इस पेशवाओं की श्रंखला के बीच में एक ऐसे मराठा सरदार का जिक्र करना अत्यंत आवश्यक है जो "पेशवा" नहीं था लेकिन जिसने पेशवा माधवराव (प्रथम), पेशवा नारायण राव, पेशवा माधवराव (दितीय), की जल्दी जल्दी हुई म्रत्यु के बाद मराठा साम्राज्य को सम्हालने का काम किया. वो मराठा सरदार थे "नाना फड़नवीस".

"नाना फड़नवीस" ने, पेशवा माधव राव (प्रथम) की म्रत्यु के बाद के बाद, न केवल पेशवा नारायण राव, पेशवा माधव राव (दितीय), पेशवा बाजीराव (द्वितीय) की रक्षा की, बल्कि मराठा साम्रज्य को भी बिखरने से बचाय रखा. पेशवा न होने के बाबजूद मराठा साम्राज्य में पेशवा जैसे सम्मान था, लेकिन वे हमेशा साम्राज्य के सेवक बने रहे.
"नाना फड़नवीस" के सामने तीन प्रमुख समस्याएं थी. पहली समस्या थी "पेशवा" पद की गरिमा को बनाए रखना, दुसरी समस्या थी मराठा संघ को बनाए रखना तथा तीसरी सबसे बड़ी समस्या थी विदेशियों (मुघलों, अंग्रेजों, पुर्तगालियों,आदि) से देश की रक्षा करना. सिंधिया, होल्कर, गायकवाड़ तथा भोसले भी मराठा साम्राज्य के घटक थे,
लेकिन इनकी आपस में नहीं बनती थी. पेशवा के न रखने पर इनकी कटुता और मुखर होने लगी थी. सभी मराठा छत्रप अपने आपको एक दुसरे से बड़ा दिखाने का प्रयास कर रहे थे. ऐसे में "नाना फड़नवीस" ने न केवल बुद्धिमानी के सहारे मराठों को बिखरने से बचाया, बल्कि बहादुरी का प्रदर्शन करते हुए अंग्रेजों को भी मराठा साम्राज्य से दूर रखा.
अब हम पुनः पेशवा की कहानी पर वापस आते हैं. माधवराव (द्वितीय) की मृत्यु के बाद महाराष्ट्र में अव्यवस्था फैलने लगी. लगभग सात महीने तक उत्तराधिकारी का निर्णय ही नहीं हो सका था. माधवराव (दितीय) के अल्पायु में निस्संतान मर जाने के कारण, रघुनाथराव के बड़े बेटे "बाजीराव द्वितीय" का हक़ था, परन्तु वो नाना को पसंद नहीं था.
तब "नाना फड़नवीस" ने रघुनाथराव के छोटे बेटे "चिमनाजी" ( जन्म- 1784 : मृत्यु 1830) को पेशवा बनाने का निर्णय लिया. "चिमनाजी" की नियुक्ति को सारे मराठा साम्राज्य में स्वीकृति दिलाने के लिए उन्होंने उसे पेशवा माधवराव की विधवा यशोदाबाई को, 25 मई 1796 को पूर्ण धार्मिक और वैधानिक रीति रिवाज के साथ गोद लिवाया.
2 जून 1796 को, "चिमनाजी" को पेशवा घोषित किया गया. चिमना जी के पेशवा घोषित होते ही, चिमनाजी की वास्तविक माँ और रघुनाथराव की विधवा "आनंदी बाई" ने बालक चिमनाजी पर नियंत्रण कर सत्ता को अपने हाथ में लेने का प्रयास किया. तब "नाना फड़नवीस" ने 6 दिसम्बर 1796 को बाजीराव (दितीय) को पेशवा नियुक्त किया.
बाजीराव (दितीय) (जन्म 1775 : मृत्यु 1851) को पेशवा नियुक्त करने के बाद "नाना फड़नवीस" ने अंग्रेजों देवारा कब्जाए मराठा राज्यों को फिर से अंग्रेजों से वापस छीन लिया. अंग्रेजों को रोकने और भारत से खदेड़ने की योजना बनाई. उन्होंने मराठों तथा अन्य भारतीय राजाओं को अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट करने का प्रयास किया.
लेकिन दुर्भाग्य से "नाना फड़नवीस" का स्वास्थ्य खराब रहने लगा और 1,800ई में उनकी म्रत्यु हो गई. उनकी म्रत्यु के बाद मराठा साम्राज्य बिखरने लगा, इस प्रकार नाना ने मराठा संघ को टूटने से बचाया और अंग्रेजों की बढ़ती हुई शक्ति को रोका, परन्तु "नाना" की मृत्यु के बाद मराठा संघ का अंत हो गया और सभी अलग अलग हो गए.
"नाना फड़नवीस" के संबंध में कहे गए "लार्ड वेलजली" केे शब्द अविस्मरणीय हैं. उन्होंने कहा था कि - नाना फडनवीस न केवल एक योग्य मंत्री थे, वह ईमानदारी और उच्च आदर्शों की एक मिशाल थे. उन्होंने अपना पूरा जीवन, राज्य के कल्याण के लिए तथा अपने स्वामियों की कल्याणकामना के लिए समर्पित कर दिया.
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