अंग्रेजों ने जब भारत में सेना का गठन किया तो, अंग्रेजों ने एक बहुत ही शातिर चाल चली. अंग्रेजों ने विभिन्न रेजीमेंट्स बनाई और उनके नाम क्षेत्र और जातियों के नाम पर रखे. जैसे सिक्ख रेजीमेंट, राजपुत रेजीमेंट, जाट रेजिमेंट, महार रेजीमेंट, कायमखानी रेजीमेंट, डोगरा रेजिमेंट, मराठा लाइट इन्फेंट्री, कुमायूं रेजीमेंट, मद्रास रेजिमेंट, गढ़वाल राइफल्स, गोरखा राइफल्स, बिहार रेजिमेंट, असम रेजिमेंट, आदि.
जाती और क्षेत्र के नाम पर रेजिमेंस का नाम रखने के साथ ही अंग्रेजों एक और चाल चली. प्रत्येक रेजिमेंट को यह कहा जाता था कि - तुम ही सबसे ज्यादा बहादुर हो , तुम्हारे सामान बहादुर दुसरी कोई और रेजीमेंट नहीं है. अंग्रेजों से ऐसा सुनकर, उनमे अपनी रेजीमेंट, जाती और क्षेत्र के प्रति अभिमान पैदा हो जाता था. वे अपनी तारीफ़ सुनकर घमंड से भर जाते थे तथा अन्य रेजीमेंट्स को कमजोर समझने लगते थे.
यह फार्मूला अंग्रेज सभी रेजीमेंट्स पर लागु करते थे. इसकी बजह से उन फौजियों के मन में भी अन्य रेजीमेंट को तुच्छ समझने की भावना जाग्रत हो जाती थी और रिटायरमेंट के बाद भी जब वे फ़ौजी आपस में कहीं मिलते थे तो अपने को ऊंचा तथा सामने वाले को नीचा दिखाने का प्रयास करते थे. ऐसे ही उंच-नीच की भावना उन्होंने सेना के तीनो अंगों ( जल , थल, वायु) में भी एक दुसरे के प्रति भर दी थी.
1857 की सैन्य क्रान्ति के बाद अंग्रेजों ने जानबूझकर ऐसा किया था. उस समय बहुत सारे सैनिक अंग्रेजों के खिलाफ बगावत पर उतर आये थे. ऐसा अंग्रेजों ने अपनी फूट डालो और राज करो की पालिसी के तहत ही किया था. सेना को जाति और क्षेत्र में बांटने के बाद अगले 90 साल तक भारत में कोई सैन्य बगावत नहीं हुई. सारे सैनिक अपनी अपनी जाती और क्षेत्र के अभिमान को साथ लेकर बड़े मजे से अंग्रेजो की गुलामी करते रहे.
देश आजाद होने के बाद भी हमारे नेताओं ने इसे नहीं बदला. शायद उनको अपने अंग्रेज मालिको का फूट डालकर राज करने का तरीका उनको भी भा गया था. उन नेताओं ने तो सेना के अलावा राजनीति को भी जाति और धर्म में कुछ इस तरह बाँट दिया कि - प्रत्येक जाति और क्षेत्र वाले को यह लगने लगा कि - उनकी हितैषी केवल कांग्रेस है. वे सब आपस में तो एक दुसरे से लड़ते रहते लेकिन सारे के सारे अपनी वोट कान्ग्रेस को ही देते.
देश में जातिवाद और क्षेत्रवाद बढ़ाने में इन रेजीमेंट्स का भी बहुत बड़ा हाथ रहा है. मेरा सरकार से निवेदन है कि - वो देश से जातिवाद और क्षेत्रवाद को ख़त्म करने के लिए, अब सैन्य रेजीमेंट्स के नाम बदल दे. इनका नाम जाति और क्षेत्र के बजाय महापुरुषों के नाम पर भी रखा जा सकता है या कोई भी अन्य नाम भी दिया जा सकता हैं. अब समय आ गया है कि - देश से जातिवाद, क्षेत्रवाद और सम्प्रदायवाद का खात्मा किया जाए.
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