भारत माँ की बहादुर बेटी "नीरजा" के शहीदी दिवस (5-सितंबर) पर कोटि कोटि नमन *********************************************************************************
भारत माँ की बहादुर बेटी "नीरजा भनोट" का जन्म "7-सितंबर - 1964" को चंडीगढ के "हरीश भनोत" के यहाँ हुआ था. पतली दुबली नाजुक सी नीरजा को देखकर कोई नहीं कह सकता था कि एक दिन उसे भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान "अशोक चक्र" मिलेगा. बचपन से ही उसकी आकाश को छूने की तमन्ना थी, जो उसने 16 जनवरी 1986 एयरलाइन पैन एम "एयर होस्टेस" बन पूरी की.
भारत माँ की बहादुर बेटी "नीरजा भनोट" का जन्म "7-सितंबर - 1964" को चंडीगढ के "हरीश भनोत" के यहाँ हुआ था. पतली दुबली नाजुक सी नीरजा को देखकर कोई नहीं कह सकता था कि एक दिन उसे भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान "अशोक चक्र" मिलेगा. बचपन से ही उसकी आकाश को छूने की तमन्ना थी, जो उसने 16 जनवरी 1986 एयरलाइन पैन एम "एयर होस्टेस" बन पूरी की.
5 सितम्बर-1986 को "पैन एम 73" यात्री विमान करांची, पाकिस्तान के एयरपोर्ट पर अपने पायलेट का इंतजार कर रहा था. विमान में लगभग 400 यात्री बैठे हुये थे, तभी अचानक 4-इस्लामी आतंकवादियों ने पूरे विमान को गन प्वांइट पर ले लिया. उन आतंकवादियों ने पाकिस्तानी सरकार पर दबाव बनाया कि - वो जल्द से जल्द विमान में पायलट को भेजे , किन्तु पाकिस्तानी सरकार ने मना कर दिया.
तब आतंकियों ने विमान परिचारिकाओं से कहा कि - वो सभी यात्रियों के पासपोर्ट एकत्रित करे, ताकि वो किसी अमेरिकन को मारकर पाकिस्तान पर दबाव बना सके. नीरजा ने सभी यात्रियों के पासपोर्ट एकत्रित किये और विमान में बैठे 5 अमेरिकी यात्रियों के पासपोर्ट छुपाकर बाकी सभी के पासपोर्ट आतंकियों को सौंप दिये. उसके बाद आतंकियों ने एक ब्रिटिश नागरिक को विमान के गेट पर लाकर पाकिस्तानी सरकार को धमकी दी कि -यदि पायलट नहीं भेजे तो वह उसको मार देगे.
किन्तु नीरजा ने उस आतंकी के साथ धैर्यपूर्ण ढंग से बात करके उस ब्रिटिश नागरिक को भी बचा लिया. धीरे - धीरे 16 घंटे बीत गये और पाकिस्तान सरकार और आतंकियों के बीच बातचीत का कोई नतीजा नहीं निकला. नीरजा को पता लग चुका था कि आतंकवादी सभी यात्रियों को मारने की सोच चुके हैं. अचानक नीरजा को ध्यान आया कि - प्लेन में फ्यूल किसी भी समय समाप्त हो सकता है और उसके बाद अंधेरा हो जायेगा.
नीरजा ने अपनी सहपरिचायिकाओं को यात्रियों को खाना बांटने के लिए कहा और साथ ही विमान के आपातकालीन द्वारों के बारे में समझाने वाला कार्ड भी देने को कहा. उसने सर्वप्रथम खाने के पैकेट आतंकियों को ही दिये क्योंकि उसका सोचना था कि भूख से पेट भरने के बाद शायद वो शांत दिमाग से बात करे. नीरजा ने जैसा सोचा था वही हुआ. प्लेन का फ्यूल समाप्त हो गया और चारो ओर अंधेरा छा गया.
नीरजा तो इसी समय का इंतजार कर रही थी उसने तुरन्त विमान के सारे आपातकालीन द्वार खोल दिये. योजना के अनुरूप ही यात्री तुरन्त उन द्वारों के नीचे कूदने लगे . वहीं आतंकियों ने भी अंधेरे में फायरिंग शुरू कर दी जिसमे कुछ यात्री घायल भी हो गये. नीरजा ने अपने साहस से लगभग सभी यात्रियों को बचा लिया था और अब विमान से भागने की बारी नीरजा की थी किन्तु तभी उसे बच्चों के रोने की आवाज सुनाई दी .
दूसरी ओर पाकिस्तानी सेना के कमांडो भी विमान में आ चुके थे. उन्होंने तीन आतंकियों को मार गिराया. मगर एक आतंकी बच गया था. तब तक नीरजा उन तीन बच्चों को खोज चुकी थी और उन्हें लेकर विमान के आपातकालीन द्वार की ओर बढ़ने लगी कि अचानक बचा हुआ चौथा आतंकवादी उसके सामने आ खड़ा हुआ. नीरजा ने बच्चों को आपातकालीन द्वार की ओर धकेल दिया और स्वयं उस आतंकी से भिड़ गई.
लेकिन कहाँ वो निर्दयी आतंकवादी और कहाँ वो नाजुक सी लड़की, आतंकी ने कई गोलियां उसके सीने में उतार डाली. मरते मरते भी नीरजा उस आतंकी को कसकर पकडे रही और आतंकी को सम्हलने का मौक़ा नही दिया. उस चौथे आतंकी को भी पाकिस्तानी कमांडों ने मार गिराया किन्तु वो नीरजा को न बचा सके. नीरजा अगर चाहती तो वो आपातकालीन द्वार से सबसे पहले भाग सकती थी किन्तु वो भारत माता की सच्ची बेटी थी.
नीरजा ने पहले आतंकियों से बात करके उनका मन बदलने की कोशिश की, फिर अमरीकियों के पासपोर्ट छुपाकर उन अमरीकियों को बचाया. खाना खिलाने के बहाने समय खराब कर फ्यूल ख़त्म होने का इन्तजार किया और अँधेरा होते ही आपातकालीन द्वार खोल कर यात्रियों को भागने का रास्ता दिया. उसके बाद भी स्वयं को बचाने के स्थान पर बच्चॊ की खातिर, नीरजा आतंकियों से उलझ गयी और अपना बलिदान दे दिया .
"भारत सरकार" ने नीरजा को सर्वोच्च नागरिक सम्मान "अशोक चक्र" प्रदान किया. उसकी बहादुरी पर "पाकिस्तान की सरकार" ने नीरजा को "तमगा-ए-इन्सानियत" प्रदान किया. उनके सम्मान में भारतीय डाक-तार विभाग ने वर्ष 2004 में एक डाकटिकट जारी किया. मैं नीरजा को अपने समय की सबसे बड़ी नायिका मानता हूँ, जिसने इस्लामी आतंकियों से 400 यात्रियों को जान बचाते हुए, अपना जीवन बलिदान कर दिया.
नीरजा के सम्मान में एक फिल्म भी बनी है, जिसमे सोनम कपूर ने नीरजा की भूमिका निभाई है. गुणवत्ता के हसाब से ज्यादा अच्छी फिल्म न होने के बाबजूद दर्शकों ने इसको सुपरहिट कराया क्योंकि उनको नीरजा से प्रेम था.
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