सनातन धर्म के महान रक्षक “
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चक्रवर्त्ती “सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य” और उनके पोते “सम्राट अशोक” ने अपने बाहुवल और राजगुरु चाणक्य के बुद्धिबल के योग से एक शक्तिशाली साम्राज्य खडा किया था. लेकिन अशोक का मन युद्ध से उचट जाने और बौद्ध बन जाने के बाद, सनातन धर्म की उपेक्षा होने लगी तथा बौद्ध मत को महिमामंडित तथा बौद्धों का तुष्टीकरण होने लगा.
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चक्रवर्त्ती “सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य” और उनके पोते “सम्राट अशोक” ने अपने बाहुवल और राजगुरु चाणक्य के बुद्धिबल के योग से एक शक्तिशाली साम्राज्य खडा किया था. लेकिन अशोक का मन युद्ध से उचट जाने और बौद्ध बन जाने के बाद, सनातन धर्म की उपेक्षा होने लगी तथा बौद्ध मत को महिमामंडित तथा बौद्धों का तुष्टीकरण होने लगा.
सनातन धर्म को मानने वालों को, अपना धर्म छोकर बौद्ध बनने पर मजबूर किया जाने लगा था.अशोक के शासनकाल में तो लोग मजबूरी में खामोश रहे लेकिन अशोक के कमजोर उत्तराधिकारियों के समय में अनेको राजा सर उठाने लगे. मौर्यवंश के सबसे कमजोर शासक “वृहदरथ” के समय तक बिदर्भ, कलिंग, स्यालकोट जैसे कई राज्य स्वतंत्र हो गए.
अहिसावादी होने के कारण बौद्ध लोग सेना तथा सैनिकों को सम्मान नहीं देते है इस कारण सेना में भी बौद्ध शासको के खिलाफ “बगावत” की भावना पनपने लगी थी. साम्राज्य पर मौर्य बंश की पकड़ कमजोर होने लगी थी. “वृहदरथ” के कुशासन से परेशान प्रजा, राजा “वृहदरथ” से ज्यादा उसके सेनापति “पुष्यमित्र शुंग” को पसंद करती थी.

“पुष्यमित्र शुंग” जन्म से ब्राह्मण था और कर्म से क्षत्रीय. उसने सेना को पुनः सगठित किया और स्वतंत्र हो चुके बिदर्भ, कलिंग, स्यालकोट, आदि राज्यों को फिर से मगध में मिला लिया. “पुष्यमित्र शुंग” के समय में यवनों के भी कई हमले हुये मगर अपनी वीरता और चतुराई से उसने हर हमले को नाकाम कर यवनों को भागने पर मजबूर कर दिया. “पुष्यमित्र शुंग” के शासन काल में बौद्ध बने सनातनियों ने पुनः घर वापसी कर ली
“पुष्यमित्र शुंग” ने वैदिक / सनातन धर्म की स्थापना के लिए बहुत काम किये. उसने जगह जगह मंदिर और यग्यशालाओं का निर्माण किया. बौद्ध शासन में बंन्द कर दिए गए प्राचीन वैदिक / सनातन धर्म के अनुष्ठान करने प्रारम्भ कर दिए गए. अपने राज्य का विस्तार करने के लिए उसने रामायण में वर्णित “अश्वमेघ यग्य” का दो बार आयोजन किया.
इस यग्य के प्रधान पुरोहित महर्षि “पतंजली” थे. उनके यग्य के घोड़े को सिन्धू नदी के तट पर यवनों ने पकड़ लिया था तब उनके पौत्र “वसुमित्र” ने भीषण युद्ध में यवनों को परास्त कर घोड़े को छुडाया और सिंध तक मगध राज्य का विस्तार किया. कुछ बर्ष बाद उन्होंने पुनः अश्वमेघ यग्य किया, लेकिन तब किसी ने घोड़े को पकड़ने का साहस नहीं किया.
उनके समय में योग और आयुर्वेद का बहुत विकास हुआ. सड़कों के किनारे छायादार ब्रक्ष लगवाये गए. मार्ग में हर पांच कोस की दूरी के बाद एक छोटी सी चौकी बनाई जहाँ व्यापारी अपने काफिले के साथ सुरक्षित रूप से, रात्री विश्राम कर सकें. “पुष्यमित्र शुंग” के शासन काल में भारत पुनः एक शक्तिशाली और सम्रद्ध राष्ट्र बन गया था.

पुष्यमित्र की महानता का सबसे बड़ा परिचय इस बात से मिलता है कि - उसके राज में सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार करते हुए भी, कभी महात्मा बुद्ध का अपमान नहीं किया गया और बल्कि महात्मा बुद्ध को भी विष्णु का अवतार घोषित कर, उनको भगवान् का दर्जा दिया गया. उसके राज में किसी भी बौद्ध मठ और स्तूप में कोई छेड़छाड़ की गई.
“पुष्यमित्र शुंग” में बौद्ध मठों और स्तूपों को भी भगवान का घर कह कर सम्मान दिया गया और उनको भी तीर्थ घोषित किया गया. पुष्यमित्र के शासन काल में बौद्ध बने ज्यादातर सनातनियों ने पुनः घर वापसी कर ली थी लेकिन वे लोग सनातन धर्म के देवी देवताओं की तरह, भगवान् बुद्ध की पूजा करने के लिए भी स्वतंत्र थे
पुष्यमित्र ने 36 वर्ष (185-149 ई. पू.) तक राज्य किया. उसका साम्राज्य हिमालय से नर्मदा नदी तक और सिन्धु से पूर्वी समुद्र तक विस्तृत था. पुष्यमित्र एवं उसके उत्तराधिकारियों के शासनकाल में लगाए गए शिलालेखों से उसके समय में विशाल, मजबूत और सम्रद्ध भारतबर्ष का परिचय मिलता है. सनातन धर्म के महान रक्षक की जय हो.