विजय प्राप्ति के लिए शक्ति से भी अधिक आवश्यक है - उद्देश्य की पवित्रता
रावण इतना विद्वान था कि यदि उसने अपनी शक्ति का दुरुपयोग न किया होता तो वह किसी महाकाव्य का नायक होता. अपनी योग्यताओं और शक्तियों के दुरुपयोग से वह दुनिया का बड़ा खलनायक बन गया. उसने जो युद्ध लड़े थे, वे दुर्लभ थे. म्रत्यु को नियंत्रित कर लिया था उसने. ऐसे में उस सर्वसंपन्न के सामने अपने ही राज्य से निष्कासित, अकेले, संघर्षरत श्रीराम थे. फिर भी राम ने रावण को क्यों पराजित कर दिया इसको समझ कर हम अपने जीवन की धारा बदल सकते हैं.
रावण ने अगर अपनी बहन की नाक काटने के बदले में राम-लक्ष्मण पर चढ़ाई कर दी होती, तो सभी का समर्थन रावण के साथ होता और शक्तिशाली रावण को निर्वासित वनवासियों को हराने में कोई मुश्किल भी नही होती. लेकिन रावण ने राम-लक्ष्मण से युद्ध करने के बजाये, धोखे से सीता का अपहरण कर लिया और अपहरण करने के बाद भी कोई राम से अपनी बहन के प्रति किये गए दुर्व्यवहार की माफी मांगने जैसी शर्त नही रखी बल्कि इसके बजाये वो सीता से विवाह करने के लिए अड़ गया.
रावण ने अपनी ताकत का प्रदर्शन राम के सामने करने के बजाये, सीता को पाने का प्रयास करने में लगा दी. जबकि राम ने हर तरह से अक्षम होते हुए भी केवल अपने आत्म्वल के सहारे सीता को ढूँढने का प्रयास किया. अनजान लोगों को प्रभावित कर उनको मित्र बनाया और मामूली सी सेना के साथ शक्तिशाली रावण के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी. निर्वासित राम का शक्तिशाली रावण के खिलाफ युद्धघोष करना ही राम को महान बना देता है.
रावण के पास सब था, धनबल , जनबल व बाहुबल , बस एक चीज की कमी थी और वह थी उद्देश्य की पवित्रता . जिस उद्देश्य के लिए लड़ रहा था उसके बारे में खुद को और किसी को भी समझाने में उसे असहज होना पड़ता था और इस बजह से रावण का आत्मबल कम हो गया था । अपने पुत्र , भाई और प्रजा जिस किसी को समझाता था कि मैं किसी की पत्नी का अपहरण करके लाया हूँ और अपनी पत्नी के लिए वो मुझसे लड़ रहा है , तो रावण का साथ देते समय भी उसके मन में राम के प्रति सम्मान पैदा हो जाता था .

हमेशा याद रखें कि - हम जिस उद्देश्य के लिए लड़ रहे हों उस का पवित्र होना भी बहुत जरुरी है , हमारे पास अगर शक्ति है और सामने वाला कमजोर और फिर भी कभी दुर्भाग्यवश उस से किसी ऐसी बात पर विवाद हो जाए, जिसमे हम खुद सैद्धांतिक रूप से गलत हों तो उस पर अपना प्रभाव दालकर अपनी बात मनवाने के बजाय क्षमा मांग कर विवाद ख़तम करने का प्रयास करना चाहिए . अपनी योग्यता और शक्ति का दुरूपयोग कभी नहीं करना चाहिए .
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