Monday, 1 May 2017

भगवान् परशुराम

भगवान परशुराम की आराधना करने से अगले ...पौरोणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म महर्षि जमदग्नि एवं रेणुका के यहाँ वैशाख शुक्ल तृतीया (अक्षय तृतीया) को हुआ था. उन्हें भगवान विष्णु का छठा अवतार भी माना जाता है. उन्हें भगवान विष्णु का आवेशावतार भी कहा जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार परशुराम का जन्म शाहजहांपुर के "जलालाबाद" में हुआ था
उनकी कर्मभूमि जौनपुर का "जमैथा गांव" था जहां इनके पिता महर्षि ऋषि यमदग्नि का आश्रम आज भी है. जौनपुर जिले का पुराना नाम "यमदग्निपुरम" था लेकिन बाद में इसे जौनपुर कह जाने लगा. वे भार्गव गोत्र की सबसे आज्ञाकारी सन्तानों में से एक थे. वे सदैव अपने गुरुजनों और माता पिता की आज्ञा का पालन करते थे.
वे पशु-पक्षी एवं प्रकृति के रक्षक थे और तत्कालीन राजाओं द्वारा निरपराध जंगली जानवरों के शिकार का बिरोध करते थे. उनका कहना था कि राजा का धर्म, "वैदिक जीवन शैली" का प्रसार करना है न कि अपनी प्रजा से आज्ञापालन करवाना. उनको क्षत्रियों का शत्रु बताया जाता है जबकि वे क्षत्रियों के शत्रु नहीं बल्कि शुभचिंतक थे.
Image may contain: sky and outdoorपरशुराम केवल कुशाशक और निरंकुश क्षत्रिय राजाओं के विरोधी थे. रामायण और महाभारत काल में जब संपूर्ण पृथ्वी पर क्षत्रियों का राज था, तब अनेकों क्षत्रीय राजाओं को उनका आशीर्वाद प्राप्त था. इक्ष्वाकु वंश के मर्यादा पुरुषोत्तम राम को आशीर्वाद देने वाले, कौरव नरेश धृतराष्ट को पाण्डवों से संधि करने की सलाह देने वाले परशुराम ही थे.
वे हर वर्ण के लोगों के शुभचिंतक थे. ब्राह्मण द्रोंण, क्षत्रीय भीष्म और शूद्र कर्ण के गुरू भी थे. समाज सुधार में परशुराम का बहुत ही बड़ा योगदान रहा है . परशुराम ने शुद्र माने जाने वाले दरिद्र नारायणों को शिक्षित व दीक्षित कर उन्हें ब्राहम्ण बनाया और दुराचारी व आचरणहीन ब्राह्मणों को शूद्र घोषित कर उनका सामाजिक बहिष्कार किया.
वे वाल विवाह और बहु विवाह के बिरोधी थे. वे सभी के लिये आजीवन एक पत्नीव्रत को अपनाने के पक्षधर थे. उन्होंने अत्रि की पत्नी अनसूया, अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा व अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से स्त्रियों के अधिकार के लिए "नारी-जागृति अभियान" का संचालन किया था. वे आठ चिरंजीवी महामानवों में से एक हैं.
निरंकुश कुशाशक हिष्मती नरेश "कार्तवीर्य अर्जुन" द्वारा उनके पिता की हत्या, आश्रम के बिनाश और गायों के अपहरण से कुपित व क्रोधित होकर परशुराम ने हैहय वंश के विनाश का संकल्प लिया था. इसके लिए उन्होंने केवल आवेश में आकर युद्ध नहीं किया बल्कि एक पूरी सामरिक रणनीति बनाकर दो वर्ष तक पूरी तैयारी करने के बाद युद्ध किया.
इन दो बर्षों में उन्होंने ऐसे सूर्यवंशी, चन्द्रवंशी और यदुवंशी राज्यों की यात्राएं की, जो हैह्य वंद्रवंशीयों के विरोधी थे. वाकचातुर्थ और नेतृत्व दक्षता के कारण परशुराम को ज्यादातर चंद्रवंशीयों ने समर्थन दिया. इसमें परशुराम को अवन्तिका के यादव, विदर्भ के शर्यात यादव, पंचनद के द्रुह यादव. कन्नौज के गाधिचंद्रवंशी, आर्यवर्त सम्राट सुदास सूर्यवंशी,
Image may contain: outdoor, possible text that says 'परशुराम कुण्ड, अरुणाचल प्रदेश'
गांगेय प्रदेश के काशीराज, गांधार नरेश मान्धता, अविस्थान (अफगानिस्तान), मुजावत (हिन्दुकुश), मेरु (पामिर), श्री (सीरिया). परशुपुर (पारस - वर्तमानफारस) सुसर्तु (पंजक्षीर). उत्तर कुरु (चीनी -तुर्किस्तान), आर्याण (ईरान), देवलोक (षप्तसिंधु) और अंग-बंग (बिहार के संथाल परगना से बंगाल) तथा असम तक के राजाओं ने इस महायुद्ध में भागीदारी की.
जबकि शेष रह गई क्षत्रिय जातियां चेदि (चंदेरीद्ध नरेश), कौशिक यादव, रेवत तुर्वसु, अनूप, रोचमान कार्तवीर्य अर्जुन की ओर से लड़ीं. इस भीषण युद्ध में अंततः कार्तवीर्य अर्जुन और उसके कुल के लोग तो मारे ही गए. युद्ध में अर्जुन का साथ देने वाली जातियों के वंशजों का भी लगभग समूल नाश हुआ. भरतखण्ड में यह एक बड़ा महायुद्ध था
परशुराम ने अंहकारी व उन्मत्त क्षत्रिय राजाओं को मार गिराया.ऐसा माना जाता है कि कुल 21 क्षत्रीय राजा सहत्रबाहु के साथ थे. उन 21 राजाओं के विनाश को ही कह दिया जाता है कि 21 बार क्षत्रियों का संहार किया था   युद्ध के बाद लोहित क्षेत्र, अरुणाचल में पहुंचकर ब्रहम्पुत्र नदी में अपना फरसा धोया था. बाद में यहां पांच कुण्ड बनवाए गए जिन्हें समंतपंचका रुधिर कुण्ड कहा गया है. ये कुण्ड आज भी अस्तित्व में हैं. इन्हीं कुण्डों में परशुराम ने युद्ध में हताहत हुए भृगु व सूर्यवंशीयों का तर्पण किया.
इस युद्ध के बाद परशुराम ने समाज सुधार व कृषि के प्रकल्प हाथ में लिए . केरल, कोंकण, मलबार और कच्छ क्षेत्र में समुद्र में डूबी ऐसी भूमि को बाहर निकाला जो खेती योग्य थी. शूद्र माने जाने वाले लोगों को उन्होंने वन काटने में लगाया और उपजाउ भूमि तैयार करके धान की पैदावार शुरु कराईं. ऐसे शूद्रों को उन्होंने शिक्षित व दीक्षित कर ब्राहम्ण बनाया.
Image may contain: sky and outdoorसंस्कारी शूद्रों को उन्होंने जनेउ धारण कराकर ब्राह्मण घोषित किया और अक्षय तृतीया के दिन एक साथ हजारों युवक-युवतियों को परिणय सूत्र में बांधा था. बिना किसी जाति -बिचार के सामूहिक विवाह कराने का यह प्रथम उदाहरण माना जाता है. इस सामूहिक विवाह में उन्होंने, युद्ध में मारे गए लोगों की विधवाओं का भी पुनर्विवाह करवाया था .
परशुराम जी के इन्ही कार्यों की बजह से, उनके अनुयायी उन्हें भगवान के रुप में पूजते हैं. सभी हिन्दुओं को चाहिए कि -परशुरामपुरी का नाम फिर से परशुरामपुरी करने की मांग करें जिसे मुग़लकाल में जलालाबाद कर दिया गया था इसके साथ परशुराम जी के जन्म स्थल पर भव्य मंदिर बनाने का अभियान चलाये
भगवान् परशुराम के जन्मदिवस पर एक बार फिर कोटि कोटि अभिनन्दन

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