Monday, 1 May 2017

महान दानवीर भामाशाह के जन्मदिवस (29 अप्रेल) पर सादर नमन

दुनिया में अगर किसी व्यक्ति को उसकी अमीरी के लिए याद किया जाता है तो वो एकमात्र व्यक्ति "भामाशाह" है, जिन्होंने अपने धन को अपनी मातृभूमि को आजाद कराने में खर्च किया था. दानवीर भामाशाह का जन्म राजस्थान के मेवाड़ राज्य में 29 अप्रैल, 1547 को हुआ थ.इनके पिता भारमल रणथम्भौर के क़िले के क़िलेदार थे.
भामाशाह बाल्यकाल से ही मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप के मित्र, सहयोगी और विश्वासपात्र सलाहकार रहे थे. वे बचपन से ही अत्यंत कंजूस प्रव्रत्ति के थे और उनको धन खर्चना बिलकुल पसन्द नहीं था. उनके मित्र उनसे अक्सर कहते थे जब तुमको अपने ऊपर धन खर्च ही नहीं करना है तो इतना धन संग्रह करने का क्या लाभ.
भामाशाह हमेशा कहते कि - धन को बचाकर रखना चाहिए जिससे कि - वो मुसीबत के समय काम आये. उनके मित्र इस बात पर हँसते थे कि - इससे बड़ी मुसीबत और क्या होगी कि - धन के होते हुए भी गरीबों की तरह रहे. कुछ इतिहासकार लिखते हैं कि - भामाशाह के पिता ने रणथम्भोर का किलेदार रहते हुए सरकारी खजाने में से गमन किया था.
भामाशाह महाराणा प्रताप के एक मंत्री थे और इसके साथ साथ एक बड़े व्यापारी भी थे. कहा जाता है कि वे एक कुशल मंत्री नहीं थे. पिता के नाम और महाराणा प्रताप से नजदीकी के कारण ही उनको दरवार में जगह मिली थी. उनका मन हमेशा व्यापार में ही लगता था. व्यापार में समय देने और दरवार को समय न देने की भी उनसे शिकाय्रत रहती थी.
इसी बीच अकबर ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया और हल्दी घाटी के युद्ध के बाद महाराणा प्रताप को जंगलो में निर्वासित जीवन बिताना पडा था. स्वाभिमानी महाराणा प्रताप ने सब परेशानियां झेली मगर अकबर से कभी हार नहीं मानी और जंगल में रहते हुए भी अकबर के सैनको और प्रतिनिधियों से छापामार युद्ध करते रहे.
ऐसे में एकदिन भामाशाह महाराणा प्रताप के पास पहुंचे और कहा मेरे पास कुछ धन है जो मैं आपको समर्पित करना चाहता हूँ. मैं चाहता हूँ कि आप इस धन के द्वारा पुनः एक सेना बनाय और मेवाड़ को आजाद कराये. महाराणा प्रताप उनकी बात से बहुत खुश हुए लेकिन उनको भी अंदाज नहीं था कि - भामाशाह के पास कितना धन होगा.
जब भामाशाह ने अपना खाजाना महाराणा प्रताप के हवाले किया तो, खुद महाराणा प्रताप भी भौचक्के रह गए. वो इतना धन था कि उसके द्वारा 25,000 सैनिको का दस साल का खर्च उठाया जा सकता था. उसके बाद जो हुआ वो इतिहास में दर्ज हैं, महाराणा प्रताप ने मजबूत सेना तैयार की और चत्तौड़ के अलावा पूरे मेवाड़ को आजाद करा लिया.
भामाशाह ने अपने उस कथन को सत्य साबित कर दिया कि - "धन को बचाकर रखना चाहिए जिससे कि - वो मुसीबत के समय काम आ सके". उनकी दानवीरता का इससे बड़ा महत्व और क्या होगा कि - देश अथवा धर्म के लिए धन अर्पित करने वाले किसी भी दानदाता को, दानवीर भामाशाह कहकर पुकारा जाता है.
भामाशाह और उनके पुरखों ने दौलत कैसे कमाई थी इस पर तो विवाद हो सकता है लेकिन भामाशाह ने उस दौलत का उपयोग मातृभूमि को आजाद कराने में किया था , इसमें लेशमात्र भी संदेह नहीं है. अपनी दानवीरता और मात्रभूमि के प्रति समर्पण के लिए उनको युगों युगों तक सम्मान के साथ उनको याद किया जाता रहेगा.
अटल बिहारी बाजपेई की सरकार के समय में उनके सम्मान में एक 3 रूपए का डाकटिकट जारी किया गया था. छत्तीसगढ़ सरकार ने भामाशाह की स्मृति में, दानशीलता, सौहार्द्र एवं सहायता के क्षेत्र में 'दानवीर भामाशाह सम्मान' भी स्थापित किया है.

No comments:

Post a Comment