
गुरु तेग बहादुर जी का जन्म बुधवार 18 अप्रैल 1621 को पंजाब के अमृतसर नगर में हुआ था. सिखों के सातवे गुरु, गुरु हरगोविंद जी उनके पिता थे. आठवें गुरु गुरु हरकिशन जी की असमय म्रत्यु के बाद उनको नवम गुरु बनाया गया. उनके पुत्र गुरु गोविन्द सिंह दशवे गुरु बने थे. धर्म एवं मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है.
उनके समय में दिल्ली में जालिम मुग़ल सम्राट औरंगजेब का राज था. औरंगजेब हिन्दुस्थान को इस्लामी देश बनाना चाहता था उसने मंदिरों को तोड़ने और मूर्ती पूजा बंद करवाने के फरमान दिए थे. उसके आदेश के अनुसार कितने ही मंदिर एवं अन्य धर्मो के पवित्र स्थल तोड़े गए. मंदिरों में गायें काटीं गयीं तथा इस्लाम कबूल न करने वालों को भयानक यातनाये देकर मारा गया. देश में अनेकों जगह धर्मवीरों ने औरंगजेब का मुकाबला किया.

उस समय की उक्ति है कि 'सवा मन यज्ञोपवीत रोजाना उतरवा कर औरंगजेब रोटी खाता था. सर्वाधिक जुल्म कश्मीर, पंजाब, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में हो रहे थे. मुघलों के जुल्म से त्रस्त होकर कुछ कश्मीरी पंडित गुरु तेगबहादुर जी के पास आए और उन्हें बताया कि किस प्रकार इस्लाम को स्वीकार करने के लिए उनपर अत्याचार किया जा रहा है और अमानवीय यातनाएँ दी जा रही हैं. तथा महिलाओं को बे-इज्ज़त किया जा रहा है.
गुरु तेगबहादुर जी ने पंडितों से कहा कि- आप जाकर औरंगज़ेब से कह दें कि - यदि गुरु तेगबहादुर ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया तो उनके बाद हम भी इस्लाम धर्म ग्रहण कर लेंगे और यदि आप गुरु तेगबहादुर जी से इस्लाम धारण नहीं करवा पाए तो हम भी इस्लाम धर्म धारण नहीं करेंगे'. गुरु जी की यह बात सुनकर औरंगजेब क्रोधित हो गया और उसने गुरु जी को बन्दी बनाये जाने के लिए आदेश दे दिये.

गुरु तेग बहादुर के साथ साथ उसने भाई सती दास, भाई मती दास और भाई दयाला को भी गिरफ्तार कर लिया और उनको इस्लाम अथवा भयानक मौत में से एक को चुनने को कहा. जब औरंगजेब की सभी धमकियाँ बेकार गयीं, तो उसने काजी से पूछा, "बताओ इनको क्या सजा दी जाये ?" काजी ने कुरान का हवाला देकर हुक्म सुनाया कि 'इन काफिरों को इस्लाम ग्रहण न करने के आरोप में तडपा तडपा कर मार दिया जाए.
औरंगजेब ने पहले भाई मतिदास को दो खम्बो में बांधकर आरे से चिरवा दिया, फिर एक बड़ी देग में पानी भरकर नीचे आग लगाकर, उस देग में भाई दयाला को उबाल कर मार दिया, तदुपरांत भाई सती दास के शरीर पर रूई बाँध कर आग लगाकर मार दिया. शिष्यों को मारकर गुरु तेगबहादुर जी को ड़राने की कोशिश की गयी, उसने पुनः गुरु जी के सामने मृत्यु और इस्लाम में से एक को चुन लेने का विकल्प प्रस्तुत किया, पर वे नहीं माने.

तब औरंगजेब ने आगबबूला होकर, गुरु तेगबहादुर जी का शीश काटने का हुक्म ज़ारी कर दिया. औरंगजेब के आदेशानुसार, पाँच दिन तक अमानवीय यंत्रणायें देने के उपरान्त, बीच चौक पर गुरु जी का सिर काट दिया गया. लोगों के मन में दहसत फैलाने के विचार से औरंगजेब ने गुरुजी के पावन शरीर के चार टुकड़े कर राजधानी दिल्ली के चार प्रमुख दरवाजों दिल्ली, अजमेरी, लाहोरी, और कश्मीरी पर लटकाने का हुकुम दिया.
लेकिन तभी अचानक तेज अंधड़ आ जाने से बहा कुछ अफरा-तफरी मच गई. इसका लाभ उठा कर भाई जैता जी गुरुजी के शीश को उठाकर ले जाने में कामयाब हो गए. उन्होंने गुरुजी के शीश को कपडे में लपेटकर, गुरु गोविन्द सिंह के पास आनंदपुर साहिब पहुंचाया जहाँ उनका बिधिवत संस्कार किया. इसी अफरा-तफरी के बीच लक्खीशाह नाम का एक व्यापारी गुरुजी के धड़ को रुई एवं अन्य सामान के बीच छुपाकर फरार हो गया.

लक्खीशाह जानते थे कि - गुरु जी का संस्कार करना मुश्किल है इसलिए उसने गुरुजी के धड़ को अपने घर में रूई में लपेटकर, अपने घर को ही आग लगा दी और दिखाबे के लिए बचाओ बचाओ का शोर करने लगा. इस सेवा और त्याग के लिए उनका नाम सदा के लिए इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है. उस स्थान पर गुरुद्वारा रकाबगंज बनाया गया है जो गुरुजी के बलिदान के साथ लक्खी शाह के त्याग की भी याद दिलाता है.
गुरु तेगबहादुरजी की याद में उनके 'शहीदी स्थल' पर गुरुद्वारा बना है, जिसका नाम गुरुद्वारा 'शीश गंज साहिब' है. गुरु तेग बहादुर के शहीदी दिवस पर गुरु जी के साथ, भाई सती दास, भाई मती दास, भाई दयाला जी की शहादत को भी नमन. उनके अलावा भाई जैता जी और भाई लक्खीशाह के साहस, सूझबूझ और त्याग को प्रणाम जिन्होंने गुरु जी के पवित्र शरीर को अपमानित होने से बचाया.
अपनी धर्मनिरपेक्षता के नाम पर आज अपने ही धर्म का मखौल उड़ने वाले लोगों को, इन रोंगटे खड़े कर देने वाली इतिहास की सच्ची घटनाओं को पढकर, अपनी ऑंखें खोल लेनी चाहियें. उसके बाद भी अगर ये लोग न मानें तो हमें समझ लेना होगा की ये तथाकथित सेकुलर किस के मानस-पुत्र हैं ?
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