Wednesday, 14 December 2016

"भव्य धर्म स्थलों" का महत्त्व




"भव्य धर्म स्थलों" का पर्यटन, लोक कल्याण और अर्थव्यवस्था को बढाने में योगदान ***************************************************************************************
जब भी कोई धार्मिक व्यक्ति या कोई धार्मिक संस्था कोई कार्य करने का संकल्प लेती है तो अधर्मी (नास्तिक) लोग, रोना रोने लगते हैं कि - बेकार के काम में पैसा खर्च किया जा रहा है, इसके बजाये इससे गरीबों को खाना खिलाया जाना चाहिए, हस्पताल बनाया जाना चाहिए अथवा स्कुल आदि बनाया जाना चाहिए. ऐसा कह कर वे सोंचते हैं कि - उन्होंने गरीबों की भलाई के लिए कोई बहुत महान कार्य कर दिया है.
ये अधर्मी लोग कभी खुद किसी समाजसेवी कार्य के लिए आगे नहीं आते, केवल दूसरों की आलोचना करके ही खुद अपने आपको समझदारी का तमगा दे देते हैं. जो लोग अपने नास्तिक होने का दावा करते हैं वो लोग भी कोई कम सम्पन्न नहीं है लेकिन ऐसे लोग ज्यादातर अपना धन और समय भोग-विलास के कार्यों में लगाते हैं किसी समाज सेवी कार्य के लिए नहीं.
ये लोग तीर्थस्थल के बजाये "बैकाक" आदि में रंगरलियाँ मनाने जाते हैं लेकिन किसी गरीब की भलाई का कार्य नहीं करते. अगर ये नास्तिक धर्म स्थल को पसंद नहीं करते हैं तो भी कोई बात नहीं , ये लोग चाहे तो अपना धन और समय भोग विलास के बजाय कोई हास्पिटल, स्कूल, अनाथालय, भोजनालय, ब्रद्धाश्रम, पार्क, बनबाने में लगा सकते हैं. हम धर्मी लोग बिना भगवान् का नाम लिए इस काम में भी आपकी मदद को तैयार हैं.
उन अधर्मियों को बताना चाहता हूँ कि - दुनिया भर में जितने भी निशुल्क भोजनालय (लंगर), चैरीटेबल हास्पिटल, चैरीटेबल स्कुल, आदि चल रहे हैं वो सारे के सारे केवल धार्मिक (हर धर्म के) लोगों के द्वारा ही संचालित हैं. अमृतसर स्वर्ण मंदिर (लंगर), काशी हिन्दू विश्व विद्यालय (शिक्षण संस्थान), अलीगढ़ मुस्लिम विश्व विद्यालय (शिक्षण संस्थान), कोलकाता का मदर टेरेसा का संस्थान (हास्पिटल), आदि तो विश्व विख्यात है.
इन विश्व विख्यात संस्थानों के अलाबा छोटे बड़े हजारो धार्मिक संस्थान लोक भलाई के कार्यों में लगे हुए हैं. भारत में प्राक्रतिक आपदा, युद्ध, दुर्घटना आदि के समय केवल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे धर्म सापेक्ष संस्थान ही आगे आते हैं जिनको अधर्मी दिनरात कोसने में लगे रहते हैं. प्राक्रतिक आपदाओं के समय भी यह भव्य धर्म स्थल पीधितों को आश्रय और भोजन उपलब्ध कराने का काम करते हैं.
अगर कोई अधर्मी भी कोई समाजसेवा करना चाहता है तो उसको कोई रोकता थोड़े ही है उनको भी आगे बढ़कर सेवाकार्य करके लोगों में नास्तिकता का प्रचार करना चाहिए लेकिन कुछ करें तो सही. जिन गरीब और पिछड़े हुए वर्गों का नाम लेकर यह अधर्मी , सबसे ज्यादा धर्म बिरोधी प्रचार करते हैं उन्हीं गरीब ओर पिछड़े हुए वर्गों के लोग सबसे ज्यादा इन संस्थाओं का लाभ उठाते देखे जाते हैं.
भव्य धर्म स्थलों की को बनाए जाने का भी एक व्यापक उद्देश्य है. इन भव्य धर्म स्थलों का भ्रमण करने की चाहत पर्यटन को बढाबा देती है. जम्मू, अम्रतसर, हरिद्वार, अजमेर, गया, उज्जैन, तिरुपति, साँची, शिर्डी, मदुरै, पुरी, कामाख्या आदि जैसे अनेको शहरों की तो अर्थव्यवस्था ही धार्मिक पर्यटन पर निर्भर करती है. अगर ये भव्य धर्मस्थल न हों तो करोड़ों लोगों के पास तो घर से बाहर जाकर, दुनिया देखने का कोई बहाना भी नहीं होगा.
हम जैसे लोग जो काम धंधे या नौकरी के कारण अपना मूलघर छोड़कर , कहीं और बस चुके हैं उनके लिए भी अपने गृहक्षेत्र में जाने का वहाना भी इन मंदिरों की बजह से मिलता है. अपने अपने क्षेत्र के प्रमुख धर्म स्थल पर लगने वाले मेले में शामिल होने के बहाने भी ऐसे लोग अपने गाँव घूम आते हैं. "माँ पूर्णागिरी धाम" पर लगने बाला मेला, हमारे लिए भी अपने मूलस्थल पर जाने का बहाना दे देता है.
लुधियाना की बात करू तो किसी खाली दिन आउटिंग पर परिवार को बाहर लेजाने या किसी मेंहमान के आने पर उसको लुधियाना में घुमाने कोई बहाना नहीं है. आप चाहें तो अपनी श्रद्धा के हिसाब से गोविन्द गौधाम,  माँ बगलामुखी धाम, साइधाम, नीलकंठ महादेव, कृष्णा मंदिर, दुर्गा माता मंदर, मुक्तेश्वर महादेव मंदिर, दुःख निवारण साहब, रारा साहब, आलमगीर, भैणी साहब, फिल्लौर किले की दरगाह, आदि में जाकर थोड़ा रिलीफ महसूस कर सकते हैं.
गरीब, लाचार, बीमार लोग भी दया की आस में, मंदिरों एवं अन्य धर्म स्थलों में ही जाते है किसी अधर्मी के बंगले या क्लब के आस-पास नही. क्योंकि उन गरीबो को पता है कि उनकी मदद केवल धर्मी लोग ही करेंगे. अधर्मी लोग भोग विलास के लिए पैसे को पानी की तरह बहा सकते हैं लेकिन गरीबों की मदद को कभी आगे नहीं आयेंगे . आध्य शक्राचार्य द्वारा भारत में चार दिशाओं में, चार धाम स्थापित करना उनकी इसी दूरद्रष्टि का परिणाम है.
जो लोग कभी मन्दिर-मस्जिद-गुरुद्वारे नहीं जाते हैं, वो क्या गरीबों पर पैसा खर्च करते है ?

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