रायबहादुर राजा राममोहन राय कहीं के राजा नहीं थे बल्कि अंग्रेजों ने उनको राजा की उपाधि देदी थी है जैसे कि वो अपने चापलूसों को रायबहादुर, खान बहादुर, सर, खान साहब, आदि की उपाधि दिया करते थे. इन्होने खुद भी सनातन धर्म छोड़कर ईसाई धर्म अपना लिया था और समाज सुधार की आड़ मे वे भारतीय संस्कृति के विरुद्ध ईसाईयों की टूलकिट का हिस्सा थे.
इनको राय बहादुर की उपाधि ईसाई धर्म अपनाने के बाद मिली थी. इनके प्रथम प्रथम इंग्लैंड प्रवास का व्यय एक मुसलमान जागीरदार ने उठाया था. वे भारतीय परम्पराओं के खिलाफ आवाज उठाते थे. राजा राममोहन राय मूर्ति पूजा के विरोधी थे लेकिन उनको चर्च में लगी ईसा मशीह की मूर्ति और दरगाह में की जाने वाली कब्र की पूजा से कोई ऐतराज नहीं था.
भारतीय परम्पराओं का विरोध करते करते वे आयुर्वेदिक चिकत्सा पद्धति का भी विरोध करने लगे थे क्योंकि उनको लगता था कि आयुर्वेद भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म का सबसे मजबूत स्तम्भ है. लोग अगर आयुर्वेद के द्वारा घर में ही बिना डॉक्टर के स्वस्थ होते रहेंगे तो न एलोपैथी को ज्यादा महत्त्व मिलेगा और न जल्दी धर्म परिवर्तन हो पायेगा.
वे घूँघट के खिलाफ खूब बोलते थे लेकिन बुर्के का जिक्र आते ही उनको सांप सूँघ जाता था. एक बार वे घूँघट की बुराई के बारे में लेक्चर दे रहे थे तब किसी युवक ने उनसे बुर्के पर सवाल कर दिया. तब उन्होने केवल इतना कहकर पल्ला झाड़ लिया कि ये मुसलमानो की समस्या है और वे खुद देखें. साथ ही अंग्रेजो के सिपाहियों ने उस युवक को वहां से हटा दिया.
उनको सबसे ज्यादा सम्मान इसलिए दिया जाता है कि उन्होंने भारत से सती प्रथा को ख़त्म कराया. जबकि वास्तविकता यह है कि भारत में कभी सती प्रथा थी ही नहीं. मध्य काल में इस्लामी आक्रमण कारियों से अपनी इज्जत बचाने के लिए महिलाओं ने आत्मदाह किया था. इसी को उदाहरण मानकर कुछ लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए इसे परम्परा बना दिया।
वे स्वार्थी लोग अपने भाई की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति को हड़पने के लिए सतीप्रथा के नाम पर उसकी विधवा की हत्या करने लगे थे. वरना भारत का इतिहास तो कौशल्या, कैकेई, सुमित्रा, तारा, मंदोदरी, सत्यवती, अम्बिका, अम्बालिका, कुंती , उत्तरा, कर्णावती, दुर्गावती, अहिल्याबाई, आदि जैसी विधवा स्त्रियों की गाथाओं से भरा हुआ है.
राजा राममोहन राय का जन्म बंगाल के एक संपन्न परिवार में 22 मई 1772 को हुआ था. उनके परिवार का अंग्रेजों के साथ घनिष्ट सम्बन्ध था और अंग्रेजों के साथ बड़ी मात्रा में व्यापार करता था. उनको संस्कृत भाषा का बहुत अच्छा ज्ञान था लेकिन वो संस्कृत भाषा का प्रचार करने के बजाये अंग्रेजी भाषा और अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार करते थे.
उन्होंने भारतीय प्राचीन ग्रंथों का अंग्रेजी में अनुवाद किया और उन भारतीय ग्रंथों को अंग्रेजी में पढ़कर अंग्रेज हमको ही अपनी अक्लमंदी दिखाते हैं. सन् 1831 में वह इंग्लैंड चले गए और वहीँ रहने लगे. 27 सितम्बर 1833 को वहीं उनका निधन हो गया. वहां उनको Amos vale cemetery में ईसाई रीति रिवाजों के साथ चर्च के कब्रिस्तान में दफनाया गया था.
और हां, राजा राममोहन राय को लेकर कहा जाता है कि राजा राममोहन राय ने अंग्रेजों से कह कर 04-दिसम्बर 1829 से सतीप्रथा के विरुद्ध कानून बनबाया था लेकिन ऐसा बताने वाले यह नहीं बताते हैं कि - 1829 में अंग्रेजों का राज भारत के कितने हिस्से पर था ? दरअसल, जो हिन्दू भी भी हिंदुत्व के खिआफ़ बोले, अंग्रेज और मुस्लमान उसे महान घोषित कर देते थे
राजा राममोहन राय और सर सैय्यद अहमद खान जैसे बुद्धिजीवियों को चाहे कोई भी कितना महान क्यों न बताये लेकिन वास्तविकता यही है कि अंग्रेजों ने राजा राममोहन राय और सर सैय्यद अहमद खान जैसे तथाकथित समझदार हिन्दुओं और मुसलनानो के दम पर ही अंग्रेज भारत में अपना राज स्थापित कर पाने में कामयाब हुए थे.
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