Wednesday, 14 December 2016

क्रांतिकारी "श्याम कृष्ण वर्मा"

महान क्रांतिकारी "श्याम कृष्ण वर्मा" जी के जन्म दिवस पर कोटि कोटि नमन
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श्याम कृष्ण वर्मा जी का जन्म 4 अक्टूबर1857 को, गुजरात प्रान्त के माण्डवी कस्बे में हुआ था. उनके पिता का नाम श्रीकृष्ण वर्मा था. वे स्वामी दयानंद सरस्वती और लोकमान्य तिलक से बहुत प्रभावित थे. वे क्रान्तिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेने लगे थे. इसलिए उनके पिता ने वकालत वकालत की पढ़ाई करने के लिए लन्दन भेज दिया.
वे पहले भारतीय थे, जिन्हें ऑक्सफोर्ड से एम॰ए॰ और बार-ऐट-ला की उपाधियाँ मिलीं थीं. पुणे में दिये गये उनके संस्कृत के भाषण से प्रभावित होकर मोनियर विलियम्स ने वर्माजी को ऑक्सफोर्ड में संस्कृत का सहायक प्रोफेसर बना दिया था. उच्च शिक्षा और अच्छे पद के बाबजूद उनका लन्दन में मन नहीं लगा और 1888 में वे भारत आ गए.
वे अजमेर में वकालत करने लगे. अजमेर में वकालत के दौरान उन्होंने स्वराज पार्टी के लिये काम करना शुरू कर दिया. इसके अलावा मध्यप्रदेश के रतलाम और गुजरात के जूनागढ़ की रियासतों में कुछ समय दीवान रहकर भी उन्होंने जनहित के अनेको काम किये. उनको लगा कि लन्दन के शिक्षित भारतीयों को आजादी के लिए प्रेरित करना चाहिए.
1897 में वे पुनः इंग्लैण्ड चले गये. उन्होंने लन्दन में इण्डिया हाउस की स्थापना की जो इंग्लैण्ड में भारतीयों छात्रों के परस्पर मिलन एवं विविध विचार-विमर्श का एक प्रमुख केन्द्र था. उस समय यह संस्था क्रान्तिकारी छात्रों के जमावड़े के लिये प्रेरणास्रोत सिद्ध हुई. महान क्रान्तिकारी शहीद मदनलाल ढींगरा उनके प्रिय शिष्यों में से एक थे.
मदनलाल ढींगरा के नामपर उन्होंने एक छात्रवृत्ति शुरू की थी, जिसको बाद में अंग्रेजों ने बंद करा दिया था. वीर सावरकर ने भी उनकी प्रेरणा से अपना प्रशिद्ध ग्रन्थ 1857- प्रथम स्वातंत्र्य समर लिखना प्रारम्भ किया. देश को दुसरी क्रान्ति के लिए पुनः तैयार करने में सावरकर और सावरकर के इस ग्रन्थ का अतुलनीय योगदान रहा था.
उन्होंने लॉर्ड कर्जन की ज्यादतियों के विरुद्ध लगातार संघर्ष किया. उन्होंने इंग्लैण्ड से मासिक समाचार-पत्र "द इण्डियन सोशियोलोजिस्ट" निकाला, जिसे आगे चलकर जिनेवा से भी प्रकाशित किया गया. सभी तत्कालीन क्रान्तिकारी उनका सम्मान करते थे.1918 के बर्लिन और इंग्लैण्ड के विद्या सम्मेलनों में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया था.
31 मार्च 1930 को जिनेवा के एक अस्पताल में वे अपना नश्वर शरीर त्यागकर चले गये. उनका शव अन्तर्राष्ट्रीय कानूनों के कारण भारत नहीं लाया जा सका और वहीं उनकी अन्त्येष्टि कर दी गयी. आजाद भारत में जब गुजरात में नरेंद्र मोदी मुख्य्मन्त्री थे तब गुजरात सरकार ने काफी प्रयत्न करके जिनेवा से उनकी अस्थियाँ भारत मँगवायीं.
उनके जन्म स्थान पर, गुजरात सरकार ने "श्रीश्यामजी कृष्ण वर्मा मेमोरियल" बनबाया है जिसमे उनकी अस्थियाँ भी रखी गई हैं. कच्छ जाने वाले सभी देशी विदेशी पर्यटकों के लिये "माण्डवी का क्रान्ति-तीर्थ" एक उल्लेखनीय पर्यटन स्थल बन चुका है. जहां उनके अस्थि-कलशों का दर्शन करने दूर-दूर से देशभक्त आते हैं

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