Tuesday, 2 January 2018

महामना मदन मोहन मालवीय

महामना मदन मोहन मालवीय का जन्म 25 दिसम्बर 1861 को हुआ था. वे एक महान वकील, महान पत्रकार, महान धर्मात्मा और महान देशभक्त थे. वे कांग्रेस के प्रारम्भिक नेताओं में से एक थे लेकिन कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति से निराश होकर उन्होंने 1911 में हिन्दू महासभा की स्थापना करने में अपना बहुमूल्य सहयोग दिया.
कांग्रेस को छोड़कर हिन्दू महासभा में जाने के बाद भी उन्होंने गांधी जी के सविनय अवज्ञा आन्दोलन में बढचढ कर भाग लिया था. जब गांधी जी ने चौरीचौरा की हिंसा को बहाना बनाकर अपना आन्दोलन वापस ले लिया तब भी उन्होंने हिन्दू महासभा को आन्दोलन जारी रखने को कहा. उनके अनुयाई आन्दोलन वापसी के बाद भी संघर्ष करते रहे.
उन्होंने पेशावर से डिब्रूगढ़ तक तूफानी दौरा करके राष्ट्रीय चेतना को जीवित रखा. धारा 144 के उलंघन में उनको जेल भेजा गया. चौरी चौरा के 172 क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाने पर गांधीजी और कांग्रेस ने उनसे किनारा कर लिया था, जबकि वो गांधी के आव्हान पर ही आन्दोलन कर रहे थे, तब मालवीय जी उनको बचाने के लिए आगे आये.
उन्होंने हाईकोर्ट इलाहावाद में खुद इस मामले की पैरवी कर 143 क्रांतिकारियों को फांसी से बचाया. इसीलिए उनको भारत का सबसे महान वकील कहा जाता है. 1926 में हुए प्रथम चुनाव में हिन्दुओं और मुसलमानों के लिए लिए अलग अलग सुरक्षित निर्वाचन सीट रखने का उन्होंने कड़ा बिरोध किया था, जबकि गांधी जी इससे किनारा कर गए थे.
स्वामी श्रद्धानंद के शुद्धि आन्दोलन का उन्होंने समर्थन किया जिसमे पूर्वकाल में धर्म परिवर्तन कर गए हजारों लोगों का शुद्धिकरण करके उनकी घर वापसी कराई गई. गांधी जी ने घर वापसी को बंद करने का आव्हान किया तो उन्होंने गांधी जी से कहा कि - क्या आप मुसलमानों को भी धर्म परिवर्तन करने से रोकेंगे, तो गांधी जी ने चुप्पी साध ली.
हरिद्वार में गंगा से नहर निकालने के प्लान में हरी की पौड़ी को ख़त्म किया जाना था. मालवीय ने इसका बिरोध किया और कोर्ट में याचिका डालकर दुबारा नक्शा बनाने को मजबूर किया जिससे नहर भी निकल जाए और हरि की पौड़ी भी बची रहे. इसीलिए हरि की पौड़ी पर जहाँ घंटाघर बना हुआ हुई उसको मालवीय द्वीप नाम दिया गया.
ऐसे ही जब खजाने की खोज के नामपर जब साँची के स्तूप को तोड़ा जाने लगा था तब उन्होंने उसको रुकवाने में बहुत अहम भूमिका निभाई थी. भारत का प्रमुख शिक्षा केंद्र काशी हिन्दू विश्व विद्यालय उनकी ही देन है. इस संस्थान में उन्होंने प्राचीन भारतीय मूल्यों को बनाए रखते हुए आधुनिक शिक्षा को अपनाने पर विशेष ध्यान दिया था.
शान्तिकुञ्ज वाले "प. श्रीराम शर्मा आचार्य" और "राधेश्याम रामायण" के लेखक कथाबाचक प.राधेश्याम जी ने, मालवीय जी से गुरुदीक्षा ली थी. मैं अगर अपनी बात करूँ तो मैं भी महामना जी के जीवन से इतना ज्यादा प्रभावित रहा हूँ कि - मुझे भी उनका शिष्य कहा जा सकता है. मैं स्वयं भी उनके दिखाए मार्ग पर ही चलना चाहूँगा.
सनातन धर्म व हिन्दू संस्कृति की रक्षा और संवर्धन में मालवीयजी का योगदान अनन्य है. काशी के विश्वनाथ मंदिर और मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि मंदिर के जीर्णोद्धार में भी उनकी प्रमुख भूमिका रही थी. प्राक्रतिक आपदा और साम्प्रदायिक हिंसा के शिकार लोगों को भी उन्होंने हमेशा आगे बढ़कर मदद की. उस महामना को मेरा सादर अभिनन्दन.

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