOC पार कर आतंकियों / रेंजरों पर हमला कर दिया. यह ऑपरेशन लगभग 45 मिनट चली और सैनिक 400 मीटर तक पाप सीमा में गए.
इस आप्रेसन में कई पापिस्तानी आतंकी मारे गए और भारतीय सैनिक 3 पापिस्तानी सैनिकों का सर काट कर लाये. इस सफल ऑपरेशन की जानकारी DGMO और आर्मी चीफ को दी गई. उस कटे सर के साथ भारतीय जवानों ने भी फोटो खिंचवाए, खुशियाँ मनाई. फिर और फिर उन तीनोँ सर को जमीन में गाड़ दिया. कुछ दिन बाद एक बड़ा सीनियर जनरल आया और कटे हुए सर के बारे में पूछा.
जमीन में गाड़ देने की बात सुनकर उसने कहा कि इसका डीएनए टेस्ट हो सकता और यह भारत के खिलाफ सबूत बन सकता है. तब उन सरों को जमीन से निकाल कर कर जला दिया और राख किशनगंगा नदी बहा दिया. अर्थात अगर "द हिन्दू" की इस रिपोर्ट को सही मान ले तो इसे यह साफ हो जाता है कि यह सर्जिकल-स्ट्राइक स्थानीय सेना के जवानों के गुस्से का परिणाम था, न कि इसमें सरकार का कोई रोल था.
2013 में हेमराज का सर काटने की खबर से भी सेना गुस्से में थी और फिर वैसा ही आप्रेसन करने के मूड में थी. लेकिन सरकार ने सेना को इजाज़त नहीं दी और साथ ही इस पर कड़ी नजर रखी गई कि कोई अपने आप आपरेसन न कर दे. जिस सरकार की मुखिया आतंकियों की मौत पर रोती हो वो देश के दुश्मनों के खिलाफ भला क्या कार्यवाही कर सकती है. आज मोदी की तारीफ़ होते देख उस घटना का श्रेय मांग रहे हैं , जिसका UPA ने खुद बिरोध किया था.

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