बड़े साहबजादों (अजित /जुझार) के शहीदी दिवस (22 दिसम्बर) पर कोटि कोटि नमन
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"चमकौर की लड़ाई" इतिहास की दुर्लभ लड़ाइयों में से एक है, जिसमे 43 धर्मयोद्धाओं ने, दस लाख की मुघल सेना का सामना किया था. इस लड़ाई में गुरु गोविन्द सिंह के बड़े पुत्र अजीत सिंह एवं जुझार सिंह सहित 35 धर्मयोद्धा शहीद हुए थे तथा लगभग 10 हजार मुघल सैनिक मारे गए थे. लोककथाओं में तो यह संख्या एक लाख बताई जाती है.
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"चमकौर की लड़ाई" इतिहास की दुर्लभ लड़ाइयों में से एक है, जिसमे 43 धर्मयोद्धाओं ने, दस लाख की मुघल सेना का सामना किया था. इस लड़ाई में गुरु गोविन्द सिंह के बड़े पुत्र अजीत सिंह एवं जुझार सिंह सहित 35 धर्मयोद्धा शहीद हुए थे तथा लगभग 10 हजार मुघल सैनिक मारे गए थे. लोककथाओं में तो यह संख्या एक लाख बताई जाती है.

मई 1705 में मुग़ल सेना ने आनंदपुर साहब को घेर लिया. 6 महीने से ज्यादा चली घेराबंदी के कारण रसद ख़त्म हो गई. तब 21 दिसम्बर की बरसाती रात में गुरु जी ने आनंदपुर साहब को छोड़ने का निर्णय लिया और चुपचाप मालबा की तरफ प्रस्थान किया. मुघल सैनिको को जब इसका पता चला तो वे उनका पीछा करने लगे.
रास्ते में सरसा नदी में तेज पानी के कारण केवल गुरुजी, बड़े साहबजादे और 40 अन्य सिंह ही नदी पार कर सके. बाकी सिंह मुग़ल सैनिको का सामना करने लगे. सरसा नदी पार करने के बाद चमकौर साहब में "बुधीचंद" के आग्रह पर गुरुजी उसकी किलेनुमा हवेली (कच्ची गढ़ी) में ठहरे, लेकिन कुछ ही देर में मुग़ल सैनिकों ने गढ़ी को घेर लिया.
वहां जो भीषण युद्ध हुआ उसकी मिशाल मिलना मुश्किल है. 43 योद्धाओं ने लाखों की फ़ौज को नाकों चने चबवा दिए. गुरुजी की रक्षा के लिए, पंज प्यारों ने गुरुजी को आदेश दिया कि आप यहाँ से निकल जाएँ और पुनः सेना तैयार करें. भाई जीवन सिंह (जिनका डील डौल गुरु जी के समान था) गुरु जी के वस्त्र पहन कर अट्टालिका पर बैठ गए.

सुबह जब मुघलो का कब्जा गढ़ी पर हुआ , तो वे भाई जीवन सिंह के शव को गुरुजी का शव समझ कर बहुत खुश हुए लेकिन गुरूजी तो वहां से जा चुके थे. कश्मीर, सरहंद, दिल्ली, मलेरकोटला और लाहौर की मुग़ल सल्तनत अपार धन, सैनिक और समय खर्च करने के बाबजूद गुरु गोविन्द सिंह को पकड़ नहीं सकी और उसका गुस्सा छोटे साहबजादों पर निकाला.
हमें याद रखना चाहिए कि - हमारे पूर्वजों ने धर्म की रक्षा के लिए कितनी कुर्बानियां दी हैं.
यह गर्दन कट तो सकती है, मगर यह झुक नहीं सकती .
कभी चमकौर बोलेगा , कभी सरहंद की दीवार बोलेगी ..
यह गर्दन कट तो सकती है, मगर यह झुक नहीं सकती .
कभी चमकौर बोलेगा , कभी सरहंद की दीवार बोलेगी ..
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