Wednesday, 14 December 2016

सुभाष चन्द्र बोस की शहादत

नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के आफ़िसयली शहीदी दिवस (18 अगस्त) पर कोटि कोटि नमन .
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सरकारी घोषणा के हिसाब से आज (18 अगस्त) नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का शहीदी दिवस है, हालांकि यह तथ्य आज भी विवादास्पद है कि- 18 अगस्त, 1945 के दिन नेताजी की हवाई दुर्घटना में म्रत्यु हो गई थी. यह भारत के इतिहास का सबसे बडा अनुत्तरित रहस्य बना हुआ है कि उस दुर्घटना में नेता जी की म्रत्यु हुई अथवा कहीं लापता हो गए ?
उनका आगे क्या हुआ यह भी आम जनता को कुछ भी प्रामाणिक रूप से ज्ञात नहीं है केवल अलग अलग कयास लगाए जाते हैं. देश के अलग-अलग हिस्सों में आज भी नेताजी को देखने और मिलने का दावा करने वाले लोगों की कमी नहीं है. जय गुरुदेव से लेकर गुमनामी बाबा तक के नेताजी होने के कई दावे हुये हैं लेकिन इनमें से सभी की प्रामाणिकता संदिग्ध है.
सुभाषचन्द्र बोस भारत के स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी नेता थे. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ने के लिये, उन्होंने आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया था. उनके द्वारा दिया गया "जय हिन्द" का नारा, भारत का राष्ट्रीय नारा बन गया हैं. उन्होंने जर्मन और जापान के सहयोग से गुलाम भारत पर अंग्रेजों के खिलाफ सैन्य आक्रमण किया था.
स्वतंत्रता के पश्चात, भारत सरकार ने इस घटना की जाँच करने के लिए, 1956 और 1977 में दो बार एक आयोग को नियुक्त किया गया लेकिन दोनो बार यही घोषणा कि गई कि नेताजी उस दूर्घटना में ही मारे गये थे. लेकिन जिस ताइवान की भूमि पर यह दुर्घटना होने की खबर थी, उस ताइवान देश की सरकार से तो, इन दोनो आयोगो ने बात तक ही नहीं की थी.
1999 में मनोज कुमार मुखर्जी के नेतृत्व में तीसरा आयोग बनाया गया. ताइवान सरकार ने मुखर्जी आयोग को बताया कि 1945 में ताइवान की भूमि पर कोई हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हुआ ही नहीं था लेकिन भारत सरकार ने मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया था. इस प्रकार नेताजी की मौत का सवाल फिर अनुत्तरित रह गया.
एक मान्यता ये भी है कि विश्वयुद्ध में जापान के घुटने टेक देने के बाद नेताजी, आगे की लड़ाई लड़ने की तैयारी के लिए रूस चले गए थे और अपने विश्वस्तों के माध्यम से अपनी मौत की खबर फैला दी थी. पहले रूस ने उनकी मदद की लेकिन बाद में भारत के आजाद होने पर नेहरु से उनको ज्यादा फायेदा महसूस हुआ और उन्होंने नेताजी को कैद में दाल दिया.
बहरहाल जो भी हुआ हो लेकिन 18 अगस्त की हवाई दुर्घटना में नेताजी की मौत पर न तो इंगलैंड को भरोसा था और न ही अमेरिका को. नेहरु और गांधी को भी इस बात पर विशवास नहीं था और उन्होंने आजादी के बाद भी नेताजी के पकडे जाने पर, उनको अंग्रेजों को सौंपने का बचन दिया था. यदि अंग्रेजो को उनकी मौत का विस्वास होता तो यह शर्त नहीं रखते
आजादी के बाद नेताजी के विश्वस्त साथी रहे "शाहनवाज खान" से उम्मीद थी कि - वे नेताजी के बारे में सही तथ्य सामने लाने का प्रयास करेंगे. मगर उन्हें आजाद भारत में नेताजी के बजाय नेहरु का साथ देने में ज्यादा लाभ दिखाई दिया. नेहरु द्वारा आजाद हिन्द फ़ौज के सेनानियों को "स्वतंत्रता सेनानी" मानने से इनकार करते समय भी वे खामोश रहे.
जनता के दबाब में नेताजी का पता लगाने के लिए बनी कमेटी के वे अध्यक्ष भी रहे, मगर उन्होंने केवल टाइम पास किया और कोई ठोस जांच नहीं की. बोस के बारे में हमेशा से ही रहस्य बना रहा है और यह साबित नहीं हो सका है कि उनकी मौत किस तरह हुई. जापान सरकार का दावा है कि - उनकी अस्थियाँ वहाँ के एक बौद्ध मंदिर में सुरक्षित रखी गई हैं.

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