Wednesday, 14 December 2016

ब्रिगेडियर जगदीश गगनेजा

ब्रिगेडियर (सेवानिवृत्त) जगदीश गगनेजा जी की पुण्यतिथि पर सादर श्रद्धाजली
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (पंजाब) के सह-प्रान्त संघचालक एवं सेना के सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर माननीय जगदीश गगनेजा की द्वितीय बरसी पर सादर श्रद्धांजलि. जैसा कि सभी को पता ही है कि - पिछले बर्ष अगस्त-16 में कुछ अज्ञात हमलावरों ने जालंधर में उन्हें गोली मार दी थी. 22 / 09 / 2016 को लुधियाना के डीएमसी अस्पताल में निधन हो गया था.

वर्तमान के अधिकांश सैनिको की तरह, माननीय गगनेजा जी भी बाल्यकाल से ही संघ के सेवक थे. वे सेना में ब्रिगेडियर पद से रिटायर हुए थे. सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने पुनः संघ का काम देखना प्रारम्भ कर दिया. उनके पास पंजाब प्रांत के सह-प्रान्त संघचालक का दायित्व था. उन्होंने अपना सारा जीवन देश को समर्पित कर दिया था.
उनका बेटा राहुल भी भारतीय सेना में कर्नल के रूप में सेवा दे रहा है. गगनेजा जी का परिवार लाहौर, पाकिस्तान का रहने वाला था. आजादी के बाद हुए बंटबारे में उनका परिवार फिरोजपुर जिले के जलालाबाद में बस गया. उनके पिताजी जलालाबाद में आढ़त का काम करने लगे. 19 फरवरी 1950 को, जलालाबाद में ही गगनेजा जी का जन्म हुआ.
कुछ समय बाद उनका परिवार बठिंडा में आकर बस गया. उनकी स्कूली शिक्षा सनातन धर्म हाई सेकेंडरी स्कूल बठिंडा में हुई एवं उच्च शिक्षा बठिंडा के ही राजिंद्रा कालेज में हुई. वे पढने में बहुत ही होशियार थे और साथ ही हाकी के भी बहुत अच्छे खिलाड़ी थे. विद्यार्थी जीवन में ही वे "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ" से संपर्क आये.
संघ के स्वयंसेवक के रूप में उन्होंने द्वितीय वर्ष तक का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया था. 1970 में वे सेना में भर्ती हुए. सेना में उनके पास 6 साल तक, भारतीय एवं विदेशी अफसरों को ट्रेनिंग देने का दायित्व रहा और उसके बाद उन्होंने तोपखाने की कमांड की. कई साल तक वे कश्मीर में भी रहे. 2006 में वे ब्रिगेडियर के पद से रिटायर हुए.
रिटायमेंट के बाद वे जालंधर कैंट में रहने लगे. 2009 में वे फिर से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्य में सक्रीय हो गए. पहले उन्होंने जालंधर के माननीय संघचालक का दायित्व सम्हाला और 2013 में वे पंजाब प्रदेश के माननीय सह-प्रान्त संघचालक बन गए. सेना के अधिकारियों को ट्रेंड करने के उनके अनुभव का लाभ स्वयंसेवकों को भी मिला.
वे अक्सर कहा करते थे कि - ''मुझे फौज और संघ में कोई फर्क नजर नहीं आता. दोनों जगह ही देश की सेवा का ही कार्य और दृढ अनुशासन है". उनका कहना था कि - अधिकाँश सैनिक कभी न कभी स्वयंसेवक अवश्य रहे है. ऐसे देशभक्त लोगों से, देशद्रोहियों का नफरत करना कोई आश्चर्यजनक बात नहीं है.
6 अगस्त 2016 को वे अपनी पत्नी के साथ ज्योति चौक (जालन्धर) में फल खरीदने गए. जब वे फल खरीदकर अपनी कार लेने जा रहे थे तभी मुह पर कपड़ा बांधे दो मोटरसाइकिल सवार युवकों ने उनको गोली मारकर फरार हो गए. डेढ़ माह तक हस्पताल में जिन्दगी और मौत से संघर्ष करने के बाद 22 सितम्बर को दुनिया से विदा हो गए.
देश और समाज की सेवा में उनके योगदान को सदैव याद रखा जाएगा. संघ के स्वयंसेवक दशकों से देश के लिए बलिदान देते आये हैं और आगे भी हमेशा ही देते रहेंगे. आज भी केरल, जम्मू & कश्मीर, पश्चिम बंगाल, नार्थईस्ट और नक्श्ल प्रभावित क्षेत्रों में स्वयंसेवक देश की अखंडता के लिए निरंतर बलिदान दे रहे हैं.

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