भारतीय संस्क्रति के अनूठे पर्व "श्राद्ध" के आगमन पर पूर्वजों को सादर प्रणाम
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आज 16-09-2016 से "श्राद्ध पक्ष" प्रारम्भ हो रहा है. इसमें पंद्रह दिन (एक पखवाड़ा) अपने मृत पूर्वजों को याद करने तथा उनकी आत्मिक शान्ति की प्रार्थना करने की परम्परा है. अपने पूर्वजों की वंश परम्परा के कारण ही आज हमारा यह जीवन है. श्राद्ध अपने पूर्वजों के प्रति सच्ची श्रद्धा का प्रतीक हैं. पितरों के निमित्त विधिपूर्वक श्रद्धा व्यक्त करना ही 'श्राद्ध' हैं.
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आज 16-09-2016 से "श्राद्ध पक्ष" प्रारम्भ हो रहा है. इसमें पंद्रह दिन (एक पखवाड़ा) अपने मृत पूर्वजों को याद करने तथा उनकी आत्मिक शान्ति की प्रार्थना करने की परम्परा है. अपने पूर्वजों की वंश परम्परा के कारण ही आज हमारा यह जीवन है. श्राद्ध अपने पूर्वजों के प्रति सच्ची श्रद्धा का प्रतीक हैं. पितरों के निमित्त विधिपूर्वक श्रद्धा व्यक्त करना ही 'श्राद्ध' हैं.
भारतीय जीवन पद्धति में,म्रत्यु दिवस को मनाने की परम्परा नहीं है. केवल किसी व्यक्ति के देश / धर्म के लिए शहीद होने पर ही उस विशेष दिन को अपवाद स्वरूप याद करने का प्रावधान है. पूर्वजों को श्रधांजलि देने के लिए बर्ष में 15/16 दिन निर्धारित किये गए, जिसमे सात्विक जीवन जीते हुए अपने समस्त पूर्वजों को याद करने की व्यवस्था है.
हमारे ऋषियों- मुनियों ने वर्ष में एक पक्ष को पितृपक्ष का नाम दिया, जिस पक्ष में हम अपने पितरेश्वरों का श्राद्ध, तर्पण, मुक्ति हेतु विशेष क्रिया संपन्न कर उन्हें अर्ध्य समर्पित करते हैं. इस अवसर पर अपने पूर्वजों का सम्मान करते हुए उनकी याद में तर्पण और पिण्ड, दानादि किया जाता है. आज 16-09-2016 से यह पित्रपक्ष प्रारम्भ हो रहा है.
इस पितृपक्ष में अधिकाँश हिन्दू अपने पूर्वजों का सम्मान करते हुए सात्विक जीवन जीते हैं. मांस-मदिरा का सेवन बिलकुल बंद कर देते हैं. इस अवसर पर ब्राह्मणों को भोजन कराने की परम्परा रही है, लेकिन अब बहुत से लोगों ने इसके स्थान पर जन -सामान्य के लिए सार्वजनिक लंगर लगाना प्रारम्भ कर दिया है.
ऐसा समझा जाता था कि पितर लोग जीवित लोगों को लाभ एवं हानि दोनों दे सकते हैं, इसलिए उनको प्रसन्न करने के लिए श्राद्ध करना चाहिए. चाहे जो भी हो लेकिन अपने पूर्वजों को याद करते हुए सात्विक जीवन जीने और अच्छे कार्य करने की प्रेरणा देने वाला महापर्व "श्राद्ध" हमारी एक अत्यंत अनूठी परम्परा है.
"श्राद्ध" केवल अपने वंश के पूर्वजों को ही याद करने का पर्व नहीं है बल्कि, धर्म और देश पर अपना जीवन न्योछावर करने वाले, हमारे जीवन आसान बनाने वाली पद्धतियों का निर्माण करने वाले, अपने जीवन के आदर्श से हमारा मार्गदर्शन करने वाले, आदि सभी संतों और महापुरुषों को सम्मान के साथ याद करने का महापर्व है.
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