Saturday, 22 April 2017

बाबू कुंवर सिंह

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक " बाबू कुंवर सिंह" के शहीदी दिवस पर श्रद्धांजली
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आज (23-अप्रेल ) को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के एक महानायक "बाबू कुंवर सिंह" के शहीदी दिवस पर भावभीनी श्रद्धांजली. बाबू कुंवर सिंह सन 1857 के भारतीय स्वतंत्रता के संग्राम के सिपाही थे. इनको 80 वर्ष की उम्र में भी लड़ने तथा विजय हासिल करने के लिए जाना जाता है. इन्होने बुढापे में भी अंग्रेजों को नाकों चने चबबा दिए थे.
 बाबू कुंवर सिंह का जन्म 1777 में , बिहार के भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव में हुआ था. इनके पिता बाबू साहबजादा सिंह, "राजा भोज" के वंशजों में से थे. उनके छोटे भाई अमर सिंह, दयालु सिंह और राजपति सिंह एवं इसी खानदान के बाबू उदवंत सिंह, उमराव सिंह तथा गजराज सिंह भी अपनी आजादी कायम रखने के खातिर सदा लड़ते रहे थे.
1857 में मंगल पाण्डे के बलिदान ने सारे देश में उत्साह पैदा कर दिया था. बिहार की दानापुर रेजिमेंट, बंगाल के बैरकपुर और रामगढ़ के सिपाहियों ने बगावत करदी थी. मेरठ, कानपुर, लखनऊ, इलाहाबाद, झांसी और दिल्ली में भी आग भड़क उठी . ऐसे हालात में बाबू कुंवर सिंह ने पूर्वान्चल में, भारतीय सैनिकों का नेतृत्व किया .
27 अप्रैल 1857 को दानापुर के सिपाहियों, भोजपुरी जवानों और अन्य साथियों के साथ, "आरा" नगर पर बाबू कुंवर सिंह ने कब्जा जमा लिया. अंग्रेजों की लाख कोशिशों के बाद भी भोजपुर लंबे समय तक स्वतंत्र रहा. बाबू कुंवर सिंह और उनके भाई अमर सिंह अंग्रेजों से छापामार लड़ाई लड़ते रहे और काफी बड़े क्षेत्र को आजाद करा लिया.
बांदा, रीवां, आजमगढ़, बनारस, बलिया, गाजीपुर एवं गोरखपुर आदि क्षेत्र की जनता ने बाबू कुवर सिंह को अपना राजा घोषित कर दिया. इन इन इलाकों में अंग्रेजों से में क्रान्तिकारियों की अनेकों मुठभेड़ हुई लेकिन हमेशा अंग्रेजों को मुह की खानी पडी. बाबू कुंवर सिंह ने अंग्रेजों से एक साल से ज्यादा तक संघर्ष किया और आजादी को कायम रखा.
इसी बीच अंग्रजो ने, भारत के गद्दारों के सहयोग से प्रथम स्वाधीनता संग्राम पर काफी हद तक काबू पा लिया. अब अंग्रजों का मुकाबला करने वाले केवल दो भारतीय क्षेत्र, मध्य-पश्चिम (लक्ष्मी बाई और तात्या टोपे) और पूर्वांचल में (बाबू कुंवर सिंह) बचे थे. तब अंग्रजों ने इन इलाकों को जीतने के लिए अपनी पूरी ताकत इन दो क्षेत्रों में झोक दी.
जब अंग्रेजों को लग रहा था कि - हम आसानी से बाबू कुवर सिंह पर काबू कर लेंगे उसी समय मार्च 1858 में बाबू कुवर सिंह ने एक बड़ा हमला कर आजमगढ़ को भी आजाद करा लिया. इस घटना की खबर ने ब्रिटेन तक में बेचैनी पैदा कर दी. तब अंग्रेजों ने भारत के गद्दार राजों की और अपनी पूरी ताकत पूर्वांचल में लगा दी.
अप्रेल - 1858 में अंग्रेजों और गद्दार भारतीय राजाओं ने उनपर लगातार हमले करने शुरू कर दिए जिससे उनकी सेना कमजोर पड़ने लगी. 23 अप्रेल 1858 को जगदीशपुर में अंग्रेजों से हुए एक मुकाबले में वे बुरी तरह घायल हो गए, लेकिन उसके बाद भी उन्होंने तैरते हुए विशाल गंगा को पार किया. 80 साल के बुजुर्ग ऐसा सोंच भी नहीं सकते.
गंगा पार करने के बाद, अपना अंतिम समय निकट जानकार, उन्होंने खुद अपने हाथ में गंगा जल लेकर, अपना तर्पण किया और भारत माँ की गोद में सो गए. कुछ इतिहासकार मानते है कि - उनका देहांत 24-अप्रेल को हुआ था और कुछ कहते हैं कि 26-अप्रेल को. मगर इस बात में कोई विवाद नहीं है कि 23-अप्रैल 1858 का युद्ध उनका अंतिम युद्ध था,
ब्रिटिश इतिहासकार "होम्स" ने उनके बारे में लिखा है कि- "उस बूढ़े राजपूत ने ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध अद्भुत वीरता साथ लड़ाई लड़ी . गनीमत थी कि युद्ध के समय कुंवर सिंह की उम्र अस्सी के करीब थी. अगर वह जवान होते तो शायद अंग्रेजों को 1857 में ही भारत छोड़ना पड़ता". आज उनके बलिदान दिवस पर हम उनको सादर श्रद्धांजली देते है.

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