तिब्बत पर चीन के कब्जे की बरसी पर,
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आज के दिन 15-सितंबर 1951 को वास्तव में विस्तारवादी (और कहने को साम्यवादी) देश चीन ने, स्वतंत्र बौद्धदेश "तिब्बत" पर कब्जा कर "दलाई लामा" के मठ में अपने पुजारी बिठा दिए थे. हालांकि उस समय चीन ने कब्जे के बाबजूद यह कहा था कि- तिब्बत साम्यवादी चीन के प्रशासन में एक स्वतंत्र राज्य माना जाएगा.
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आज के दिन 15-सितंबर 1951 को वास्तव में विस्तारवादी (और कहने को साम्यवादी) देश चीन ने, स्वतंत्र बौद्धदेश "तिब्बत" पर कब्जा कर "दलाई लामा" के मठ में अपने पुजारी बिठा दिए थे. हालांकि उस समय चीन ने कब्जे के बाबजूद यह कहा था कि- तिब्बत साम्यवादी चीन के प्रशासन में एक स्वतंत्र राज्य माना जाएगा.

बैसे कई दशकों से ही चीन तिब्बत पर कब्जा करने की मंशा रखे हुए था. चीन ने काफी समय से तिब्बत में अपनी सेना को बढ़ाना शुरू कर दिया था. भारत के आजाद होने के बाद ही सरदार पटेल ने नेहरु से कहा था कि - हमें चीन के विस्तारवाद के खिलाफ तिब्बत की मदद करनी चाहिए, लेकिन नेहरु ने पटेल की एक न सुनी.
नेहरु को धार्मिक (बौद्ध) देश तिब्बत के बजाय, विस्तारवादी (साम्यवादी) देश चीन के अधीन, रहने वाला तिब्बत ज्यादा पसंद था और वे चीन से मित्रता के प्रयास में लगे रहे. 1950 में अपनी म्रत्यु से पहले भी पटेल ने नेहरु को तिब्बत की मदद करने और चीन से सावधान रहने के लिए लिखा था, परन्तु नेहरु ने उस पर ध्यान नहीं दिया.
नेहरु के अलावा अन्य कम्युनिष्ट पार्टियां भी यही कहती थीं कि - चीन से मैत्री करना तिब्बत से ज्यादा जरुरी है, इसलिये इन छोटी-मोटी घटनाओं को नजरअन्दाज कर देना चाहिये. तिब्बत पर चीन का कब्जा होने के बाद चीन हमारा पडोशी देश बन गया , जिसका परिणाम 1962 के चीनी हमले के रूप में सामने आया था.
पोस्ट के साथ संलग्न नक़्शे से स्पष्ट है कि - चीन हमारा पड़ोसी नहीं था, तिब्बत पर कब्जा करने के बाद वो भारत का पड़ोसी बना और उसके बाद से ही चीन भारत का सरदर्द बना हुआ है. भारत ओर तिब्बत ( वर्तमान चीन) की सीमा की रक्षा करने वाली फ़ोर्स को आज भी भारत तिब्बत सीमा पुलिस कहा जाता है , भारत चीन सीमा पुलिस नहीं.
बुद्ध ने अहिंसा की शिक्षा दी थी लेकिन कायर बुद्धुओ ने कायरता को अहिंसा मान लिया. जिस तरह चीन ने बौद्ध देश तिब्बत पर कब्जा किया और बुद्धू बहा से भाग लिए, ठीक बैसे ही बुद्धुओं ने अफगानिस्तान, पापिस्तान, बंगाल, मलेशिया, इन्डोनेशिया, में समर्पण कर दिया था. मुघलों / अंग्रेजों के राज में भी संघर्ष में साथ देने के बजाय उनके नौकर बने रहे.
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