स्वतंत्रता सेनानी वीरांगना "कनकलता बरुआ" के शहीदी दिवस पर कोटि कोटि नमन
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मुम्बई के कांग्रेस अधिवेशन में 8 अगस्त, 1942 को ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित हुआ. यह ब्रिटिश सरकार के विरूद्ध देश के कोने-कोने में फैल गया. क्रांतिकारियों ने 20 सितंबर, 1942 ई. को तेजपुर के गहपुर थाने पर तिरंगा फहराया जाने का निर्णय लिया. गहपुर थाने की ओर चारों दिशाओं से जुलूस उमड़ पड़ा था
कनकलता आत्म बलिदानी दल की सदस्या थीं और तिरंगा हाथ में लेकर अपने दल का नेतृत्व कर रही थीं. ‘करेंगे या मरेंगे’ और ‘स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’, जैसे नारों से आकाश को गुँजाती हुई, वे थाने की ओर बढ़ चलीं. थाने का प्रभारी पी. एम. सोम जुलूस को रोकने के लिए सामने आ खड़ा हुआ.

इसके बावजूद भी कनकलता आगे बढ़ीं और कहा- "हमारी स्वतंत्रता की ज्योति बुझ नहीं सकती। तुम गोलियाँ चला सकते हो, पर हमें कर्तव्य विमुख नहीं कर सकते." इतना कह कर वह ज्यों ही आगे बढ़ी, पुलिस ने जुलूस पर गोलियों की बौछार कर दी. कनकलता गोली लगने पर गिर पड़ी, किंतु उसके हाथों का तिरंगा झुका नहीं.
उनका साहस व बलिदान देखकर युवकों का जोश और भी बढ़ गया. कनकलता के हाथ से तिरंगा लेकर गोलियों के सामने सीना तानकर वीर बलिदानी युवक आगे बढ़ते गये. एक के बाद एक गिरते गए, किंतु झंडे को न तो झुकने दिया न ही गिरने दिया. उसे एक के बाद दूसरे हाथ में थामते गए और अंत में "रामपति राजखोवा" ने थाने पर झंडा फहरा दिया गया.

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