Tuesday, 2 January 2018

संत सिपाही / योगी योद्धा, गुरु गोबिंद सिंह

सारी दुनिया जानती है कि- गुरु गोबिंद सिंह जी एक महान योद्धा थे, लेकिन यह बात शायद बहुत कम लोग जानते हैं कि - वे एक महान साहित्यकार भी थे. उनके द्वारा लिखी गई रचनाये, रहती दुनिया तक समस्त मानवजाति का मार्गदर्शन करने वाली हैं. गुरु गोविन्द सिंह जी द्वारा लिखी गई कुछ प्रमुख रचनाओं के नाम इस प्रकार हैं :-
नाममाला :- 12 वर्षकी आयु में की गई रचना,
ज़फ़रनामा : मुगल शासक औरंगजेब के नाम पत्र,
चण्डी चरित्र :- अरूप एवं आदि शक्ति चंडी की स्तुति,
कृष्णावतार :- भागवत पुराण के दशमस्कन्ध पर आधारित,
शास्त्र नाम माला :- अस्त्र-शस्त्रों के रूप में गुरमत का वर्णन,
जाप साहब :- एक निरंकार के गुणवाचक नामों का संकलन,
मार्कंडेय पुराण :- प्राचीन पुराण का संस्कृत से हिंदी में अनुवाद,
अकाल उस्तुता :- अकाल पुरख की अस्तुति,
बचित्र नाटक :- गोबिन्द सिंह की जीवनी और आत्मिक वंशावली से वर्णित रचना,
खालसा महिमा : खालसा की परिभाषा और खालसा के कर्तव्य का विवरण,
गुरु ग्रन्थ साहिब :- विभिन्न गुरुओं, भक्तों एवं सन्तों की वाणियों का संकलन,
दशमग्रन्थ - भाई मणिसिंह द्वारा गुरु गोबिन्द सिंह की रचनाओं की एक जिल्द में प्रस्तुति.
इनके अलावा गोबिन्द गीत, प्रेम प्रबोध, चौबीस अवतार जैसी कुछ अन्य रचनाये
इन प्रमुख ग्रंथों के साथ-साथ ‘श्रीकृष्णावतार कथा’, ‘रासलीला का भक्तिरस ’ एवं ‘युद्धनीति ’जैसे विषयोंपर भी गुरुजी ने लेखन किया है. उन्होंने हिमाचल प्रदेश के नाहन राज्य में यमुना नदी के तट पर ‘पांवटा’ नामक नगर बसाया और पूरे देश से चुने हुए 52 विद्वानों को ‘पांवटा’ में आमंत्रित कर देश का इतिहास एवं प्राचीन ग्रंथों का सुलभ भाषा में लेखन करवाया.
गुरुजी अपने "खालसा पंथ" में संस्कृत के प्राचीन काव्य तथा ग्रंथों के भावार्थ के माध्यम से नई चेतना जागृत करना चाहते थे. इसलिए उन्होंने अमृतराय, हंसराय, कुरेश मंडल एवं अन्य विद्वान कवियों को संस्कृत भाषा के ‘चाणक्यनीति,’ ‘हितोपदेश’ एवं ‘पिंगलसर’ इत्यादि ग्रंथों का अनुवाद करने का कार्य सौंपा और उन्हें सरल भाषा में उपलब्ध करवाया.
गुरु जी जानते थे कि - पौराणिक ग्रंथो के अनुवाद से ही काम नहीं चलेगा, बल्कि उनका गहन अध्ययन भी आवश्यक है. इसलिए गुरुजी ने पांच सिक्खों को ब्रह्मचारी वेश धारण करने का आदेश देकर, संस्कृत भाषा की विधिवत शिक्षा लेने काशी भेजा. यहीं से ‘निर्मल परंपरा’ का आरंभ हुआ. इसके उपरांत ‘निर्मल परंपरा’ तथा संस्था को धर्म प्रसार का कार्य सौंपा.

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