द्वितीय स्वतंत्रता संग्राम के सूत्रधार "स्वातंत्र्यवीर सावरकर" के जन्मदिवस (28 मई) पर कोटि कोटि नमन
*****************************************************************************************************1857 की क्रान्ति की असफलता के बाद अधिकाँश भारतीय निराश होकर बैठ गए थे. वे यह मान चुके थे कि अंग्रेजों को पराजित करना असंभव है. तब पचास साल बाद महान स्वतंत्रता सेनानी "स्वतंत्र्यवीर सावरकर" ने देश को इस भ्रम से निकालने और देश को पुनः एक और बड़ी क्रान्ति के लिए खडा करने का कार्य किया. स्वातंत्र्यवीर विनायक दामोदर सावरकर ने अपना सारा जीवन देश के लिए समर्पित कर दिया था.

वीर सावरकर द्व्रारा "अभिनव भारत" की स्थापना, पुणे में विदेशी वस्त्रों की होली, "1857 - प्रथम स्वातंत्र समर" ग्रन्थ लिखना, नाशिक षड्यंत्र, कालापानी की सजा आदि जैसी बड़ी घटनाओं के होने के समय तक तो गांधीजी का भारत में आगमन तक नही हुआ था. "सावरकर" ने 1904 में "अभिनव भारत" नामक एक क्रान्तिकारी संगठन की स्थापना की थी, जिसने देशविदेश में क्रान्ति की लहर पैदा करदी थी.

उन्होंने "1857- प्रथम स्वातंत्र समर" नाम का ग्रन्थ लिखकर देशवाशियों में क्रान्ति की ज्वाला को भड़का दिया था. सभी क्रांतिकारी उसका धर्मग्रन्थ जैसा सम्मान करते थे. इसके लिए अंग्रेजों ने उन्हें कालापानी जेल भेज दिया, कालापानी का जेल अधीक्षक "मिर्जाखान" क्रांतिकारियों पर बहुत जुल्म करता था. मिर्जाखान ने उन पर भी खूंखार कैदियों की तरह अमानवीय अत्याचार किये. 4- जुलाई,1911 से लेकर 21 मई, 1921 तक दस साल पोर्ट ब्लेयर की "कालापानी" जेल में रहकर अमानवीय यातनाएं झेलीं.
देश को आजादी दिलाने में उनके ग्रन्थ का बहुत बड़ा योगदान था. इस ग्रन्थ को चोरी छुपे छपवाना और प्रचारित करना उस युग में महान क्रांतिकारी कार्य माना जाता था. सावरकर के ग्रन्थ से नाराज अंग्रेज उन्हें बड़ी सजा देना चाहते थे, लेकिन किताब लिखना इतना बड़ा गुनाह नहीं था कि उन्हें उम्रकैद/फांसी दी जा सके, इसलिए उन्हें "नासिक" के कलेक्टर "जैकसन" की हत्या के षडयंत्र का आरोप लगाकर कालापानी की सजा दी गई थी,
आजाद भारत में कांग्रेस सरकार ने भी उनका महत्व कम करने की सदैव कोशिश की. 1913 की याचिका को, कांग्रेसी उनका माफीनामा बताकर देश को गुमराह करते रहते हैं, जबकि वह याचिका भी खारिज कर दी गई थी, और सावरकर को उसके 8 साल बाद तक कालापानी तथा 3 साल तक रत्नागिरी जेल में रखा गया था. जेल से रिहाई के बाद भी उनपर खुफिया पुलिस की नजर रहती थी, पहले अंग्रेज सरकार फिर नेहरु सरकार द्वारा
अंग्रेजी सरकार लम्बे समय तक केस चलाने के बाबजूद उन्हें "नासिक षड्यंत्र" में गुनाहगार साबित नही कर सकी और रिहा करना पडा. लेकिन कालापानी से रिहा होने के बाद भी तीन साल रत्नागिरी जेल में रखा गया. क्रांतिकारी करतार सिंह सराभा के कहने पर, "सरदार भगत सिंह" भी "वीर सावरकर से जेल में मिले थे. सावरकर ने ही भगत सिंह को 'चन्द्र शेखर आजाद" के गुट में शामिल होने की सलाह दी थी.
सावरकर प्रारम्भ में पूरी तरह से धर्म निरपेक्ष थे. उन्होंने अपने ग्रन्थ में 1857 की लड़ाई में शामिल होने वाले सभी मुस्लिम वीरो को भी बहुत सम्मान दिया था. अंग्रेजी इतिहास में गलत बताये गए बहादुर शाह जफ़र, वाजिद अली शाह, बेगम हजरत महल, आदि को उन्होंने महान क्रान्तिकारी लिखा था. लेकिन 1921-24 में मालावार, कोहाट, मुल्तान, में हुए दंगे में हिन्दुओं पर हुए अत्याचार ने उनकी सोंच को हिन्दू हितैषी बना दिया था.

प्रथम स्वाधीनता संग्राम के वीरों सम्मान दिलाने वाले सावरकर को, आजाद भारत में खुद वह सम्मान नही मिला जिसके वे हक़दार थे. गांधीजी की ह्त्या के बाद 5 फ़रवरी 1948 को उन्हें भी प्रिवेन्टिव डिटेन्शन एक्ट धारा के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था, जिसमे वे निर्दोष साबित हुए. 4 अप्रैल 1950 को पाकिस्तानी प्रधान मंत्री "लियाक़त अली ख़ान' के दिल्ली आगमन पर भी उन्हें बेलगाम जेल में बंद कर दिया था.
10 नवम्बर 1957 को नई दिल्ली में आयोजित हुए, "1857" के प्रथम भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के "शाताब्दी समारोह" में वे मुख्य वक्ता रहे. 8 - अक्टूबर 1959 को उन्हें पुणे विश्वविद्यालय ने डी०.लिट० की मानद उपाधि से अलंकृत किया. 26 फ़रवरी 1966 को बम्बई में भारतीय समयानुसार प्रातः 10 बजे उन्होंने पार्थिव शरीर छोड़कर परमधाम को प्रस्थान किया.
राष्ट्र के महानायक को हम उनके जन्मदिवस पर एक बार फिर कोटि कोटि नमन करते हैं
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