आरक्षण को कोसने के बजाय, आरक्षण को हिंदुत्व बचाने के हथियार के रूप में इस्तमाल करना चाहिए. जो आरक्षण जातिवाद को बढावा देने वाला बना हुआ है उसको जातिवाद ख़त्म करने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है. बस हमें इसमें थोड़ा सा फेर-बदल करना होगा. आरक्षण की नियमवाली में कुछ सुधार किये जा सकते हैं.
1. आरक्षण ख़त्म करने की शुरुआत मंदिर से करनी चाहिए. पुरोहित और पुजारी बन्ने के लिए, पाठ्यक्रम निर्धारित कर, विभिन्न धार्मिक केन्द्रों में, बाकायदा ट्रेनिग सत्र चलाये जाने चाहिए. इन प्रशिक्षण केन्द्रों में प्रशिक्षित होने के लिए शिक्षार्थी के लिए कोई जाति बंधन न हो. प्रशिक्षित और संस्कारी होने कोई भी हिन्दू, धार्मिक अनुष्ठान करा सके.
2. कोई भी सवर्ण लड़का (अथवा लड़की), अगर किसी आरक्षित वर्ग की लड़की (अथवा लड़के) से विवाह करता ( या करती) है, तो उनको तथा उनकी संतान को भी आरक्षण का लाभ दिया जाना चाहिए. ऐसा करने से अंतरजातीय विवाह को बढ़ावा मिलेगा , जो आगे जाकर जाति के चक्रव्यूह को तोड़ने में बहुत सहायक साबित होगा.
3. यदि पुराने समय में कोई व्यक्ति हिन्दू धर्म को छोड़ गया था और आज उनके बच्चे घर वापसी करना चाहते हैं, तो ऐसे लोगो के लिए, एक अलग से आरक्षण की व्यवस्था कर, उनको आरक्षण देना चाहिए. यदि आप ऐसा करते हैं, तो ऐसे लोगों को घर वापसी करने की प्रेरणा मिलेगी. इसका लाभ हर हाल में हिन्दू धर्म और हिन्दुस्थान को मिलेगा.
4. सभी पंथ यह दावा करते हैं कि -जाति केवल हिन्दुओं में होती है, उनके यहाँ जाति नहीं होती है, इसलिए हिन्दू के अतिरिक्त किसी भी अन्य पंथ वाले व्यक्ति को जातिगत आरक्षण नहीं देना चाहिए. अगर आरक्षित कैटेगिरी का व्यक्ति हिन्दू धर्म को छोड़ता है तो उसका और उसके परिवार का आरक्षण हमेशा के लिए रद्द कर दिया जाय.
5. जाति शब्द को ख़त्मकर उसको खानदानी पेशा कर दिया जाए. किसी भी फ़ार्म में "जाति" वाला कालम न रखकर वहां "खानदानी पेशा" शब्द लिखा जाए. बैसे भी पुजारी, पुरोहित, सैनिक, व्यापारी, दूकानदारी, सफाई का काम, लोहार, कुम्हार, सुनार, चर्मकार, कृषि, मल्लाह, शिक्षण, पशुपालन, आदि सभी प्रकार के कार्य, केवल धंधा है कोइ जाति नहीं.
No comments:
Post a Comment