Wednesday, 14 December 2016

भारतरत्न "इंजीनियर विश्वेश्वरैया"

Engineers Day 2017: भारत रत्न 'विश्वेश्वरैया ...देश के महान इंजिनियर "भारतरत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया" का  जन्म मैसूर (कर्नाटक) के कोलार जिले में 15 सितंबर 1860 को हुआ था. उनके सम्मान में ही 15 सितम्बर को "इंजीनियर्स डे" या "अभियंता दिवस" मनाया जाता है.
1883 की एलसीई व एफसीई (वर्तमान समय की बीई उपाधि) की परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्तकरके अपनी योग्यता का परिचय दिया. इसी उपलब्धि के चलते महाराष्ट्र सरकार ने इन्हें नासिक में सहायक इंजीनियर के पद पर नियुक्त किया.
कृष्णराजसागर बांध, भद्रावती आयरन एंड स्टील व‌र्क्स, मैसूर संदल ऑयल एंड सोप फैक्टरी, मैसूर विश्वविद्यालय, बैंक ऑफ मैसूर समेत कई महान उपलब्धियां विश्वेश्वरैया जी के कड़े प्रयास से ही संभव हो पाई थी, इसीलिए इन्हें कर्नाटक का भगीरथ भी कहते हैं.
जल बहाब को नियंत्रित करने के लिए उन्होंने नए ब्लॉक सिस्टम को ईजाद किया. उन्होंने स्टील के बिशेष दरवाजे बनाए जो कि बांध से पानी के बहाव को रोकने में मदद करते थे. उनकी इजाद की गई प्रणाली ही आज पूरे विश्व में प्रयोग में लाई जा रही है.
जब वे 32 वर्ष के थे तब उन्होंने सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे को पानी भेजने का प्लान तैयार किया था, जिसे सभी इंजीनियरों ने पसंद किया था. मूसा व इसा नामक दो नदियों के पानी को बांधने का प्लान प्रस्तुत करने पर, उन्हें मैसूर का चीफ इंजीनियर नियुक्त किया गया.
वे लोगों की आधारभूत समस्याओं जैसे अशिक्षा, गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी आदि को भी दूर करना चाहते थे. फैक्ट्रियों की कमी तथा खेती के लिए बर्षा पर निर्भरता को वो इसकी मुख्य बजह मानते थे. उन्होंने मैसूर में कृष्ण राजसागर बांध का निर्माण कराया.
कृष्णराजसागर बांध के निर्माण के दौरान देश में सीमेंट नहीं बनता था, तब उन्होंने देशी संशाधनों से जो मोर्टार तैयार किया वो सीमेंट से ज्यादा मजबूत था. 1912 में विश्वेश्वरैया को मैसूर के महाराजा ने दीवान (मुख्य मंत्री) नियुक्त कर दिया.
उन्होंने पारम्परिक उद्योगों जैसे सिल्क, संदल, मेटल, स्टील आदि को जापान व इटली के विशेषज्ञों की मदद से और अधिक विकसित किया. बंगलूर स्थित हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स तथा मुंबई की प्रीमियर ऑटोमोबाइल फैक्टरी उन्हीं के प्रयासों का परिणाम है.
धन की जरूरत को पूरा करने के लिए उन्होंने बैंक ऑफ मैसूर खुलवाया. 1947 में वह आल इंडिया मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष बने. उड़ीसा की बाढ़ की समस्या पर उन्होंने एक रिपोर्ट पेश की थी, जिसके आधार पर हीराकुंड तथा अन्य कई बांधों का निर्माण हुआ.
उनकी कर्मठता का अंदाजा इसी से लगता है कि - 1952 में पटना में गंगा नदी पर पुल निर्माण की योजना के संबंध में गए थे, उस समय उनकी आयु 92 बर्ष थी. तपती धूप में साइट पर कार से भी जाना संभव नहीं था, इसके बावजूद वह साइट पर पैदल ही गए.
1955 में उन्हें "भारत रत्न पुरस्कार" से सम्मानित किया था. 14 अप्रैल 1962 को उनका स्वर्गवास हो गया. "इंजीनियर मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया" ईमानदारी, त्याग, मेहनत इत्यादि जैसे सद्गुणों से संपन्न महान इंसान थे. देश के विकास में उनका बहुत योगदान रहा है.
डॉ॰ मोक्षगुण्डम विश्वेश्वरैया ने सौ वर्ष से अधिक की आयु पाई और उन्होंने जीवन के अंत तक सक्रिय जीवन व्यतीत किया. उनका कहना था, कोई भी कार्य पूरी योजना के साथ व्यवस्थित ढंग से किया जाए, तो वह हमेंशा एक "श्रेष्ठ कार्य" बन जाएगा.

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