Monday, 15 May 2017

सरहिंद की दीवार और छोटे साहबजादे

गुरु तेग बहादुर का धर्म परिवर्तन कराने में नाकामयाब रहने के बाद औरंगजेब ने उनका क़त्ल करा दिया था. उसे समझ आगया था कि गुरु गोविन्द सिंह के रहते उसका पंजाब के लोगों को मुसलमान बनाने का सपना पूरा नहीं हो सकता. तब उसने सरहंद के नबाब "बजीरखान" के नेत्रत्व में 10 लाख की सेना भेजी. मगर 6 महीने की घेराबंदी और भारी हानि के बाबजूद वो गुरु गोविन्द सिंह का समर्पण नहीं करा सका.
मुग़ल सेना न तो गुरु जी को गिरफ्तारकर सकी और न ही उनको मार सकी. उस पर भारी धन और सैनिको की हानि से बजीर खान को बहुत शर्मिंदगी थी कि वो दिल्ली, कश्मीर, लाहौर, सरहंद, मलेरकोटला, आदि की - दस लाख की संयुक्त फ़ौज के साथ भी गुरुजी का कुछ बिगाड़ नहीं सका. इसलिए जब उनके छोटे साहबजादे और माँ उसके हाथ आये तो उसने अपनी सारी भड़ास उन मासूम बच्चों और उनकी दादी पर निकाली.
"औरंगजेब" के राज में "सरहंद" के नाबाब "बजीर खान" द्वारा मासूमों पर जुल्म किये गए और उनको मुसलमान बनने या ज़िंदा दीवार में चुनवाने का विकल्प दिया गया, लेकिन गुरु गोविन्द सिंह के पुत्र धर्म के मार्ग पर अडिग खड़े रहे. 26 दिसम्बर 1761 को इन दो वीर सपूतोँ ने, छोटी सी आयु में अपने प्राणोँ की परवाह न करते हुए अपने देश और धर्म के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया था.
नवाब ने उन्हें ठंड़े बुरज में कैद करके मुसलमान बनने के लिए मजबूर किया गया. जब वे ना माने तो उन्हें डराया धमकाया और ऊंचे पदों का प्रलोभन भी दिया, लेकिन इन वीर वालकों ने धर्म को त्यागने के बजाय जीवन को त्यागना बेहतर समझा. उनको दीवार में ज़िंदा चुनवाते समय भी उनपर जुल्म जारी रखे गए. जब दीवार घुटनों तक पहुंची तो घुटनों की चपनियों को तेसी से काटा गया ताकि दीवार टेड़ी न हो.
जुल्म की इंतिहा को इस बात से भी समझा जा सकता है कि - माता गुज़री और साहबजादों को दूध पिलाने वाले मोतीराम मेहरा जी, उनकी माँ, उनकी पत्नी और उनके बच्चों को कोल्हू में पेर कर शहीद कर दिया गया. सरहिंद के एक साहूकार दीवान "टोडरमल" ने जब उनका संस्कार करना चाहा, तो उसको कहा गया कि जितनी जमीन संस्कार के लिए चाहिए उतनी जगह पर सोने की मोहरे बिछानी पड़ेगी.
साहूकार "टोडरमल" घर के सब जेवर व सोने की मोहरें बिछा करके साहिबजादों व माता गुजरी का अंतिम संस्कार किया. इस काम में अन्य लोगों ने भी सहयोग दिया. संस्कार वाली जगह पर भव्य गुरुद्वारा "जोती स्वरूप" बना हुआ है और शहादत वाली जगह पर भी एक भव्य गुरुद्वारा "फतेहगढ़ साहब" सशोभित है. सरहंद में 25 दिसंबर से 27 दिसंबर को उन शहीदों की याद में शहीदी जोड़ मेले का आयोजन हर बर्ष किया जाता है.
दीवान टोडरमल ने जितना सोना बिछकर संस्कार के लिए जमीन ली थी उसकी कीमत आज के समय में लगभग ढाई अरब रूपय बैठती है. 4 वर्ग गज जमीन के लिए इतनी बड़ी कीमत सारी दुनिया में आज तक कहीं नहीं चुकाई गई है. धन्य है अपने धर्म के लिए जान कुर्बान करने वाले और धन्य है इंसानियत के लिए अपना धन कुर्बान करने वाले. 
जो वोले सो निहाल - सत श्री अकाल , जय हिन्द, वन्दे मातरम, भारत माता की जय

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