Monday, 1 May 2017

त्योहारों पर खरीदारी का महत्त्व

अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर सभी को हार्दिक शुभकामनाये
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किसी भी नए काम को शुरू करने का यह उत्तम मुहूर्त माना जाता है. मान्यता है कि- इस दिन खरीदी गई किसी वस्तु या शुरू किए गए कार्य का का क्षय नहीं होता है. यह त्यौहार सम्पूर्णता का प्रतीक है, इसलिए मान्यता है कि - इसदिन किए गए सभी कार्यो में , लोगों को निरंतर वृद्धि की प्राप्ति होती है. आज के दिन स्वर्ण अथवा बहुमूल्य बस्तुओं को खरीदना बहुत ही शुभ माना जाता है.
अक्षय तृतीया के दिन भगवान परशुराम ने हजारों युवक-युवतियों का सामूहिक विवाह कराया था, इसलिए इस दिन को विवाह के लिए विशेष मुहूर्त माना जाता है. कुछ लोग इस खरीदारी की परम्परा की आलोचना कर उसका उपहास उड़ाने में भी लगे हुए हैं . वे नासमझ लोग यह नहीं जानते कि- ये परम्पराए व्यापार को गति देने के लिए, हमारे महान पूर्वजों की दूरद्रष्टि का परिणाम हैं.
पूँजी अगर एक जगह तिजोरी में रखी रहे तो उसका कोई महत्त्व नहीं है. बाजार में पैसे का घूमना , अर्थव्यवस्था को गति देता है. जब अर्थ व्यवस्था गतिशील रहती है केवल तब ही सभी के हाथ में पैसा आता है. हमारे देश के महान अर्थशास्त्रीयों ने अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए और खुशियाँ मनाने के लिए त्यौहार बनाए और उनमे अनेकों प्रावधान जोड़ दिए.
होली, दीपावली, धनतेरस, अक्षय तृतीया, नवरात्री, आदि अनेकों ऐसे त्यौहार हैं जिन पर लोग जमकर खरीदारी करते हैं. इससे पैसा नष्ट नहीं होता है बल्कि एक से दूसरे, दूसरे से दूसरे से तीसरे के पास पहुंचता है. इस तरह से अमीर से मध्यम और मध्य्यम से निम्न के पास पहुँचता है . अगर कोई अमीर व्यक्ति सोना खरीदता है तो सर्राफ, सुनार एवं अन्य छोटे कारीगर का भी घर चलता है.
दीपावली का त्यौहार आने का इन्तजार, आतिशवाजी का कारोवार करने वाले साल भर करते हैं. एक दिन की आतिशबाजी से पटाखा कारोबार से जुड़े लाखों लोगों को, पूरे सालभर का काम मिल जाता है. त्योहारों पर नए कपडे पहनने के रिवाज से कपडे वालों, दर्जियों आदि को काम मिलता है. हलवाइयों के लिए तो त्यौहार कारोवार बढाने वाले ही होते हैं. इन त्योहारों को बनाने का उद्देश्य ही यही था कि व्यापार गतिशील हो और लोगों के जीवन में उल्लाश आये.
अगर लोग पैसा खर्च न करें और अर्थव्यवस्था में गतिशीलता ख़त्म हो जाए, तो उसे व्यापारिक मंदी कहते हैं और मंदी कितना खतरनाक होती है ये हर व्यापारी जानता है. हमें अपने दूरदर्शी पूर्वजों का आभारी होना चाहिए कि - उन्होंने त्योहारों और तीर्थ यात्राओं के माध्यम से तरह-तरह के व्यापार को बढ़ावा देने के स्थाई उपाए दिए हैं. अत्यंत गरीब लोगों के लिए तो बैसे भी बरदान हैं, धर्म के नाम पर उनको भी दान आदि मिलता है .

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