Tuesday, 13 December 2016

राजा महेंद्र प्रताप सिंह

क्रांतिकारी राजा महेंद्र प्रताप सिंह के जन्मदिन पर कोटि कोटि नमन
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बैसे तो अंग्रेजी शासन के समय अधिकांश रियासतों के राजा अंग्रेजों के पिट्ठू थे और अंग्रेजों को खुश करने के लिए हिन्दुस्थानियों पर अत्याचार किया करते थे. लेकिन क्रांतिकारी राजा महेंद्र प्रताप जाट, अपने परिवार से अलग क्रांतिकारी बिचारधारा के थे. उन्होंने देश को आजाद कराने और शैक्षिक संस्थाओ को सहयोग देने में अपना बड़ा योगदान दिया था.
हाथरस के राजा गोविन्दसिंह ने 1857 के स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजों का साथ दिया था. क्रांतिकारियों के दमन के बाद अंग्रेजों ने उन्हें, राजा की पदवी के साथ 50 हजार रुपये नकद और कुछ गाँवों की जागीर दी. राजा गोविन्दसिंह की 1861 में निसंतान मृत्यु हो जाने के बाद, उनकी रानी साहबकुँवरि ने हरनारायण सिंह को गोद ले लिया.
राजा हरनारायणसिंह भी अंग्रेजों के भक्त थे. राजा हरनारायण सिंह के भी कोई पुत्र नहीं हुआ तो उन्होंने मुरसान के राजा घनश्याम सिंह के तीसरे पुत्र महेन्द्र प्रताप को गोद ले लिया. महेन्द्र प्रताप का जन्म 1 दिसम्बर 1886 को मुरासान में हुआ था. उनका विवाह जींद (हरियाणा) रियासत की राजकुमारी के साथ बहुत ही धूमधाम से हुआ था.
बैभवपूर्ण जीवन जीते हुए भी वह अन्य तत्कालीन राजाओं की तरह नही थे. प्रारम्भ में अंग्रेजों से उनका कोई ख़ास बिरोध नहीं था. प्रथम विश्वयुद्ध के समय जर्मन के पक्ष में लेख लिखने के कारण उन पर 500 रुपये का दण्ड किया गया, जिसे उन्होंने भर तो दिया लेकिन देश को आजाद कराने की उनकी इच्छा प्रबलतम हो गई.
उसके बाद उन्होंने आर्यसमाजी नेता स्वामी श्रद्धानंद जी के ज्येष्ठ पुत्र हरिचंद्र को साथ लेकर विदेश यात्राएं कीं और जर्मनी के शासक से भेंट कर हर संभव सहायता देने का वचन दिया. वहाँ से वह अफगानिस्तान गये और अफगान के बादशाह से मुलाकात की. दिसम्बर 1915 में काबुल से भारत को आजाद घोषित कर, अस्थाई सरकार की घोषणा की.
उन्होंने "आजाद हिन्द फ़ौज" का गठन किया हालांकि उनकी फ़ौज का बाद में बनी "रास विहारी बोस" / "सुभाष चन्द्र बोस" वाली आजाद हिन्द फ़ौज से कोई सम्बन्ध नहीं था. अफगानिस्तान के साथ मिलकर आजाद हिन्द फ़ौज ने अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया. भारत को आजाद घोषित कर उन्होंने स्वयं को भारत का प्रथम राष्ट्रपति घोषित किया.
उसके बाद वे रूस गये और लेनिन से मिले परंतु लेनिन ने कोई सहायता नहीं की. 1920 से 1946 तक वे विदेशों में भ्रमण कर आजादी की अलख जगाते रहे. उनके बाप-दादा भले ही अंग्रेजों के भक्त रहे हों, मगर उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की जंग में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. वे आजाद भारत में लोकसभा के सदस्य भी रहे.
"राजा महेंद्र प्रताप सिंह" पूरी तरह से धर्म-निरपेक्ष थे और हिन्दू मुस्लिम एकता के पक्षधर थे. उन्होंने "अलीगढ़ मुस्लिम विश्व विद्यालय" के विस्तार के लिए जमीन दान में दी थी. इसके अलावा "वृन्दावन" में 80 एकड़ का एक बाग़ "आर्य प्रतिनिधि सभा" को दान में दे दिया था, जिसमें "आर्य समाज गुरुकुल" और "राष्ट्रीय विश्वविद्यालय" है.
वे जातिगत छुआछूत के घोर बिरोधी और भारतीयों को उच्च शिक्षा देने के पक्षधर थे और इसीलिए शैक्षिक संस्थाओं को हमेशा मदद दिया करते थे. उनकी राष्ट्रवादी सोंच के कारण कांग्रेस में रहने के बाबजूद कुछ कांग्रेसी नेता उन पर RSS का एजेंट होने का आरोप लगाते रहते थे और इसी कारण उनको वो सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार थे.
एक बार फिर उनके जन्मदिवस (1-दिसंबर) पर कोटि कोटि नमन ..

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