Sunday, 21 May 2017

हिन्दुओ : जातिपात छोड़कर संगठित हो

ब्राह्मण के घर जन्मी गैर संसकारी संताने भी अपने को श्रेष्ठ ब्राह्मण बताते फिरेते हैं. हड्डी के ढाँचे जैसा शरीर लेकर घूम रहे क्षत्रीय पुत्र भी अपने आपको बड़ा सूरमा बताते घूमते है, व्यापार करने के बजाय दूसरों की नौकरी (गुलामी) करने वाले बड़े गर्व से अपने आपको भामाशाह समझते हैं और शेष आरक्षण के लिए लड़ते नजर आते हैं.
हिन्दू जातपात को भूलकर एकजुट तब ही होते हैं जब कोई भारी मुसीबत आई हुई हो वरना जातियों के नाम पर आपस में ही लड़ते रहते हैं. किसी ने सच ही कहा है कि - चार हिन्दू एक साथ, एक दिशा में, केवल तब ही चलते हैं, जब उनके कंधो पर अपने किसी प्रिय की अर्थी हो. अर्थात हिन्दू केवल तब ही एकजुट होते हैं जब उनपर कोई बड़ी मुसीबत आई हो.
गजनवी के भांजे "सैयद सालार मसूद" जब अयोध्या विध्वंश के लिए निकला तो उसका सामना दलित राजा सुहेल देव पासी के नेतत्व में 17 राजाओं ने मिलकर किया. तैमूर जब दिल्ली को लूटने के बाद हरिद्वार विध्वंस को निकला तो उसको महावली जोगराज गुर्जर, हरवीर जाट, दुर्जनपाल अहीर, दलित "धूला धाड़ी" और नागा साधुओं ने मिलकर किया.
जालिम शहंशाह अकबर ने जुल्म ढाय तो, प्रताप "महान" के नेतृत्व में राजपूत से लेकर कोल-भील ने मिलकर उनका मुकाबला किया तथा बनियों और किसानो ने उनको भोजन और धन उपलब्ध कराया. औरंगजेब ने जब हिन्दुस्थान पर कहर बरपाया तो पंजाब, ब्रज, बुंदेलखंड, महाराष्ट्र के सभी वर्गों के लोगों ने मिलकर उसका सामना किया.
अंग्रेजों से मुकाबला करने में क्रांतिकारियों ने जाती / धर्म छोड़कर जो एक जुटता दिखाई थी, उसकी मिशाल तो सदियों तक दी जाती रहेगी. आजाद भारत में भी जिन -जिन जगहों पर, हिन्दुओं ने दंगा झेला है , वहां पर कोई भी हिन्दू जातिवाद की बात नहीं करता. लेकिन सामान्य जीवन जीते समय, वे सदैव एक दुसरे को नीचा दिखाने में लगे रहते है.
तब वे भूल जाते हैं कि जिनको वो नीचा दिखा रहे हैं वो भी हमारे अपने हैं. गुलामी के दौर में, विधर्मी शासकों द्वारा , हमारे वर्ण व्यवस्था को जाती प्रथा में बदला गया और विदेशी / विधर्मी शासकों ने हमें जाती के नाम पर आपस में लड़ाकर खुद शासन किया. लेकिन अनेकों कुरबानिया देने के बाद जब आजादी मिली तो फिर से आपस में लड़ना शुरू कर दिया.
आजाद भारत में जब जातियों को मिटाकर सबको एक समान घोषित करने की आवश्यकता थी, तब कुछ तथाकथित महान (?) बुद्धिजीवियों ने आरक्षण का बिषबीज बोकर समाज को छिन्न-भिन्न कर दिया. देश की जनता को इन धूर्तों ने जाती में बाँट दिया. ये शातिर समाज को जातियों के नाम पर लड़कर अपना उल्लू सीधा करने में लगे हुए हैं.
जातियों के नाम पर आदोलन (दंगा फसाद) करना देश को कमजोर कर रहा है. हिन्दुस्थान की शत्रु शक्तिया बहुत चालाकी से हिन्दुस्थानियों को आपस में लड़ाने के प्रयास में लगी हुई हैं. आरक्षण समर्थक और आरक्षण बिरोधी दोनों को ही भडकाने का प्रयास लगातार चल रहा है . यदि समय रहते नहीं सम्हले तो देर से हुई एकजुटता भी आपको बचा नहीं पायेगी.

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