हेमू कालाणी के बलिदान-दिवस (21 जनवरी) पर कोटि कोटि नमन
************************************************************************हेमू कालाणी का जन्म अविभाजित भारत के सिन्ध प्रान्त के सक्खर नगर में 11 मार्च, 1924 को हुआ था. उनके पिताजी का नाम पेसूमल कालाणी एवं उनकी माँ का नाम जेठी बाई था. उनकी माँ हेमू को बचपन से ही भारतीय महापुरुषों की कहानिया सुनाया करते थे. आजादी की लड़ाई लड़ने वाले वीरों को हेमू ने अपना आदर्श मान लिया था.

1942 का साल भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में बहुत महत्वपूर्ण है. एक तरफ गांधी जी ने "भारत छोडो आन्दोलन" चलाया हुआ था और दुसरी और सुभाष चन्द्र बोष की "आजाद हिन्द फ़ौज" ने सशस्त्र क्रान्ति कर रखी थी. देश के लाखों युवा उद्देलित थे और वे अपने अपने स्तर पर इन क्रांतिवीरों की सहायता में जी जान से लगे हुए थे.
हेमू हालांकि क्रांतिकारी बिचारों के थे लेकिन फिर भी वे अहिंसक सत्याग्रहियों की मदद किया करते थे. एक बार उनको खबर लगी कि - आन्दोलनकारियों को कुचलने के लिए एक पलटन , भारी मात्रा में गोलाबारूद लेकर एक विशेष रेलगाडी से, सक्खर की ओर से गुजरने वाली है. उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर एक क्रांतिकारी निश्चय ले लिया.
अपने दो साथियों नन्द और किशन के साथ मिलकर, हथौड़े, गैती, सब्बल, आदि वे रेललाइन को उखाड़ने निकल पड़े. वह रेल लाइन डबलरोटी बनाने वाली एक बेकरी के पीछे से गुजरती थी. रात के सन्नाटे में वे बेकरी के पीछे एक स्थान पर पटरी को उखाड़ने लगे. बेकरी के एक गार्ड ने उनको देख लिया और अपने मालिक को इसकी खबर कर दी.

कोर्ट ने उसको फांसी की सजा सुनाई और 23 जनवरी, 1943 को 19 साल का नौजवान "हेमू कालानी" वंदेमातरम् का घोष करते हुए फांसी पर चढ़ गया. हेमू का यह बलिदान व्यर्थ नहीं गया. उसके बलिदान ने सिंध को जगा दिया. आजादी की लड़ाई से दूर रहने वाला सिंध प्रांत भी बंगाल, उत्तरप्रदेश और पंजाब की तरह लड़ाई में कूद पडा.
फांसी से पहले जब उनसे आखरी इच्छा पूछी गई, तो उन्होंने भारतवर्ष में फिर से जन्म लेने की इच्छा जाहिर की थी. दुर्भाग्य से सिंध प्रांत अब भारत में नहीं है और अहेसानफरामोश पापिस्तानी जब भगतसिंह को भूल गए तो हेमू कलानी को क्या याद करते. पापिस्तान में उनकी कोई यादगार नहीं बनाई गई मगर भारत में उनको पूरा सम्मान दिया जाता है.

देश भर में अनेकों स्थानों पर उनके नाम पर चौक एवं पार्कों के नाम रखे गए हैं और उनकी मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं. उनका दोबारा भारत में जन्म लेने का सपना भगवान ने पूरा किया या नहीं, यह तो नहीं पता मगर भारतवाशियों के दिल में वे हमेशा अमर रहेंगे. हेमू कालाणी के बलिदान दिवस पर एक बार फिर उनको सादर श्रद्धांजली .
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