महाराणा प्रताप 'महान' केवल एक जाति (राजपूत), एक राज्य (राजस्थान) या एक देश ( भारत) के लिए ही आदर्श नहीं है बल्कि समस्त संसार के हर उस देशभक्त के लिए आदर्श हैं जो कम संशाधन होने के बाद भी बड़े से बड़े ताकतवर से टकराकर उससे जीतने का हौसला रखता है.
मराराणा प्रताप "महान" का आदर्श सामने रखकर वियेतनाम जैसे छोटे से देश ने अमेरिका जैसी महाशक्ति को युद्ध में हराया था. वियेतनाम के लोग आज भी "महाराणा प्रताप" को अपना गुरु मानते हैं. वियतनाम से आने वाला कोई भी राजनयिक या पर्यटक हल्दीघाटी / उदयपुर अवश्य जाता है.
महाराणा प्रताप को केवल राजपूत तक सीमित करना उनका मान कम करना है. महाराना प्रताप की सेना में कोल और भीलों की संख्या राजपूतों से भी ज्यादा थी. उनकी देशभक्ति से प्रभवित होकर भामाशाह जैसे धनवान वैश्यों ने अपनी सारी दौलत उनको सौंप दी थी.
महाराणा प्रताप के सैनिकों को, किसान और आम गृहस्त अपने से पहले भोजन कराते थे. महाराणा प्रताप से प्रभावित होकर लोहारों ने अपना घर त्याग दिया था जगह जगह घूमकर काम करते थे तथा प्रताप और उनके सैनिको के लिए हथियार बनाते थे. उनका संकल्प था कि देशभक्तों को हथियार की कमी नहीं होने देंगे.
ऐसे ही एक बार एक राजपूत योद्धा ने प्रताप से कहा कि - आप इन कोल भीलों को हमारी बरावरी में क्यों रखते हैं. तो प्रताप उठे और उन्होंने एक भील को उठाया और अपनी छाती से लगाया और बोले जो भी हमारी छाती से लग गया , वो क्षत्रीय बन गया. उनके बाद अभिवादन में छाती से लगाना शुरू कर दिया गया.
महाराणा प्रताप "महान" ने कसम खाई थी कि जब तक चित्तौड़ को आजाद नहीं करा लेंगे, तब तक जमीन पर सोयेंगे और साधारण बर्तनों में साधारण भोजन ही करेंगे. सारा मेवाड़ जीतने के बाद भी वे चित्तौड़ को आजाद नहीं करा पाए थे. जब अंतिम समय में उनको विस्तर पर लेटने को कहा तो, उन्होंने मना कर दिया और बोले चित्तौड़ अभी आजाद नहीं है.
उन्होंने 24 साल उदयपुर से राज्य किया. उनका राज्य इतना सम्रद्ध और शक्तिशाली था कि - अकबर की भी दोबारा हमला करने की हिम्मत नहीं हुई
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