Wednesday, 10 May 2017

प्राचीन भारत में शासन प्रणाली



कुछ भारत बिरोधी और हिन्दू धर्म बिरोधी लोग, अक्सर प्रचार करते हैं कि भारत कभी एक देश नहीं था बल्कि छोटे छोटे राज्यों का समूह था. जबकि वास्तविकता यह है कि प्राचीन भारत धर्म द्वारा संचालित था जिसमे समस्त भू-भाग का स्वामी ईश्वर को माना जाता था. राजा केवल अपने राज्य का प्रतिनिधि होता था उसका स्वामी नहीं.
अनेकों छोटे-बड़े राज्य, अनेको राजा, अनेकों भाषाए, अनेकों प्रकार का रहन सहन होने, आदि के बाबजूद समस्त भूखंड को भारतबर्ष के नाम से जाना जाता था. जिसका संचालन राजालोग अवश्य करते थे मगर उनको धर्मगुरुओं का निर्देश मानना पड़ता था और उन धर्मगुरुओं के लिए किसी राज्य की सीमा रेखा कोई मायने नहीं रखती थी.
साधू, संत एवं धर्मगुरुओं के आने पर प्रत्येक राजा को उनका सम्मान करना पड़ता था. राजा उनको देखकर सिंहासन छोड़कर खडा होता था. राजा के कुछ भी गलत कार्य करने पर यह संत लोग राजा को निर्देश दिया करते थे और राजा को मानने पड़ते थे. राज्य की जनता को एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने के लिए किसी की अनुमति नहीं लेनी पड़ती थी.
धर्मस्थलो और तीर्थो के माध्यम से सारा भारत देश एक था. राजा का अधिकार अपने राज्य में केवल राजस्व एकत्र करने तक ही सीमित था. बाक़ी सारा भारतदेश धर्म के माध्यम से एक था. राजतंत्र में भी में राजा बनने के लिए राजकुमार को अपनी योग्यता बार बार साबित करते रहनी पड़ती थी वरना प्रजा उसको राजगद्दी से उतार देती थी.
प्राचीन भारत में जब कोई राजा अपने राज्य का विस्तार करने की खातिर किसी अन्य राज्य पर आक्रमण करता था तो भी उनकी प्रजा अप्रभावित रहती थी. दोनों राजा अपनी अपनी सेना लेकर किसी निर्जन स्थान पर युद्ध करते थे जिससे प्रजा को कोई परेशानी न हो. युद्ध जीतने वाले राजा को, युद्ध हारने वाले राज्य की प्रजा अपना राजा मान लेती थी.
युद्ध के समय भी युद्ध के नियम होते थे. सूर्यास्त के बाद दोनों तरफ के सैनिक एक दूसरे से मिल सकते थे. युद्ध में हारने वाले राजा की सेना भी युद्ध की समाप्ति के बाद जीते हुए राजा की सेना का अंग बन जाती थी. युद्ध के समय कोई भी सैनिक किसी असैनिक नागरिक अथवा औरतों / बच्चो पर हाथ नहीं उठा सकता था.
कई शक्तिशाली राजा बिना युद्ध के ही अन्य राजा के राज्य को अपने राज्य में मिला लेते थे. इसके लिए वो अश्वमेघ यग्य करते थे. उनका घोड़ा जिस राज्य में जाता था उसका राजा या तो आधीनता स्वीकार कर लेता था या फिर युद्ध करता था. भारत में यह व्यवस्था सैकड़ों बर्ष तक चलती रही. राजा बदलने से प्रजा के जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था.
प्राचीन भारत का राजतंत्र भी एक तरह से आज के लोकतंत्र की ही तरह था. अंतर केवल इतना था कि आज जनता वोट देकर राजा को चुनती है और तब राजा को शस्त्र और शास्त्र के द्वारा अपनी योग्यता साबित करनी पड़ती थी. राज्यों की जनता राजा के बदलने पर उसी तरह अप्रभावित रहती थी जैसे आज चुनाव में दुसरी पार्टी के जीतने पर.
युद्ध जीतकर अपने राज्य का विस्तार करने वाला राजा भी जीते गए राज्य के कल्याण के कार्य कर जनता को प्रभावित करने लग जाता था. भारत में जनता की मुसीबत की शुरुआत हुई विदेशी और विधर्मी आक्रमणकारी लुटेरों के हमले के बाद. यह विदेशी आक्रमणकारी युद्ध जीतने के लिए आम जनता एवं औरतों / बच्चो को अपना निशाना बनाते थे.
यह “अमानव” दहशत फैलाने के लिए बच्चो की ह्त्या करते थे, औरतों से बलात्कार करते थे तथा नागरिकों को गुलाम बनाते थे. मंदिरों को तोड़ना, धार्मिक आस्था पर चोट पहुंचाना, लूटपाट करना इनका मुख्य काम था. इन लोगों के आक्रमण के बाद भारत की व्यवस्था ही बदल गई. सोने की चिड़िया कहलाने वाला भारत, बदहाल हो गया.

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