
मुग़ल सेना न तो गुरु जी को गिरफ्तारकर सकी और न ही उनको मार सकी. उस पर भारी धन और सैनिको की हानि से बजीर खान को बहुत शर्मिंदगी थी कि वो दिल्ली, कश्मीर, लाहौर, सरहंद, मलेरकोटला, आदि की - दस लाख की संयुक्त फ़ौज के साथ भी गुरुजी का कुछ बिगाड़ नहीं सका. इसलिए जब उनके छोटे साहबजादे और माँ उसके हाथ आये तो उसने अपनी सारी भड़ास उन मासूम बच्चों और उनकी दादी पर निकाली.

नवाब ने उन्हें ठंड़े बुरज में कैद करके मुसलमान बनने के लिए मजबूर किया गया. जब वे ना माने तो उन्हें डराया धमकाया और ऊंचे पदों का प्रलोभन भी दिया, लेकिन इन वीर वालकों ने धर्म को त्यागने के बजाय जीवन को त्यागना बेहतर समझा. उनको दीवार में ज़िंदा चुनवाते समय भी उनपर जुल्म जारी रखे गए. जब दीवार घुटनों तक पहुंची तो घुटनों की चपनियों को तेसी से काटा गया ताकि दीवार टेड़ी न हो.
जुल्म की इंतिहा को इस बात से भी समझा जा सकता है कि - माता गुज़री और साहबजादों को दूध पिलाने वाले मोतीराम मेहरा जी, उनकी माँ, उनकी पत्नी और उनके बच्चों को कोल्हू में पेर कर शहीद कर दिया गया. सरहिंद के एक साहूकार दीवान "टोडरमल" ने जब उनका संस्कार करना चाहा, तो उसको कहा गया कि जितनी जमीन संस्कार के लिए चाहिए उतनी जगह पर सोने की मोहरे बिछानी पड़ेगी.

दीवान टोडरमल ने जितना सोना बिछकर संस्कार के लिए जमीन ली थी उसकी कीमत आज के समय में लगभग ढाई अरब रूपय बैठती है. 4 वर्ग गज जमीन के लिए इतनी बड़ी कीमत सारी दुनिया में आज तक कहीं नहीं चुकाई गई है. धन्य है अपने धर्म के लिए जान कुर्बान करने वाले और धन्य है इंसानियत के लिए अपना धन कुर्बान करने वाले.
जो वोले सो निहाल - सत श्री अकाल , जय हिन्द, वन्दे मातरम, भारत माता की जय
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