Wednesday, 14 December 2016

भारत का राष्ट्रीय ध्वज

संघ को बदनाम करने के लिए कांग्रेसी और वामपंथी कैसे कैसे झूठ बोलते है इसकी मिशाल उनके एक फोटो कमेन्ट से मिलती है. इस फोटो में वे लोग यह कहकर संघ की आलोचना कर रहे हैं कि- 1929 में कांग्रेस के आव्हान पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया जा रहा था तो डा. हेडगेवार ने शाखाओं में भगवा ध्वज पूजने का आदेश दिया था.
पहली बात तो यह कि - उस समय तिरंगा झंडा राष्ट्रीय ध्वज नहीं था. तिरंगा झंडा को 22 जुलाई, 1947 को राष्ट्रीय ध्वज स्वीकार किया गया था और 15 अगस्त 1947 अधिकृत रूप से अंगीकृत किया गया था. हालाकि उस समय भी भारत की प्राचीन परम्परा को मानने वाले लोग, राष्ट्रीय ध्वज के रूप में भगवा ध्वज ही चाहते थे.
1921 कांग्रेस ने जिसे अपना झंडा बनाया था "पिंगली वेंकैया" ने डिजाइन किया था. इसमें दो रंग थे लाल रंग हिन्दुओं के लिए और हरा रंग मुस्लिमों के लिए. बाद में गांधी की सलाह पर इसमें ऊपर सफ़ेद रंग भी मिला दिया. 1929 में भी कांग्रेस का यही ध्वज था. ऊपर सफ़ेद, बीच हरा तथा सबसे नीचे लाल और बीच में चरखे का रेखाचित्र .
वर्ष 1931 में उस झंडे को बदल दिया गया. इसमें उपर केसरिया, बीच में सफ़ेद तथा सबसे नीचे हरा रंग था और मध्य में चरखा बना हुआ था. कांग्रेस ने इसको राष्ट्रीय ध्वज बनाने के लिए प्रस्तावित किया. लेकिन 22 जुलाई, 1947 को इसमें से चरखा हटाकर बीच में अशोक चक्र बनाया गया और राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार किया गया.
अब आती है बात 1929 में शाखा में भगवा ध्वज लगाने की तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में अपने संगठन का ध्वज "भगवा ध्वज" स्वीकार किया था जो भारत की हजारों साल पुरानी पहेचान है. पौराणिक काल से लेकर ऐतहासिक काल तक सभी देशभक्तों ने भगवा ध्वज को हाथ में लेकर स्वाधीनता की लड़ाई लड़ी और शहीद हुए थे.
"मेरा रंग दे बसन्ती चोला" क्रांतिकारियों का मूलमन्त्र हुआ करता था. अंग्रेजों द्वारा घोषित राष्ट्रीय ध्वज को छोड़कर भारत के पारम्परिक "भगवा ध्वज" को फहराना उस समय बहुत ही साहसिक बात थी. मुघल थे या अंग्रेज सभी ने भारत की इस प्राचीन पहेचान को मिटाने का प्रयास किया था लेकिन देशभक्तों ने इसे ज़िंदा रखा.
भारत की प्राचीन पहचान भगवा ध्वज थी लेकिन मुस्लिम्स और भारतीय मूल के ईसाईयों को जोड़ने के लिये हरा और सफ़ेद रंग शामिल किया गया था. लेकिन ईसाईयों द्वारा अंग्रेजों का साथ देने और मुसलमानों द्वारा अलग पापिस्तान लेने के कारण अधिकाँश परम्परावादी भारतीय चाहते थे कि - भारत का राष्ट्रीय ध्वज भगवा हो.
लेकिन जब "तिरंगा" राष्ट्रीय ध्वज घोषित हो गया तो सभी ने इसको स्वीकार कर लिया. अब रही बात शाखा में इसको न लगाने की तो शाखा तो क्या किसी भी निजी संस्थान द्वारा इसका उपयोग नहीं किया जा सकता है. एक झंडा संहिता और इसके अनुसार आम आदमी अपने घर या संस्थान में केवल 15 अगस्त और 26 जनवरी को ही फहरा सकता है.
और हाँ गुलाम भारत में और भी कई झंडे प्रस्तावित हुए थे जिनमे 1904 भगिनी निवेदिता द्वारा बनाया, 1907 मैडम कामा द्वारा और 1917 में डॉ॰ एनी बीसेंट द्वारा बनाया गया झंडा प्रमुख है. उसके अलावा महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी और लक्ष्मीबाई को अपना आदर्श मानने वाले क्रांतिकारी भगवा ध्वज को ही अपना ध्वज मानते थे.

1 comment:

  1. to iska matlab 15 august 26 jan ko 1947 se aaj tak tiranga fahraya jata raha? sab jhooth bol rahe hai tiranga sangh niyamanusaar fahrata raha her saal..... lol

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