Wednesday, 14 December 2016

भारत छोडो आन्दोलन

भारत छोडो आन्दोलन की बर्षगाँठ (9-अगस्त) पर क्रांतकारी शहीदों को कोटि कोटि नमन
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सन 1942 में आज के ही दिन महात्मा गांधी ने "अंग्रेजो भारत छोडो आन्दोलन" का ऐलान किया था. लेकिन उसी दिन गांधी आदि बड़े कांग्रेसी नेता गिरफ्तार कर लिए गए थे. दरअसल यह आन्दोलन कांग्रेस के हाथ से निकल कर, देश की जनता का क्रांतिकारी आन्दोलन बन गया था जिन पर गांधी / कांग्रेस का कोई नियंत्रण नहीं था,
गांधीजी के द्वारा अहिंसक आन्दोलन का आव्हान किया गया था, लेकिन देश के जोशीले युवाओं ने खुलकर अंग्रेजों के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन किये. क्रांतिकारियों ने देशभर में हजारों पुलिस स्टेशन, रेलवे स्टेशन, डाक घर, कार्यालयों एवं अंग्रेजों इत्यादि पर खुलकर हमले किये और उनको बहुत नुकशान पहुंचाया. अनेकों क्रांतिकारी भी मारे गए.
सरकारी आँकड़ों के अनुसार इस जनआन्दोलन में 940 लोग मारे गये, 1630 लोग घायल हुए,18,000 डी० आई० आर० में नजरबन्द हुए तथा 60,229 गिरफ्तार हुए थे. 1939 से 1944 तक चले दूसरे विश्वयुद्ध में अंग्रेजो को बहुत क्षति उठानी पडी थी, सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फ़ौज ने भी अंग्रेजों की नाक में दम कर रखा था.
उस समय तक देश की जनता यह मानने लगी थी कि - गांधी के अहिंसा आन्दोलन से कुछ नहीं होगा और सुभाष चन्द्र बोस की तरह खून बहाने के रास्ते पर चलकर ही आजादी मिल सकती है. सुभाष चन्द्र बोस के नारे "तुम मुझे खून दो, मै तुम्हे आजादी दूँगा" तथा "दिल्ली चलो" ने देश की जनता में जोश भर दिया था. उस समय "बोस" युवाओं के नायक बने हुए थे.
ऐसे में मौके की नजाकत को भाँपते हुए 8 अगस्त 1942 की रात में गांधी जी ने, बम्बई से "अँग्रेजों भारत छोड़ो" का नारा दिया और गिरफ्तारी के नाम पर सरकारी सुरक्षा में "आगा खान पैलेस" में चले गये. 9 अगस्त का दिन चुनने की एक ख़ास बजह थी. 1925 में 9 अगस्त को काकोरी ट्रेन काण्ड हुआ था. भगत सिंह द्वारा उसकी बरसी मनाई जाती थी.
भगत सिंह की फांसी के बाद भी देश के क्रांतिकारी 9 अगस्त की यादगार मनाते आ रहे थे. भारत छोड़ो आंदोलन सही मायने में एक जन आंदोलन था. इसको गांधी और कांग्रेस ने शुरू अवश्य किया था. लेकिन इसमें भाग लेने वाले आन्दोलनकारी सुभाष चन्द्र बोस के आदर्श पर चलते थे. गांधी जी जेल (?) से अहिसा का आव्हान करते थे मगर युवा उसे अनसुना करते थे.
भारत छोडो आन्दोलन का श्रेय भले ही गांधी जी को दिया जाता है लेकिन इसमें भाग लेने वाले अधिकांश क्रांतिकारियों ने उग्र बिचारधारा से साथ क्रान्ति की थी. उन लोगों का सिद्धांत अंहिसा के साथ सविनय निवेदन करना नहीं बल्कि अंग्रेजों से युद्ध कर उनको मार भगाना था. इस आन्दोलन ने अंग्रेजो को इतना कमजोर कर दिया कि उनको भागना पडा .
आजाद हिन्द फ़ौज बाहर से सैन्य हमने कर रही थी और देश के अन्दर क्रांतिकारी अंग्रेजों को भारी नुकशान पहुंचा रहे थे. किन्तु दुर्भाग्यवश युद्ध का पासा पलट गया. जर्मनी ने हार मान ली और जापान को भी घुटने टेकने पड़े. सुभाषचन्द्र बोस की मौत की खबर (?) के साथ ही आजाद हिन्द फ़ौज का अभियान और भारत छोडो आन्दोलन समाप्त हो गया.
आन्दोलन के पहले दिन से ही गांधी जी एवं उनके कई निकटवर्ती सहयोगी जेल के नाम पर सरकारी सुरक्षा में विबिन्न पैलेसों और डाक बंगलों में चले गए थे. जो आन्दोलन की समाप्ति के बाद ही बाहर आये. और हां, इस आन्दोलन के दौरान मुस्लिम लीग, क्रान्ति / आन्दोलन से दूर रहकर, अलग पापिस्तान की मांग में लगी रही.

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