Wednesday, 14 December 2016

संतों का स्वदेशी अभियान

भारत की स्वाधीनता की लड़ाई हो या आजाद भारत के विकास की, देश के सभी महापुरुषों ने स्वदेशी को अपना प्रमुख मुद्दा बनाया था. देश की जनता भी स्वदेशी का महत्व समझती है लेकिन स्वदेशी सामान में सही गुणवत्ता न मिल पाने, मंहगी कीमत, देशी कम्पनियों के छोटे होने तथा भ्रामक प्रचार के चलते फंसकर विदेशी सामान खरीदती रहती है.
स्वदेशी के लिए अनेकों आन्दोलन चलाये गए मगर वे सब अंततः असफल ही साबित हुए. पिछली असफलताओं से सबक लेकर एक सन्त "बाबा रामदेव" ने इस बार एक नए तरीके से स्वदेशी आन्दोलन चलाया. उन्होंने जनता को हर उस सामान का देशी विकल्प उपलब्ध कराया , जिन चीजो की देश की जनता को आदत पड़ चुकी थी.
बाबा रामदेव ने देशभर में प्रवास कर पहले लोगों को जाग्रत किया. अपना स्वयं का एक विशाल संस्थान बनाया. आवश्यक वस्तुओं को बनाने का कारखाना लगाया. पतंजलि ब्रांड को गुणबत्ता और कीमत के मामले में मल्टी नेशनल कंपनीज से बेहतर बनाया. उन्होंने अपने ब्रांड "पतंजलि" को सारे देश में प्रतिष्ठित ब्रांड के रूप में स्थापित किया.
इनकी सफलता के बाद देश भर की ढेरों कम्पनिया जो या तो बंद हो चुकी थीं या बड़ी मुश्किल से चल पा रही थीं, वे पतंजलि से कोलोब्रेशन करने को दौड़ पडी. बाबा रामदेव और उनकी प्रोफेशनल टीम ने अपने मानकों के हिसाब से माल बनबाना शुरू किया और विशाल प्रोफेशनल नेटवर्क के जरिये उसे देश के कोने कोने में पहुंचा दिया.
वे बीमार औए बंद स्वदेशी कम्पनिया फिर से चल पडी हैं. लाखों भारतीयों को रोजगार तथा शुद्ध और सस्ते उत्पाद मिलने लगे. बाबा रामदेव की देखा देखी और भी कई संत जैसे - श्री श्री रविशकर, आशाराम, गुरमीत बाबाराम रहीम, आदि ने भी अपने प्रोडक्ट बनाने और बेचने शुरू कर दिए , जिनको कम से कम उनके चेले तो खरीद ही लेते हैं.
इसका बहुत बड़ा असर मल्टी नेशनल कम्पनीज की सेल पर पडा है. स्वदेशी उत्पादों की विक्री बढ़ी है. इस तरह से देश का पैसा अब देश में ही रहने लगा है. जो विदेशी कम्पनिया हमारी परम्पराओं का मजाक उड़ाया करती थीं, आज वो कम्पनी भी अपने टूथपेस्ट में चारकोल, नीम, नमक, बबूल, लौंग, आदि मिलाने को मजबूर हो गई हैं.

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