हिन्दुओ पर अक्सर जातिवाद का आरोप लगता रहता है कि - जन्म के आधार पर भेदभाव किया जाता है. जातिवाद के दुष्परिणाम को देखकर, हिन्दुओं ने तो अपनी इस कमी को पहेचानकर दूर कर लिया. सदियों से उपेक्षा का शिकार रहे लोगों को, अनेकों सुबिधायें और अतिरिक्त अवसर देकर उनको साथ मिलाया.
अंतरजातीय विवाहों को कानूनी और सामाजिक मान्यता दिलाकर सबको एक समान मान लिया. लगभग सभी हिन्दुओं ने जातीय भेदभाव को ठुकरा दिया है. जो जो थोड़े बहुत लोग बचे हैं वो भी कुछ समय में समाप्त हो जायेंगे और मुझे पूरा विशवास है कि - आने वाली नई पीढी पूरी तरह से जातिवाद से मुक्त होगी.
लेकिन कुछ ऐसे संमुदाय जो जतिमुक्त और भाईचारे का ढोल पीटते हैं उनको करीब से देखने पर पता चलता है कि - उनमे जो जातिवाद वो तो बहुत ही खतरनाक स्तर पर है. हिन्दुओं में तो केवल छुआछुत या शोषण तक ही सीमित था जबकि उनके यहाँ तो इसके लिए किसी की ह्त्या, बलात्कार और देश के साथ गद्दारी तक की जा सकती है.
क्या सऊदी अरब में शियाओं से होने वाला भेदभाव जातिवाद नहीं है? क्या ईराक में तानाशाह सद्दाम द्वारा सत्ता के दम पर शियाओं के अधिकार छीनना जातिवाद नहीं है ? क्या सीरिया में यजीदियों पर अमानवीय अत्याचार जातिवाद नहीं है ? क्या बंगला देश में पापिस्तानियों द्वारा बांग्लाभाषियों पर अत्याचार भाषाई जातिवाद नहीं था ?
क्या भारत में अक्सर होने वाले सिया -सुन्नी दंगे जातिवाद का ही विकृत रूप नहीं है ?क्या 1857 के स्वाधीनता संग्राम के समय, आगाखान द्वारा संग्राम को शियाओं और हिन्दुओं की अंग्रेजों सत्ता की लड़ाई कहकर , सुन्नियों को इस लड़ाई से दूर रहने की सलाह देना जातिवाद नहीं था
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