महाबली जोगराजसिंह गुर्जर, हरवीर जाट को सादर नमन
सैफ / करीना को धन्यवाद, जिन्होंने अपने बेटे का नाम 'तैमुर' रखकर उस अत्याचारी के अत्याचार और उसका सामना करने वाले वीरों की चर्चा को शुरू कराया. इसके साथ ही उन लोगों का भी असली चेहरा सामने आया जो अपने सेकुलर होने का नाटक करते हैं जबकि असल में भारत पर अत्याचार करने वाल आक्रमणकारियों को अपना आदर्श मानते है.
तैमूर की चर्चा होने पर महाबली जोगराजसिंह गुर्जर, शूरवीर हरवीर जाट, वीरांगना रामप्यारी गुर्जरी, आदि को भी याद किया जा रहा है. सबसे पहले जान लें कि तैमूर कौन था. तैमूर समरकंद के शासक का बेटा था. वो बहुत ही बेरहम तथा महत्वाकांक्षी था. अपने पिता को कैद में डालकर खुद उनके सिंहासन पर बैठ गया. उसने विश्व विजेता बनने का निश्चय किया.
वह एक विशाल घुड़सवार सेना लेकर भारत की तरफ निकल पड़ा. पहले उसने मेसोपोटामिया, फ़ारस और अफ़ग़ानिस्तान की जीता, फिर लाहौर / कुरुक्षेत्र होते हुए दिल्ली की तरफ चल पडा. रास्ते में लाहौर, कुरुक्षेत्र, पेहोवा में अनेकों मंदिर तोड़े. उस समय दिल्ली पर कमजोर शासक मुहम्मद तुगलक का शासन था. वो तैमुर का सामना न कर सका. उसने तैमूर से कहा कि उसे बख्श दे और बदले में दिल्ली को लूट ले. तैमूर ने 15 दिन तक दिल्ली को बुरी तरह लूटा..
तैमूर इतना जालिम था कि उसे इंसान के बजाय हैवान कहना चाहिए. वह जहाँ जहाँ भी गया वहां की सेनाओं से लड़ने के अलावा आम जनता को भी अपनी हैवानियत का निशाना बनया. लोगों को मारकर उनके सरों के ढेर का स्तूप बना कर गर्व से देखना उसका शौक था. अपनी बर्बरता को सही बताने के लिए वो इसे मूर्ति पूजा का बिरोध तथा इस्लाम का प्रचार बताता था.

खाप पंचायत में हरद्वार के पास के एक गाँव "कुंजा सुन्हटी" के रहने वाले मल्ल पहलवान महाबली जोगराजसिंह गुर्जर को पंचायती सेना का प्रधान सेनापति चुना गया. सेना का उप प्रधान हरवीर सिंह गुलिया जाट और धुला धाडी (बाल्मीकि) चुने गये. चौधरी धर्मपाल और चौधरी कर्मपाल ने धन, भोजन आदि की व्यवस्था सम्हाल ली.
महिलाओं के भी दो दल तैयार किये गए. एक की जिम्मेदारी छ्पामार लड़ाई करने की थी जिसका नेतृत्व वीरांगना राम प्यारी गुर्जरी और वीरांगना हरदेई ने सम्हाला. दुसरे दल को योद्धाओं के लिए भोजन की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी दी गई, जिसका नेतृत्व चंदो ब्राह्मन, देवी कौर राजपूत और रामदेई त्यागी, आदि को दे दिया गया.
दिल्ली से हरिद्वार की तरफ बढती तैमूरी सेना को मेरठ में, सेनापति दुर्जनपाल अहीर ने अपने 200 वीर सैनिकों के साथ कड़ी टक्कर दी और शहीद हो गए. हरिद्वार के निकट ज्वालापुर में तैमूर के साथ पंचायिती सेना का भयानक युद्ध हुआ. उस सेना की टुकड़ी का नेत्रत्व हरवीर सिंह जाट ने किया. उस भयानक युद्ध में तैमूर की बहुत सेना मारी गई.
जोगराज की सेना ने शत्रु के 5000 घुड़सवारों को काट डाला. जोगराज ने स्वयं अपने हाथों से अचेत हरबीर को उठाकर सुरक्षित जगह पहुंचाया, लेकिन कुछ घण्टे बाद वे वीरगति को प्राप्त हो गया. एक अन्य मुकाबले में दलित सेनापति "धूला धाड़ी" ने 190 साथियों के तैमुर की सेना पर हमला किया और तैमूर के 2000 से ज्यादा सैनकों को मार कर शहीद हो गए.
तैमूर के "हरि की पौड़ी" की तरफ बढ़ने के आख़िरी प्रयास को नागा साधुओं ने असफल कर दिया. उसके बाद तैमूर की सेना वापस भाग खडी हुई. भागते हुए हमलावरों को राम प्यारी गुर्जरी ने अपना शिकार बनाया. प्रधान सेनापति जोगराजसिंह ने अपने वीर योद्धाओं के साथ तैमूरी सेना पर भयंकर धावा करके उसे अम्बाला की ओर भागने पर मजबूर कर दिया.
इन सभी युद्धों में तैमूर के कुल ढ़ाई लाख सैनिकों में से 1,60,000 को हमारे वीर योद्धाओं ने मौत के घाट उतार दिया और तैमूर की वापस भागने पर मजबूर कर दिया था. इस युद्ध में हमारी पंचायती सेना के भी लगभग 35,000 वीर एवं वीरांगनाएं लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे. इस युद्ध के बाद प्रधान सेनापति जोगराज सिंह ऋषिकेश चले गए.

हमें अपने उन पूर्वजों की वीरता और बलिदान को याद करना चाहिए. उन महापुरुषों ने अपनी कुर्बानी देकर देश और धर्म की रक्षा की है. अब इस देश और धर्म की रक्षा करना हमारी जिम्मेदारी हैं. हमें अपनी आने वाली पीढ़ी को एक सम्रद्ध और शक्तिशाली राष्ट्र देना होगा जिससे वो भी हम पर गर्व कर सकें जैसे आज हम उन महान योद्धाओं पर कर रहे हैं.
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