"भव्य धर्म स्थलों" का पर्यटन, लोक कल्याण और अर्थव्यवस्था को बढाने में योगदान ***************************************************************************************
जब भी कोई धार्मिक व्यक्ति या कोई धार्मिक संस्था कोई कार्य करने का संकल्प लेती है तो अधर्मी (नास्तिक) लोग, रोना रोने लगते हैं कि - बेकार के काम में पैसा खर्च किया जा रहा है, इसके बजाये इससे गरीबों को खाना खिलाया जाना चाहिए, हस्पताल बनाया जाना चाहिए अथवा स्कुल आदि बनाया जाना चाहिए. ऐसा कह कर वे सोंचते हैं कि - उन्होंने गरीबों की भलाई के लिए कोई बहुत महान कार्य कर दिया है.
जब भी कोई धार्मिक व्यक्ति या कोई धार्मिक संस्था कोई कार्य करने का संकल्प लेती है तो अधर्मी (नास्तिक) लोग, रोना रोने लगते हैं कि - बेकार के काम में पैसा खर्च किया जा रहा है, इसके बजाये इससे गरीबों को खाना खिलाया जाना चाहिए, हस्पताल बनाया जाना चाहिए अथवा स्कुल आदि बनाया जाना चाहिए. ऐसा कह कर वे सोंचते हैं कि - उन्होंने गरीबों की भलाई के लिए कोई बहुत महान कार्य कर दिया है.

ये लोग तीर्थस्थल के बजाये "बैकाक" आदि में रंगरलियाँ मनाने जाते हैं लेकिन किसी गरीब की भलाई का कार्य नहीं करते. अगर ये नास्तिक धर्म स्थल को पसंद नहीं करते हैं तो भी कोई बात नहीं , ये लोग चाहे तो अपना धन और समय भोग विलास के बजाय कोई हास्पिटल, स्कूल, अनाथालय, भोजनालय, ब्रद्धाश्रम, पार्क, बनबाने में लगा सकते हैं. हम धर्मी लोग बिना भगवान् का नाम लिए इस काम में भी आपकी मदद को तैयार हैं.

इन विश्व विख्यात संस्थानों के अलाबा छोटे बड़े हजारो धार्मिक संस्थान लोक भलाई के कार्यों में लगे हुए हैं. भारत में प्राक्रतिक आपदा, युद्ध, दुर्घटना आदि के समय केवल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे धर्म सापेक्ष संस्थान ही आगे आते हैं जिनको अधर्मी दिनरात कोसने में लगे रहते हैं. प्राक्रतिक आपदाओं के समय भी यह भव्य धर्म स्थल पीधितों को आश्रय और भोजन उपलब्ध कराने का काम करते हैं.
अगर कोई अधर्मी भी कोई समाजसेवा करना चाहता है तो उसको कोई रोकता थोड़े ही है उनको भी आगे बढ़कर सेवाकार्य करके लोगों में नास्तिकता का प्रचार करना चाहिए लेकिन कुछ करें तो सही. जिन गरीब और पिछड़े हुए वर्गों का नाम लेकर यह अधर्मी , सबसे ज्यादा धर्म बिरोधी प्रचार करते हैं उन्हीं गरीब ओर पिछड़े हुए वर्गों के लोग सबसे ज्यादा इन संस्थाओं का लाभ उठाते देखे जाते हैं.

हम जैसे लोग जो काम धंधे या नौकरी के कारण अपना मूलघर छोड़कर , कहीं और बस चुके हैं उनके लिए भी अपने गृहक्षेत्र में जाने का वहाना भी इन मंदिरों की बजह से मिलता है. अपने अपने क्षेत्र के प्रमुख धर्म स्थल पर लगने वाले मेले में शामिल होने के बहाने भी ऐसे लोग अपने गाँव घूम आते हैं. "माँ पूर्णागिरी धाम" पर लगने बाला मेला, हमारे लिए भी अपने मूलस्थल पर जाने का बहाना दे देता है.
लुधियाना की बात करू तो किसी खाली दिन आउटिंग पर परिवार को बाहर लेजाने या किसी मेंहमान के आने पर उसको लुधियाना में घुमाने कोई बहाना नहीं है. आप चाहें तो अपनी श्रद्धा के हिसाब से गोविन्द गौधाम, माँ बगलामुखी धाम, साइधाम, नीलकंठ महादेव, कृष्णा मंदिर, दुर्गा माता मंदर, मुक्तेश्वर महादेव मंदिर, दुःख निवारण साहब, रारा साहब, आलमगीर, भैणी साहब, फिल्लौर किले की दरगाह, आदि में जाकर थोड़ा रिलीफ महसूस कर सकते हैं.

जो लोग कभी मन्दिर-मस्जिद-गुरुद्वारे नहीं जाते हैं, वो क्या गरीबों पर पैसा खर्च करते है ?
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