Wednesday, 14 December 2016

महंगाई और खाद्यान की बर्बादी को रोकना

महंगाई और खाद्यान की बर्बादी रोकने का सबसे बेहतरीन उपाय
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हम जब छोटे थे तब हम देखते थे कि - कोई भी फसल आने पर हमारे यहाँ (सभी के यहाँ ) साल भर का गेहूं, धान, दालें, मसाले आदि एक साथ खरीद लिया जाता था. उसको साफ़ करके सुरक्षित तरीके से भर दिया जाता था. इसकी व्यवस्था इस तरह की जाती थी कि -अगले बर्ष की फसल आने के कम से कम तीन महीने बाद तक का स्टाक हो.
इसके अलावा अनेकों तरह के पापड़, बड़ियाँ और आचार भी बनाकर रख लिए जाते थे. एक साल तक उनको ताजा सब्जी के अलाबा और कुछ खरीदने की आवश्यकता ही नहीं होती थी. हर गली मोहल्ले में चक्कियां, स्पेलर, धान कुटाई मशीने लगी होती थी. लोगों को जितनी आवश्यकता होती थी उतना आटा, चावल, तेल, मशाले, पिसा लेते थे.
ऐसा करने से हिन्दुस्थान के अधिकाँश घर साल भर के लिए खाद्यान से भरपूर हो जाते थे. इसके अलाबा हर गली मोहल्ले में एक आध व्यक्ति चक्की लगाकर अपना कारोबार करता था. उसके बाद धीरे धीरे सरकारों द्वारा साजिश के तहत चक्कियों को बंद करवाया गया. आसपास चक्की न रहने पर लोगों ने दुकान से पिसा हुआ सामन खरीदना शुरू कर दिया.
उसके बाद लोगों को सालभर का अनाज एकसाथ खरीदने की आवश्यकता नहीं रही और महिलाओं को भी यह काफी आसान लगने लगा. इसने जन्म दिया मंहगाई और खाद्यान की बर्बादी को. बीस करोड़ परिवारों द्वारा 10 -10 क्विंटल अनाज सम्हालना बहुत आसान था लेकिन सरकार द्वारा 200 करोड़ क्विंटल अनाज सम्हालना बहुत मुश्किल है.
इसके बाद, कारोबार में बड़ी कम्पनियां कूद पड़ीं. फसल से समय किसान से कम दाम में अनाज खरीदती हैं उसे अपने गोदामों में जमा करती हैं और उसके बाद दाम बढ़ाकर दोगुना /तीनगुना मुनाफ़ा बसुलती हैं. जब नई फसल आने वाली होती है तो कुछ दिन पहले एकबार फिर जमा अनाज की कीमत गिरा देती हैं, जिससे किसान को ज्यादा भाव न देना पड़े.
मेरा सरकार से निवेदन है कि - लोगों को कुटीर उद्योग के रूप में चक्कियां / स्पेलर आदि लगाने की इजाजत दी जाए तथा लोगों को फसल के समय एकसाथ अनाज खरीदने को प्रोत्साहित किया जाए. ऐसा करने से भंडारण समस्या और मंहगाई दोनों पर काबू पाया जा सकेगा और लाखों लोगों को रोजगार मिलेगा सो अलग.

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