सती रामरखी देवी के आत्म वलिदान दिवस (26 मई) पर सदर नमन
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मुगल शासक औरंगजेब ने 1675 में, "गुरु तेगबहादुर" जी का शीश काटकर शहीद किया था. तब उसने उनसे पहले उनके तीन शिष्यों भाई मतिदास, भाई सतीदास और भाई दयाला जी को भी बुरी तरह से तड़पा तड़पा कर शहीद किया था. इन बलिदानियों के परिवार की, देश और धर्म के लिए बलिदान देने की परम्परा आगे भी चलती थी.
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मुगल शासक औरंगजेब ने 1675 में, "गुरु तेगबहादुर" जी का शीश काटकर शहीद किया था. तब उसने उनसे पहले उनके तीन शिष्यों भाई मतिदास, भाई सतीदास और भाई दयाला जी को भी बुरी तरह से तड़पा तड़पा कर शहीद किया था. इन बलिदानियों के परिवार की, देश और धर्म के लिए बलिदान देने की परम्परा आगे भी चलती थी.
भाई मतिदास जी के एक वंशज, भाई बाल मुकुंद ने भी 8 मई, 1915 को अपने साथियों के साथ देश के लिए बलिदान दिया था. अंग्रेजो के शासनकाल में 23 दिसम्बर 1912, को चार क्रांतिवीरों ( भाई बालमुकुंद, अवधबिहारी, वसंत कुमार विश्वास तथा मास्टर अमीरचंद) ने दिल्ली में वायसराय लार्ड हार्डिंग की शोभायात्रा पर बम फेंका था.
इस मामले में उन चारों को गिरफ्तार कर लिया गया और फांसी की सजा सुना दी गई. 8 मई, 1915 को चारों को फांसी पर चढ़ा दिया गया. यहाँ मैं उन चारो महान शहीदों की गाथा के साथ, एक ऐसी सती महिला की गाथा सुनाना चाहता हूँ जो उस घटना से जुडी हुई है और जिसने पतिव्रता धर्म का पालन करते हुए अपना बलिदान दिया था.
भाई बालमुकुंद का विवाह कम आयु में ही, लाहौर की "रामरखी" से हो गया था. उन दिनों विवाह कम आयु में हो जाते थे लेकिन गौना ( लड़की का ससुराल जाना ) कई साल बाद होता था. भाई बालमुकुंद और रामरखी का गौना होने से पहले ही, भाई बालमुकुंद जेल चले गए. जेल में रामरखी भी अपने परिवार वालों के साथ उनसे मिलने आई.
रामरखी ने अपने पति बालमुकुंद से पूछा कि- वे क्या खाते हैं और कहां सोते हैं ? तब बालमुकुंद जी ने बताया कि - सोने के लिए उन्हें दो कम्बल मिले हुए हैं और भोजन केवल एक समय मिलता है. रामरखी ने उनसे अपनी रोटी दिखाने का आग्रह किया. रोटी दिखाने पर रामरखी ने उसका एक टुकडा तोड़कर अपने पल्लू से बाँध लिया.
दिल्ली से लाहौर आने के बाद रामरखी ने भी अपने घर में, सभी सुख सुविधाओं का त्याग कर दिया और केवल दो कम्बल ले लिए. वे घर की एक कोठरी में, कैदियों की तरह जमीन पर एक कम्बल बिछाने तथा एक कम्बल ओढकर सोने लगी. इसके अलावा जैसी रोटी का टुकडा वे जेल से लाइ थी बैसी ही मोटी रोटी ( वो भी केवल एक टाइम) खाने लगी.
इस प्रकार उन्होंने अपने आपको अपने पति से आत्मसात कर लिया. वे दिन भर पूजा-पाठ में लगी रहती थी. इस तरह कई महीने बीत गए. 8 मई 1915, को भाई बालमुकुंद और साथियों को फांसी दे दी गयी. फांसी वाले दिन से रामरखी ने अन्न-जल त्याग दिया. वे केवल पूजा में ही बैठी रहती. इस प्रकार की कठोर तपस्या में 17 दिन बीत गये.
26 मई को उन्होंने अपनी कोठरी की सफाई की, फिर स्नान किया और साफ वस्त्र पहने. उसके बाद अपने घर के सभी बड़ों को प्रणाम करने के बाद अपने स्थान पर लेट गईं. उन्होंने अपनी सांस को ऊपर चढ़ा लिया और उनकी आत्मा परमात्मा में समा गई. इस प्रकार रामरखी ने अपना नाम भारत की महान सती नारियों की परम्परा में लिखा लिया.
भारत माता की जय , वन्देमातरम
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