Tuesday, 2 January 2018

जफ़रनामा : औरंगजेब को गुरु गोविन्द सिंह का पत्र

भारत के इतिहास में दो पत्र बहुत महत्त्वपूर्ण माने जाते है. एक छत्रपति शिवाजी द्वारा लिखा गया पत्र, जो औरंगजेब के समर्थक हिन्दू राजा "जयसिंह" को देशभक्ति सिखाने के लिए लिखा गया था और दुसरा पत्र, गुरु गोविन्द सिंह द्वारा लिखा गया, जो "औरंगजेब" को उसके अत्याचारों की याद दिलाते हुए तथा उसको धिक्कारते हुए लिखा था,
गुरु गोविन्द सिंह का यह पत्र "जफ़रनामा" कहलाता है. जफ़रनामा का अर्थ होता है "जीत की चिट्ठी अर्थात विजय पत्र". अपने पिता, माता तथा अपने चारों पुत्रों के बलिदान के पश्चात 1706 ई. में खिदराना की लड़ाई के पश्चात गुरु गोविंद सिंह ने यह पत्र लिखा था. भाई दया सिंह को यह पत्र (जफरनामा) देकर मुगल बादशाह औरंगजेब के पास भेजा.
गुरु गोविंद सिंह ने इसे मूलत: फ़ारसी में लिखा है. इसको अनेकों विद्वानों ने अलग अलग भाषाओं में अनुवाद किया है जिनमे से बालकृष्ण मुंजतर और जनजीवन जोत सिंह आनंद द्वारा किया गया हिंदी अनुवाद, महेन्द्र सिंह का गुरुमुखी में किया गया अनुवाद तथा सुरेन्द्र जीत सिंह तथा नवतेज सिंह सरन द्वारा अंग्रेजी में किये अनुवाद ज्यादा प्रशिद्ध हैं.
गुरु गोविन्द सिंह के मंतव्य को समझने के लिए उनके पत्र का भावार्थ समझना बहुत आवश्यक है. उनका यह पत्र, कोई संधि पत्र नहीं है,बल्कि यह युद्ध का आह्वान है. इस जफरनामे में फारसी भाषा में कुल 111 काव्यमय पद हैं. इसमें गुरु गोविंद सिंह ने वीरता तथा शौर्य से पूर्ण अपनी लड़ाइयों तथा क्रियाकलापों का रोमांचकारी वर्णन किया है.
इसमें मराठों तथा राजपूतों द्वारा औरंगजेब की करारी हार का वृत्तांत भी शामिल किया गया है. गुरु गोविंद सिंह ने जफरनामा का प्रारंभ ईश्वर के स्मरण से किया है. उन्होंने औरंगज़ेब को सम्बोधित करते हुए लिखा- जिस (ईश्वर) ने तुम्हें बादशाहत दी और उसी ईश्वर ने मुझे धर्म की रक्षा करने की वह शक्ति दी है.कि सच्चाई का झंडा ऊंचा रख सकूँ. .
इसमें खालसा पंथ की स्थापना, आनंदपुर साहिब छोड़ना, फ़तेहगढ़ की घटना, चालीस सिखों की शहीदी, दो गुरु पुत्रों का दीवार में चुनवाया जाना तथा चमकौर के संघर्ष का वर्णन है. साथ ही गुरु गोविंद सिंह ने औरंगजेब को यह चेतावनी भी दी है कि - उन्होंने पंजाब में उसकी (औरंगजेब की) पराजय की पूरी व्यवस्था कर ली है. .
गुरु गोविंद सिंह का ज़फ़रनामा केवल एक पत्र नहीं बल्कि एक वीर का काव्य है, जो युगों युगों तक देशभक्तों को प्रेरणा देता रहेगा. गुरु गोविंद सिंह ने जफ़रनामे में औरंगज़ेब को 'धूर्त', 'फरेबी' और 'मक्कार' बताया. उन्होंने औरंगज़ेब को ललकारते हुए लिखा, 'अगर (तू) कमजोरों पर जुल्म करता है, तो कसम है कि एक दिन आरे से चिरवा दूंगा.
गुरु गोविंद सिंह ने औरंगज़ेब को इतिहास से सीख लेने की सलाह देते हुए लिखा, 'सिकंदर और शेरशाह कहां हैं? आज तैमूर कहां है, बाबर कहां है, हुमायूं कहां है, अकबर कहां है?' 'गुरु गोविंद सिंह ने अपने स्वाभिमान तथा वीरभाव का परिचय देते हुए लिखा, मैं ऐसी आग तेरे पांव के नीचे रखूंगा कि पंजाब में उसे बुझाने तथा तुझे पीने को पानी तक नहीं मिलेगा.
गुरु गोविन्द सिंह ने औरंगजेब को उसके जुल्म की याद दिलाते हुए लिखा, 'जब सभी प्रयास किये गये हों, न्याय का मार्ग अवरुद्ध हो, तब तलवार उठाना सही है तथा युद्ध करना उचित है. क्या हुआ (परवाह नहीं) अगर मेरे चार बच्चे (अजीत सिंह, जुझार सिंह, फतेह सिंह, जोरावर सिंह) मारे गये, पर कुंडली मारे डंसने वाला नाग अभी बाकी है.
जब यह पत्र औरंगजेब को मिला था उस समय वह बहुत बीमार था और उसका अंतिम समय चल रहा था. उसके एक घाव में नासुर हो गया था जो घाव उसको एक विशेष दवा लगे खंजर से "छत्रसाल" ने दिया था. कहा जाता है कि- जफ़रनामे को पढने के बाद "औरंगजेब" को अपने किये गए पापों की याद आने लगी और उनकी शर्मिंदगी से मौत हो गई.

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