Monday, 1 May 2017

"राम सेतु" बनाम "सेतु समुन्द्रम परियोजना" विवाद

यह एक ऐसा मुद्दा है जिस पर मैं बर्षो से पार्टी लाइन के बिरुद्ध लिखता आ रहा हूँ, क्योंकि मेरा मानना है कि - "सेतु समुन्द्रम परियोजना" देश के विकास और सामरिक महत्त्व की द्रष्टि से बहुत उपयोगी साबित होगी. इस परियोजना के बारे में अगर लोगों को ठीक से समझाया गया होता तो इस पर कोई विवाद ही नहीं होता.
"राम सेतु" बनाम "सेतु समुन्द्रम" विवाद केवल कुछ लोगों के दुर्भावनापूर्ण बयान देने की बजह से पैदा हुआ था. तत्कालीन सरकार द्वारा दिया गया हलफनामा इस विवाद की प्रमुख बजह था जिसमे कहा गया था कि- "राम" एक काल्पनिक पात्र है, राम कभी हुए नहीं थे इसलिए रामसेतु को तोड़ दिया जाना चाहिए".
सरकार के इस हलफनामे के बाद हिंदुओं में गुस्सा पैदा हो गया और वो रामसेतु को बचाने के उद्देश्य से सड़क पर आन्दोलन करने लगे. यदि इसके बजाय सरकार यह कहती कि - "लंका और भारत के बीच के समुद्री क्षेत्र से जहाज़ों को निकालने लिए "श्री राम नहर" का निर्माण किया जाएगा, तो कोई विवाद ही नहीं होता.
लोगों को बताया जाता कि - बम्बई से चेन्नई जाने वाले जहाज को, लंका के नीचे से लम्बा फेरा लगाते हुए और विदेशी समुद्र सीमा से होकर गुजरना पड़ता है. इसलिए स्वेज नहर और पनामा नहर की तरह लंका और भारत के बीच से छोटी सी नहर निकालकर, यह जल मार्ग बनाया जा रहा है , तो शायद कोई विवाद ही नहीं होता.
सैन्य द्रष्टि से भी इस नहर का बहुत महत्त्व है. अगर कभी युद्ध की परिस्थति हो और लंका दुश्मन का साथ दे रहा हो तो, भारतीय नौसेना के लिए आज के हालाल में बहुत ही मुश्किल होगी लेकिन अगर ये नहर बन जाती है तो भारत के लिए अरब सागर, हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी एक हो जायेगी और जहाजो को ले जाने में कोई परेशानी नहीं होगी.
लोगों को समझाया जाता कि- इस नहर के बन जाने से भारत के सैन्य एवं नागरिक जहाज, भारत की समुद्री सीमा में, सुरक्षित रूप से चल सकेंगे" तो किसी को ऐतराज नहीं होता. बैसे भी नहर को बनाने के लिए पुरे रामसेतु को तो तोड़ने की जरूरत थी नहीं. केवल पनामा और स्वेज की तरह एक नहर ही निकाली जानी थी, जिससे जहाज़ों जो गुजारा जा सके.
इसमें राम को काल्पनिक कहने या रामसेतु को तोड़ने की बात तो कंही आनी भी नहीं चाहिए थी. केवल जहाज निकलने के लिए रास्ता बनाने की बात ही होनी चाहिए थी. बैसे भी हमारे पूर्वजों ने सिखाया है कि आवश्यकता पड़ने पर समुद्र में पुल (रामसेतु) बनाया जा सकता है और पानी (गंगा) को मैदान में लाने के लिए पहाड़ को काटकर रास्ता बनाया जा सकता है.
रामसेतु की लम्बाई लगभग 26 कि.मी. है, जबकि नहर बनाने के लिए मात्र 50 मी. चौड़ा और 10 मीटर गहरा का मार्ग ही पर्याप्त होगा. स्वेज नहर भी केवल 48 मी चौड़ी, 10 मी गहरी है और 165 कि.मी. लंबी है, जिससे सारे जहाज निकलते है. पनामा नहर तो एक अत्यंत जटिल संरचना है जिसमें जहाज को नहर द्वारा पहाड़ी से पार कराया जाता है.
भारत के लिए तो इस तरह की कोई कुदरती समस्या भी नहीं है और मार्ग की लम्बाई भी बहुत कम है. अगर कोई कहता है कि इससे पर्यावरण सम्बंधी समस्या है, तो भगवान राम की सेना द्वारा पुल बनाए जाने से पहले भी तो वहाँ से जलमार्ग था ही. उससे पहले भी तो सारा समुद्र एक था और तब भी कोई पर्यावरण संबधी कोई समस्या नहीं रही होगी.
भगवान् राम द्वारा समुद्र पर सेतु बनाना और भगवान् राम के ही पूर्वज भागीरथ का गंगा को लाना, हमारे पूर्वजों के भूगोल बदलने बाले प्रेरणादायक कार्य रहे हैं. अगर भारत ऐसी विशाल परियोजना को पूरा कर लेता है तो दक्षिण एशिया में भारत एक महाशक्ति के रूप में उभर कर सामने आएगा. यह भारत के आर्थिक हित के लिए भी फायेदेमंद है.
मेरे ख्याल से काफी आगे बढ़ चुकी इस परियोजना को रोकने की खातिर, अमेरिका के इशारे पर कांग्रेसियों ने जानबूझ कर, भगवान राम के बारे ऐसे बयान दिए इससे हिंदुओं की भावनाएं आहत हो. उनको पता था कि - राम के बिरुद्ध ऐसे बयान देने पर, हिंदू इस परियोजना का बिरोध करेंगे और सरकार को परियोजना रोकने का बहाना मिल जाएगा.
हिंदुओं के बयान आने के बाद सरकार ने जितनी फुर्ती इस परियोजना को रोकने में दिखाई है, क्या कभी उतनी ही फुर्ती हिंदुओं की अन्य मांगों (धारा-370, गौ-हत्या पर प्रतिबन्ध, सामान नागरिक संहिता, राम जन्मभूमि मंदिर, आदि) को मानने में दिखाई है ? नेताओं के उलटे-सीधे बयानों की बजह से ही यह परियोजना विवादों में आई है.
यह प्रोजेक्ट सामरिक (सैन्य) महत्त्व के साथ साथ , व्यापारिक , धार्मिक , पर्यटन के लिहाज से बहुत ही लाभदायक है. इस नहर को "श्री राम नहर" नाम दिया जाए . नहर के पास "भगवान् श्री राम" और " लंकेश विभीषण" की मित्रता को समर्पित एक भव्य मंदिर का निर्माण किया जाए, तो सारे विवाद खुद व खुद ख़त्म हो जायेंगे.
इसके अलावा इसके नजदीक स्थित ज्योतिर्लिंग "रामेश्वरम" को भव्य पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाए, तो स्थान पुरे देश को जोड़ने में भी सहायक साबित होगा. इस के साथ साथ यह ऐसा भौगोलिक क्षेत्र है जहां बहुत बड़ा ज्वारीय बिजलीघर भी बनाया जा सकता है. मेरा सरकार से निवेदन है कि इस परियोजना पर पुनर्विचार किया जाए.


1 comment:

  1. shayad aapke netao ki ul jalool bhashan wazi ne hi ram mandir banane me adanga laga rakha hai
    kyuki unko ise rokne me hi apna rajnaitik fayeda dikhta hai
    aapke labboluaab se to

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