Tuesday, 13 December 2016

शहीद यदुनाथ सिंह

परमवीर चक्र विजेता, शहीद यदुनाथ सिंह के जन्मदिवस (21 नवम्बर) पर कोटि कोटि नमन
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नायक यदुनाथ सिंह का जन्म 21 नवम्बर 1916 को शाहजहाँपुर (उत्तर प्रदेश) के गाँव खजूरी में हुआ था. उनके पिता बीरबल सिंह एक किसान थे. उनका मन पढ़ाई के बजाय खेलकूद में ज्यादा लगता था. वे ऐसे खेल खेलना ज्यादा पसंद करते थे. जो जोखिम भरे होते थे. वे बचपन से ही हनुमान जी के भक्त थे. उनके मित्र भी उनको हनुमान कह कर बुलाते थे.

26 वर्ष की आयु में उन्होंने सेना में प्रवेश किया, उन्हें राजपूत रेजिमेंट में लिया गया. उनको 1947 में लान्स नायक के रूप में तरक्की मिली. देश आजाद होने के साथ बने पापिस्तान ने कश्मीर पर कब्जा करने की नीयत से हमला कर दिया था. उस समय वे "तनधार: में अपनी टुकड़ी का नेत्रत्व कर रहे थे. 6 जनवरी 1948 को एक पापिस्तानी टुकड़ी ने हमला कर दिया.
पापिस्तानी सेना नौशेरा पर कब्जा करना चाहती थी लेकिन यदुनाथ की टुकड़ी ने कडा मुकाबला किया और पापिस्तानी टुकड़ी को वहीँ रोक दिया. उस दिन उनके साथ केवल 8 जवान थे और पापिसातनी टुकड़ी में सैनको की संख्या सौ से ज्यादा थी. यदुनाथ अपनी टुकड़ी की जमावट ऐसी तैयार की, कि हमलावरों को हार कर पीछे हटना पड़ा.
6 फरवरी 1948 पाकिस्तानी फौजों ने बहुत बड़ी बटालियन के साथ हमला कर दिया. यदुनाथ सिंह की छोटी सी टुकड़ी उनका डट कर सामना करने लगी. उन्होंने रेडियों पर ब्रिगेडियर उस्मान को सारे हालात बता दिए. ब्रिगेडियर उस्मान ने उनको कहा कि - 3 पैरा राजपुत की टुकड़ी जल्द ही तनधार की तरफ भेज रहे हैं लेकिन तब तक किसी तरह दुश्मन को रोकोे.
वे मुकाबला करने लगे लेकिन धीरे धीरे उनके सभी सैनिक जख्मी होकर मुकाबला करने लायक नहीं रह गए. तभी अचानक उन्होंने एक घायल सैनिक की स्टेनगन उठाली और गोलियां चलाते हुए खुले मैदान में आ गए. इस अचानक हमले से दुश्मन घबरा गया. उनको इस तरह अकेले लड़ते देख उनके घायल सैनिकों में जोश का संचार हुआ और वह उठ खड़े हुए.
उन्होंने कई पापिस्तानी सैनिक मार दिए मगर उनको भी दुश्मन की कई गोलियां लग गईं. मगर वे वैसे ही मुकाबला करते रहे. तभी एक गोली उनके सर में लगी और रणभूमि हमेशा के लिए सो गये. इस बीच 3 पैरा राजपुत की टुकड़ी बहां पहुच गई और उसने पापिस्तानियों को वापस भागने पर मजबूर कर दिया. नौशेरा पर कब्जे का उनका मंसूबा ध्वस्त हो गया.
यदुनाथ सिंह को असाधारण वीरता के लिए मरणोपरांत परमवीर चक्र प्रदान किया गया.

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