Wednesday, 14 December 2016

मदर टेरेसा का सच

अंग्रेजों का मानना था कि - यदि भारतीयों का धर्म परिवर्तन कराकर ईसाई बना लिया जाए तो, स्वाधीनता संग्राम खुद व खुद ख़त्म हो जाएगा. अंग्रेजों ने पूरे भारत में अनेकों जगह खासकर SC / ST बहुल इलाकों में अनेको मिशनरियां स्थापित कीं जो गरीब लोगों को बहलाकर / धमकाकर / लालच देकर उनका धर्म परिवर्तन कराया करती थी.
उनमे से ही एक थी तथाकथित मदर "टेरेजा". 1910 में युगोस्लाविया में जन्मी मदर टेरेसा 1929 में भारत आकर कोलकाता में बस गई थी. उनका मुख्य काम सेवा की आड़ में भारतीयों का धर्म परिवर्तनं कर उनको इसाई बनाना था. वे निरंतर इस काम में लगी रहीं. देश आजाद हो जाने के बाद भी उन्होंने, वापस जाने के बजाय, धर्म परिवर्तन का मिशन चलाये रखा.
पेशे से डॉक्टर और कुछ समय मदर टेरेसा की संस्था "मिशनरीज ऑफ चैरिटी" में काम कर चुके "डा. अरूप चटर्जी" का दावा है कि - मदर द्वारा गरीबों के लिए किए गए काम को बहुत ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया गया था. डा. अरूप चटर्जी की चर्चित किताब "मदर टेरेसा : द फाइनल वरडिक्ट" , मदर टेरेसा की कार्य प्रणाली पर कई सवाल उठाती है.
देश आजाद हो जाने के बाद अपने धर्म परिवर्तन के मिशन को जारी रखने के लिए उन्होंने 1950 में उन्होंने "मिशनरीज ऑफ चैरिटी" की स्थापना की थी. डा. चटर्जी ने लिखा है कि - टेरेसा कहती थीं कि वे कलकत्ता की सड़कों से बीमारों को उठाती थी लेकिन असल में, कोई उनके पास फोन करता था तो कहा जाता था कि 102 नंबर पर फोन कर लो.
डा. चटर्जी के मुताबिक़ संस्था के पास कई एंबुलेंस थी लेकिन उनका काम था अपने स्टाफ और ननो को जगह जगह जाना. डा.चटर्जी ने संस्था के इस दावे पर भी सवाल उठाया कि - वह कोलकाता में रोज हजारों लोगों को खाना खिलाती थीं, जबकि उनकी किचन में लगभग तीन सौ लोगों का ही खाना बनता था. जिसमें फ़ूड कार्ड धारक ईसाई ही खा सकते थे.
ब्रिटेन की मेडिकल पत्रिका "लैंसेट" के सम्पादक "डॉ रॉबिन फॉक्स" ने 1991 में टेरेजा के कोलकाता स्थित केंद्रों का दौरा किया था. फॉक्स ने पाया कि - वहां साधारण दर्दनिवारक दवाइयाँ तक नहीं थी. उनके मुताबिक इन केंद्रों में बहुत से मरीज ऐसे थे जिनकी बीमारी ठीक हो सकती थी लेकिन उनको बिना इलाज के कुछ दिन के मेहमान की तरह रखा जाता था.
एक टीवी कार्यक्रम के दौरान डा. अरूप चटर्जी ने कहा था कि - संस्था के केंद्रों में मरीजों की हालत बहुत खराब थी. वे रिश्तेदारों से नहीं मिल सकते थे, न ही कहीं घूम या टहल सकते थे. वे बस पटरों पर पड़े, पीड़ा सहते हुए अपनी मौत का इंतजार करते रहते थे. मिशनरीज ऑफ चैरिटी के केंद्रों में गरीबों का जानबूझकर ठीक से इलाज नहीं किया जाता था.
मदर टेरेसा पीड़ा को अच्छा मानती थी. उनका मानना था कि पीड़ा आपको जीसस के करीब लाती है, जो मानवता के लिए सूली चढ़े थे. गरीबों की मदद करने से ज्यादा दिलचस्पी मदर टेरेसा की इसमें थी कि- बीमार गरीबों की पीड़ा का इस्तेमाल करके, रोमन कैथलिक चर्च के कट्टरपंथी सिद्धांतों का प्रचार-प्रसार किया जाए और इसाइयत को फैलाया जाए..
जबकि मदर टेरेजा खुद बीमार होती थी तो इलाज करवाने देश-विदेश के महंगे अस्पतालों में चली जाती थी. डा. चटर्जी ने लिखा है कि - मदर टेरेसा बीमार बच्चों की मदद तब करती थी, जब उनके मां-बाप वह फॉर्म भरने के लिए तैयार हो जाते थे, जिसमें लिखा होता था कि - वे बच्चों से अपना दावा छोड़कर उन्हें मदर की संस्था को सौंपते हैं.
1994 में मदर टेरेसा पर बनी एक चर्चित डॉक्यूमेंटरी "हैल्स एंजल" में भी कुछ ऐसे ही आरोप लगाए गए थे. इस डाक्यूमेंट्री की स्क्रिप्ट राइटर "क्रिस्टोफर हिचेंस" द्वारा 1995 में एक किताब भी लिखी थी. "मदर टेरेसा इन थ्योरी एंड प्रैक्टिस" नाम की इस किताब में हिचेंस का कहना था कि- मीडिया ने मदर टेरेसा का मिथक गढ़ दिया है जबकि सच्चाई इसके उलट है.
वरिष्ठ साहित्यकार "विष्णु नागर" लिखते हैं कि- यह कहना कि मदर टेरेसा सड़क पर पड़े, मौत से जूझ रहे सभी गरीबों की मसीहा थी, गलत है. उन्होंने गरीबों-बीमारों के लिए 100 देशों में 517 चैरिटी मिशन जरूर स्थापित किए थे मगर ऐसे कई मिशनों का दौरा करने के बाद डॉक्टरों ने पाया कि ये दरअसल जीवनदान देने से ज्यादा मृत्युदान देने के मिशन हैं .
80 के दशक में ब्रिटेन के एक चर्चित अखबार "ब्रिटेन" में छपे एक लेख में चर्चित नारीवादी और पत्रकार "जर्मेन ग्रीअर" ने भी कुछ ऐसी ही बातें कही थी. ग्रीअर ने मदर टेरेसा को एक धार्मिक साम्राज्यवादी कहा था, जिसने सेवा को मजबूर गरीबों में ईसाई धर्म फैलाने का जरिया बनाया और ईसाई देशों से मिलने वाले चंदे से अपना बड़ा साम्राज्य खडा किया.
डा. चटर्जी के अनुसार, मदर टेरेसा ऐसे लोगों से भी फंडिंग लेती थी, जिनकी आय के स्रोत संदिग्ध थे. उनको गरीबों की मदद करने के लिए अकूत पैसा मिला लेकिन उसका एक बड़ा हिस्सा उन्होंने खर्च ही नहीं किया. उनकी संस्था को कांग्रेस सरकार का भी संरक्षण प्राप्त था, इसलिए मदर टेरेसा ने इंदिरा द्वारा लगाए आपातकाल का खुलकर समर्थन किया था.
उनके साथ 9 साल काम करने वाली सुजैन शील्ड ने 1989 में कहा था कि - अनेकों दवा निर्माता कम्पनिया अपनी नई दवाओं का ट्रायल मदर टेरेजा के हस्पतालों में भर्ती, गरीब मरीजों पर करते थे और इसके लिए संस्था को मोटी रकम भी दिया करते थे. इन ट्रायल में मरीजों को कई बार असहनीय पीड़ा होती थी और कई बार म्रत्यु भी हो जाती थी.
कुछ समय पहले, वेटिकन सिटी के पोप ने मदर टेरेसा को चमत्कारी संत घोषित किया था. पोप द्वारा उनको केवल इसलिए संत घोषित किया गया ताकि भारत में उनका नाम लेकर इसाइयत को बढ़ावा दिया जा सके. जिस कथित 'चमत्कार' के कारण 2003 में वेटिकन ने उन्हें धन्य घोषित किया उसे तर्कवादियों ने सिरे से खारिज कर दिया था.
उनको इस आधार पर संत घोषित किया गया था कि - पेट के ट्यूमर से जूझ रही पश्चिम बंगाल की एक महिला "मोनिका बेसरा" ने एक दिन अपने लॉकेट में मदर टेरेसा की तस्वीर देखी और उनका ट्यूमर अपने आप पूरी तरह से ठीक हो गया. लेकिन डाक्टरों की रिपोर्टों के मुताबिक मदर टेरेसा की मृत्यु के कई साल बाद भी मोनिका दर्द सहती रही.
कई लोग हैं जो मानते हैं कि - मदर टेरेसा को संत बनाने के पीछे वेटिकन की मजबूरी भी है. भारत के चर्चों में लोगों का आना लगातार कम हो रहा है. उनको पता है कि - भारत के लोग चमत्कारी संतों पर बहुत जल्द विशवास कर लेते हैं. ईसाई धर्म और इसके केंद्र वेटिकन सिटी, चर्च में लोगों का विश्वास लौटाने के लिए ऐसा कदम उठाना जरूरी था. .
प्रसिद्ध लेखिका तसलीमा नसरीन ने वेटिकन के टेरेसा को संत घोषित करने के फैसले पर अफसोस जताते हुए अपने ट्वीट में लिखा था कि, “मदर टेरेसा को संत बनाया जाएगा, ऐसी औरत जिसने भ्रष्ट लोगों से पैसा ले लिया, जिसने गरीब व बीमार लोगों को बिना चिकित्सा उपलब्ध करवाए मरने के लिए छोड़ दिया वह अब संत हो जायेगी”
आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि ‘‘मदर टेरेसा की सेवा में केवल एक ही उद्देश्य हुआ करता था, कि - जिसकी सेवा की जा रही है उसका ईसाई धर्म में धर्मांतरण किया जाए". भाजपा सांसद योगी आदित्यनाथ का कहना है कि - पूर्वोत्तर भारत में उनके द्वारा किये गए ईसाईकरण ने ही, वहां अलगाव की स्थिति पैदा की है.
हमारी भारतीय संस्कृति बहुत महान है, इसमें अनेको संत हुए हैं जिन्होंने सच्चे दिल से दीन-दुखियों की, अपने तन-मन-धन से सेवा की है. अनेको गुरुद्वारों, मंदिरों एवं स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा निरंतर लंगर लगाये जाते हैं जिनमे बिना किसी भेदभाव के भोजन कराया जाता है. ऐसे ही अनेकों संस्थाओं द्वारा गरीबो का निशुल्क इलाज किया जाता हैं.

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