Tuesday, 13 December 2016

वीरांगना "झलकारी बाई"

वीरांगना "झलकारी बाई" के जन्मदिवस 
(22 नवम्बर) पर कोटि कोटि नमन
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झलकारी का जन्म 22 नवम्बर 1830 को झांसी के पास भोजला गाँव में हुआ था. झलकारी बाई के पिता का नाम सदोवर सिंह और माता का नाम जमुना देवी था. जब झलकारी बाई बहुत छोटी थीं तब उनकी माँ की मृत्यु के हो गयी थी और उसके पिता ने उन्हें एक लड़के की तरह पाला था. उन्हें घुड़सवारी और हथियारों का प्रयोग करने में प्रशिक्षित किया गया था.

झलकारी बचपन से ही बहुत साहसी बालिका थी. एक बार जंगल में झलकारी ने अपनी कुल्हाड़ी से तेंदुए को मार डाला था. एक अन्य अवसर पर जब डकैतों के एक गिरोह ने गाँव के एक व्यवसायी पर हमला किया तब झलकारी ने अपनी बहादुरी से उन्हें पीछे हटने को मजबूर कर दिया था. उसका विवाह रानी लक्ष्मीबाई की सेना के एक सैनिक पूरन कोरी से हुआ था.
एक बार गौरी पूजा के अवसर पर महारानी लक्ष्मीबाई उन्हें देखा. वो उनको काफी हद तक अपने जैसी लगी. रानी ने झलकारीबाई को महिला सैन्य शाखा "दुर्गा सेना" में शामिल करने का आदेश दिया. झलकारी ने यहाँ अन्य महिलाओं के साथ बंदूक चलाना, तोप चलाना और तलवारबाजी की प्रशिक्षण लिया. बाद में वे दुर्गा सेना की प्रमुख हो गईं .

जब अंग्रेजों ने झांसी पर कब्जा करने की कोशिश की तो रानी लक्ष्मीबाई ने उनका मुकाबला करने का निर्णय लिया. झांसी की सारी सेना , सेनानायक और जनता रानी के साथ आ गए. अंग्रेजो के साथ हुई लड़ाइयों में झांसी ने अंग्रेजों को करारी टक्कर दी. लेकिन एक गद्दार दूल्हेराव ने किले का एक संरक्षित द्वार ब्रिटिश सेना के लिए खोल दिया.
जब किले का पतन निश्चित हो गया तो रानी के सेनापतियों और झलकारी बाई ने उन्हें कुछ सैनिकों के साथ किला छोड़ने की सलाह दी. रानी अपने घोड़े पर बैठ कुछ विश्वस्त सैनिकों के साथ झांसी से दूर निकल गईं. झलकारी बाई ने लक्ष्मीबाई की तरह कपड़े पहने और झांसी की सेना की कमान अपने हाथ मे लेकर अंग्रेज सेना का मुकाबला करने लगी.
इधर झलकारी बाई का पति पूरन किले की रक्षा करते हुए शहीद हो गया. झलकारी ने अपने पति की मृत्यु का शोक मनाने के बजाय, ब्रिटिश सेना से टक्कर लेना जारी रखा और लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हो गई. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि झलकारी को अंग्रेजों ने गिरफ्तार कर लिया था और बाद में उनकी बहादुरी से प्रभावित होकर रिहा कर दिया.
झलकारी बाई की गाथा आज भी बुंदेलखंड की लोकगाथाओं और लोकगीतों में सुनी जा सकती है. झलकारी बाई की वीरता और वलिदान को नेताओं, कवियों अथवा सरकार द्वारा उतना सम्मान नहीं दिया गया जिसकी वो हकदार थीं. अटल जी की सरकार के समय 2001 में, झलकारी बाई के सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था.
कवि चोखेलाल वर्मा ने "झलकारी बाई" के जीवन पर एक वृहद काव्य लिखा है, वो सर्वाधिक विश्वसनीय और रोचक माना जाता है. राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने झलकारी की बहादुरी को निम्न प्रकार पंक्तिबद्ध किया है -
जा कर रण में ललकारी थी, वह झाँसी की झलकारी थी.
गोरों से लड़ना सिखा गई, है इतिहास में झलक रही, वह भारत की ही नारी थी.

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