Wednesday, 31 May 2017

महारानी अहिल्याबाई होलकर

रानी अहिल्याबाई छोटे से राज्य इंदौर की रानी थी, लेकिन उन्होंने जिस तरह से अपने राज्य का कुशल संचालन किया तथा उसे सशक्त और सम्रद्ध बनाया, उसके लिए उनका नाम महान साम्राज्ञी के रूप में लिया जाता है. उन्होंने मुग़ल काल में तोड़े गए अनेको मंदिरों का पुनरुद्धार कराया था, इसके लिए उनको हिन्दू ह्रदय साम्राज्ञी भी कहा जाता है.
अहिल्याबाई का जन्म 31 मई सन् 1725 में एक साधारण परिवार में हुआ था, लेकिन उनकी विद्वता से प्रभावित होकर, इन्दौर के महाराजा "मल्हार राव होल्कर" ने अपने पुत्र "खंडेराव" का विवाह उनसे से करवा दिया. उनके एक पुत्र (मालेराव) और एक पुत्री (मुक्ताबाई) थी. राजा मल्हार राव ने अपनी पुत्रबधू को सैन्य प्रशिक्षण भी दिल्बाया.

जब वे मात्र 29 बर्ष की थीं और बच्चे भी बहुत छोटे थे, तब ही सन 1754 में उनके पति "खंडेराव" का देहांत हो गया. पति के देहांत के बाद उन्होंने राज्य का संचालन सम्हाला और अपने स्वसुर के मार्गदर्शन में, उन्होंने इतनी कुशलता से राज्य का प्रशासन चलाया कि - उनकी गणना आज दुनिया के आदर्श शासकों में की जाती हैं.
रानी अहिल्याबाई भगवान शिव की भक्त थीं. उन्होंने भगवान् शिव को राज्य का राजा घोषित किया था तथा स्वयं उनकी सेविका बनकर राज्य का संचालन किया. उनका रहन-सहन बिल्कुल सादा था. जितनी कुशकता से वे राज्य का संचालन करती थी उतनी ही निष्ठा से वे भगवान का पूजन और श्रेष्ठ धर्मग्रंथो का अध्ययन करती थीं.
उन्होंने अपने राज्य के प्रशासन को जिला, तहसील और पंचायत में बाँट दिया. जिलों का कार्य उनके मंत्री देखते थे लेकिन अंतिम निर्णय रानी अहिल्याबाई का ही होता था. उनके शासन में व्यवसाय का बहुत विस्तार हुआ. दूर दूर से आकर कारीगर वहां बसने लगे और देखते ही देखते मालवा बस्त्र निर्माण का केंद्र बन गया.
उस समय नियम था कि पति की म्रत्यु के बाद यदि पुत्र न हो तो सम्पति पर सरकार का कब्जा हो जाता था उन्होंने विधवा को सम्पत्ति का अधिकार दिलवाया. वे युद्ध के समय में हाथी पर बैठकर स्वयं युद्ध का नेत्रत्व करती थीं. वे भगवान शिव की भक्ते थीं और इसलिए उन्हों ने 1777 में विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया.
इसके अलावा उन्होंने काशी, गया, सोमनाथ, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, द्वारिका, बद्रीनारायण, रामेश्वर, जगन्नाथ पुरी इत्यादि प्रसिद्ध तीर्थस्थानों पर मंदिर बनवाए और तीर्थयात्रियों के लिए धर्म शालाएं खुलवायीं. कलकत्ता से बनारस तक की सड़क, बनारस में अन्नपूर्णा का मन्दिर , गया में विष्णु मन्दिर उनके बनवाये हुए हैं.
इसके अतिरिक्त इन्होंने अनेको नदियों पर घाट बनवाए, कुओं औरबावड़ियों का निर्माण करवाया, मार्ग बनवाए, भूखों के लिए अन्नक्षेत्र (लंगर) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं, मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति की तथा शास्त्रों के मनन-चिंतन और 
प्रवचन की भी अनेकों व्यवस्थाएं कीं. 13 अगस्त सन् 1795 को उनका स्वर्गवास हो गया.

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