झांसी की महारानी "लक्ष्मीबाई" के जन्मदिवस (19 नवम्बर ) पर कोटि कोटि नमन
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झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई 1857 के "प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम" की महान वीरांगना थीं, जिन्होंने मात्र 23 वर्ष की आयु में ब्रिटिश साम्राज्य की सेना से युद्ध किया और रणक्षेत्र में वीरगति प्राप्त की. उनका नारा था, झासी नहीं दूंगी और उन्होंने जीते जी अंग्रेजों को, अपनी झाँसी पर कब्जा नहीं करने दिया.
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झांसी की महारानी लक्ष्मीबाई 1857 के "प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम" की महान वीरांगना थीं, जिन्होंने मात्र 23 वर्ष की आयु में ब्रिटिश साम्राज्य की सेना से युद्ध किया और रणक्षेत्र में वीरगति प्राप्त की. उनका नारा था, झासी नहीं दूंगी और उन्होंने जीते जी अंग्रेजों को, अपनी झाँसी पर कब्जा नहीं करने दिया.

घर में कोई और न होने के कारण उनके पिता, उन्हें अक्सर अपने साथ बाजीराव दरबार ले जाने लगे. बहाँ चंचल एवं प्यारी मनु ने सबका मन मोह लिया. लोग उसे प्यार से "छबीली" कहकर बुलाने लगे. मनु ने बचपन में शास्त्रों की शिक्षा के साथ शस्त्रों की शिक्षा भी ली. 1842 में उनका विवाह झाँसी के महाराजा गंगाधर राव निम्बालकर के साथ हुआ.
विवाह के बाद उनका नाम लक्ष्मीबाई रखा गया और वे झाँसी की रानी बन गई. सन् 1851 में रानी लक्ष्मीबाई ने एक पुत्र को जन्म दिया, पर चार महीने की आयु में ही उसकी मृत्यु हो गयी. राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य बहुत अधिक बिगड़ जाने पर उन्होंने एक बच्चे को गोद ले लिया. 21 नवम्बर 1853 को राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गयी.

1857 के सितम्बर तथा अक्टूबर माह में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के अंग्रेज परस्त राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया, रानी ने बहादुरी दखाते हुए इसे सफलता पूर्वक विफल कर दिया. उसके बाद जनवरी 1858 में बिटिश सेना ने झांसी को घेर लिया. रानी ने अंग्रेजों और गद्दार भारतीय राजाओं का डटकर मुकाबला किया.
बिटिश सेना ने मार्च 1858 में नगर पर अपना कब्जा कर लिया. लेकिन लक्ष्मीबाई, झलकारी बाई से अपने को बदलकर, अपने दत्तक पुत्र के साथ झांसी से निकलने में कामयाब हो गई. रानी कालपी पहुँची और तात्या टोपे से मिली , फिर दोनों ने ग्वालियर के बाग़ी सैनिकों की सहायता से ग्वालियर के एक किले पर कब्जा कर लिया.
ब्रिटिश जनरल ह्यूरोज़ के नेत्रत्व में विशाल अंग्रेज सेना ने क्षेत्र को घेर लिया. अनेको भारतीय राजा और नबाब रानी के खिलाफ अंग्रेजों का साथ दे रहे थे. रानी के विशवासपात्र तोपचियों गौस खान और खुदा बख्श ने, अपनी तोपों से 8 दिन तक अंग्रज सेना को रोके रखा. रानी ने मराठाओ से मदद लेने के लिए महाराष्ट्र जाने का मंसूबा बनाया.
इसी बीच किसी गद्दार की गद्दारी के कारण अंग्रेज, किले पर कब्जा करने में कामयाब हो गए, रानी उनसे लड़ते हुए किले से बाहर तो निकल गई. लेकिन रानी के पैर में गोली लग चुकी थी. रानी ने अपना घोड़ा दौड़ाया पर दुर्भाग्य से मार्ग में एक नाला आ गया. घोड़ा नाला पार न कर सका. तभी कई सारे अंग्रेज़ घुड़सवार वहाँ आ गए.
घायल रानी उनसे अकेले मुकाबला करने लगी. एक ने पीछे से रानी के सिर पर प्रहार किया जिससे उनके सिर का दाहिना भाग कट गया और उनकी एक आँख बाहर निकल आयी. अत्यन्त घायल होने पर भी रानी अपनी तलवार चलाती रहीं और दोनों आक्रमणकारियों का वध कर डाला. गौस खान और रामराव देशमुख अन्त तक रानी के साथ थे.

बाबा गंगादास ने अपनी कुटिया को ही चिता बनाकर, रानी के पुत्र दामोदर राव के हाथों झोपडी को मुखाग्नि दिल्बाकर, रानी का अंतिम संस्कार कर दिया. रानी के पुत्र को रामराव देशमुख अपने साथ ले गए. रानी के पुत्र ने अपना बाक़ी का जीवन गुमनाम रहते हुए इंदौर में बिताया था. वे सारी जिन्दगी अंग्रेजो की नजरबंदी में रहे.
एक बार फिर वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई के जन्मदिवस पर कोटि कोटि नमन
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