( सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार पर अंकुश रखने का उपाए )
जिस किसी भी व्यक्ति का, कोई भी काम, किसी भी सरकारी विभाग में पडा है वो अच्छी तरह से जानता है कि – यह लोग रिश्वत लेने के लिए पब्लिक को किस तरह से परेशान करते हैं. इन सभी सरकारी विभागों ने प्रत्येक कार्य के साथ अनेकों तरह की जटिलताएं जानबूझ कर जोड़ रखी हैं जिससे कि पब्लिक को उनमे उलझाकर परेशान किया जाए और जब वह रिश्वत दे तो बिना किसी झंझट के काम कर दिया जाए.
इससे यह साफ़ पता चलता है कि - उन फार्म्लटीज की वास्तव में कोई आवश्यकता होती ही नहीं है. वो फार्म्लटीज केवल इसलिए बनाई जाती हैं कि- अगर कोई व्यक्ति बिना रिश्वत दिए ईमानदारी से काम कराना चाहे तो उसको फार्म्लटीज के चक्रव्यूह में फंसा दिया जाय. जब वो वहां से हिम्मत हार जाए तो रिश्वत लेकर उसका काम कर दिया जाय , उसकी हालत देखकर अन्य लोग भी डर जाते है और रिश्वत दे देते हैं.
इसके लिए सार्वजनिक सूचना देकर पब्लिक से जानकारी मांगी जानी चाहिए कि – उसको कब कब और किस काम के लिए सरकारी कर्मचारियों को रिश्वत देनी पडी थी. रिश्वत न देने पर उसे किन फार्म्लटीज में उलझाया गया था और रिश्वत देने के बाद उसे उन फार्म्लटीज को पूरा करने की कोई आवश्यकता नहीं पडी थी. ऐसी सभी फार्म्लटीज को ख़त्म किया जाना चाहिए.
यदि फार्म्लटीज और रिश्वत के चक्रव्यूह को तोड़ दिया जाए, तो हमारे देश में वो प्रतिभा और संसाधन हैं कि हमारे देश को आर्थिक महाशक्ति बनने से कोई रोक नहीं सकता है. इसके अलाबा प्रत्येक कार्य के लिए सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों की जबाबदेही तय होनी चाहिए कि – कौन सा काम कितने समय में होगा और यदि कोई कमी भी है तो वह उसकी लिखित सुचना देने को बाध्य होगा.
इतनी मोटी-मोटी तन्खाये लेने के बाबजूद, अक्सर कुछ सरकारी कर्मचारी, अपना काम करना नहीं चाहते हैं लेकिन तनखा और सुबिधाओ को बढ़बाने के लिए जबतब हड़ताल करते रहते हैं. इस प्रव्रत्ति पर अंकुश रखने के लिए प्रत्येक सरकारी कर्मचारी को अपना स्वयं का रिपोर्टकार्ड बनाने को कहा जाना चाहिए. यह रिपोर्टकार्ड उस कर्मचारी को खुद ही भरना चाहिए और महीने बाद जमा करना चाहिए.
कार्ड में पूरे माह का कैलेण्डर हो जिसमे किस दिन कितना काम किया और उस कार्य की कीमत वह खुद कितने रूपय समझता है उसे भरना चाहिए. अपने इस रिपोर्टकार्ड को देखकर अधिकतर सरकारी कर्मचारी शर्मिन्दा होंगे और हो सकता है कि उनका जमीर जाग जाए और वे ईमानदारी से उतनी कीमत का कार्य करने लग जाएँ, जितनी कीमत वे सरकार ( पब्लिक ) से लेते हैं.
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