Wednesday, 14 December 2016

शहीद भगत सिंह

भारत माँ के सपूत "सरदार भगत सिंह" के जन्म दिवस (27/09) पर कोटि कोटि नमन
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सरदार भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर, 1907 में हुआ था. उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती कौर था. यह एक सिख परिवार था, जिसने आर्य समाज के विचार को अपना लिया था. अमृतसर में हुए जलियाँवाला बाग हत्याकाण्ड ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था . लाहौर के नेशनल कॉलेज़ की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आज़ादी के लिये नौजवान भारत सभा की स्थापना की थी.
भाषा , क्षेत्र, जाति, और धर्म में बंटकर कमजोर हो चुके भारत की दशा सुधारने को लेकर निरंतर चिंतन करते थे. कुछ लोग उनको नास्तिक बताते हैं लेकिन भगत सिंह नास्तिक नहीं थे, वो आर्यसमाज के वैदिक यज्ञों में भी भाग लेते थे, लेकिन धर्म के नाम पर आपस में लड़नेवालों से, इतना नाराज थे कि - ऐसे धर्मी से नास्तिक होना बेहतर समझते थे. भगतसिंह का जीवन आज के युवकों के लिए एक बहुत बड़ा आदर्श है.
भाषा विवाद भी उनको विचलित करता था. भगतसिंह ने एक राष्ट्रीय प्रतियोगिता में "पंजाब में भाषा और लिपि की समस्या" विषय पर "मतवाला" नाम की कलकत्ता से छपने वाली पत्रिका में लेख लिखा था, जिस पर उन्हें 50 रुपए का प्रथम पुरस्कार मिला था. भगतसिंह ने में लिखा था कि - पंजाबी भाषा की लिपि गुरुमुखी नहीं देवनागरी होनी चाहिए. भगत सिंह कई भाषाओं के जानकार थे , मगर वो सारे देश में एक ही लिपि ( देवनागिरी ) चाहते थे .
संपर्क में आने पर करतार सिंह साराभा ने भगत सिंह को महान देशभक्त "वीर सावरकर" की किताब "1857- प्रथम स्वतंत्रय समर " पढने के लिए दी, भगत सिंह इस किताब से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने इस किताब के और संस्करण छापने के लिए सहायता प्रदान की . जून 1924 में भगत सिंह, रत्नागिरी में , वीर सावरकर से मिले और क्रांति की पहली गुरुदीक्षा ग्रहण की, यही से भगत सिंह के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन आया.
उन्होंने सावरकर जी के कहने पर, आजाद जी से मुलाकात की और उनके दल में शामिल हो गये. बम धमाको के लिए भी उन्होंने वीर सावरकर के क्रांतिदल अभिनव भारत की भी सहायता ली और इसी दल से बम बनाने के गुर सीखे थे. 1928 में साइमन कमीशन के बहिष्कार के लिये हुए प्रदर्शनों मे, भाग लेने वालों पर अंग्रेजी शासन ने लाठी चार्ज भी किया .इसी लाठी चार्ज से घायल होकर लाला लाजपत राय की मृत्यु हो गयी.
तब इन लोगों ने पुलिस सुपरिण्टेण्डेण्ट स्काट को मारने की योजना सोची. 7- दिसमबर 1928 को शाम 4 बजे, स्काट की जगह, ए० एस० पी० सॉण्डर्स के आते ही राजगुरु ने एक गोली सीधी उसके सर में मारी जिसके तुरन्त बाद वह होश खो बैठा. इसके बाद भगत सिंह ने 3 - 4 गोली दाग कर उसके मरने का पूरा इन्तज़ाम कर दिया . एक सिपाही चनन सिंह इनका पीछा करने लगा. चन्द्रशेखर आज़ाद ने उसे गोली मार दी.
इस तरह इन लोगों ने लाला लाजपत राय की मौत का बदला ले लिया. कुछ तथाकथित महात्मा टाईप नेताओं ने, भगत सिंह को एक आतंकी बना कर प्रस्तुत किया था जबकि भगत सिंह बन्दुक के बजाये बैचारिक क्रान्ति के प्रणेता थे. जेल के अंदर जब कैदियों को ठीक भोजन और सुविधाएं नहीं मिलती थीं, तो भगतसिंह ने आमरण अनशन किया था . भगतसिंह का कहना था कि - जब तक नौजवान शामिल नहीं होंगे, तब तक कोई क्रांति नहीं हो सकती.
असेम्बली में भगतसिंह ने जानबूझकर कच्चा बम फेंका था यह किसी को मारने के लिए नहीं था और ऐसी जगह बम फेंका था कि कोई घायल न हो बल्कि केवल एक धमाका हो और दुनिया का ध्यान आकर्षित हो. राष्ट्रपुत्र (राष्ट्र का बाप या राष्ट्र का चाचा तो मैं किसी को मानता ही नहीं) शहीद भगत सिंह की 110 वी जयंती पर सभी राष्ट्र भक्तों को बधाई .
जय हिन्द, वन्देमातरम, इन्कलाब - जिंदाबाद, भारत माता की जय ..

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