महामानवों का सच्चा इतिहास टेक्स्ट बुक में नहीं लोक कथाओं में ही मिलता है
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इतिहास हमेशा शासको द्वारा लिखवाया जाता है, उसमे हारे हुए महान लोग भी नकार दिए जाते है. ऐसे लोगों का इतिहास लोक कथाओं के माध्यम से ही चलता है. जो लोग महारानी "सती पद्मावती" को काल्पनिक बता रहे हैं उनको पता होना चाहिए कि - महारानी "पद्मावती" और "गोरा-बादल" की गाथा सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जा रही है.
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इतिहास हमेशा शासको द्वारा लिखवाया जाता है, उसमे हारे हुए महान लोग भी नकार दिए जाते है. ऐसे लोगों का इतिहास लोक कथाओं के माध्यम से ही चलता है. जो लोग महारानी "सती पद्मावती" को काल्पनिक बता रहे हैं उनको पता होना चाहिए कि - महारानी "पद्मावती" और "गोरा-बादल" की गाथा सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी सुनाई जा रही है.
राजस्थान की उन लोक गाथाओं और चित्तौड़ में मौजूद साक्ष्यों के आधार पर ही "मलिक मोहम्मद जायसी" ने "पद्मावत" लिखा था. भारत का ज्यादातर इतिहास लोकगाथाओं और महाकाव्यों में ही है. ज्यादा पुरानी बातों में न उलझना चाहते हों, तो आजादी की लड़ाई का इतिहास भी आधिकारिक इतिहास से अलग है.
अगर हम 1857 की क्रान्ति की बात करें तो आधिकारिक इतिहास के अनुसार वो स्वाधीनता संग्राम नहीं बल्कि गदर अथवा सैनिक विद्रोह था. अंग्रेजों, रायबहादुरों, खान बहादुरों द्वारा यही प्रचारित किया गया था. लेकिन क्रांतिकारियों का वास्तविक इतिहास लोक कथाओं के माध्यम से चलता रहा और देश की जनता उसी को मानती है.
स्वातंत्र्यवीर सावरकर ने उन्ही लोकगाथाओं और अंग्रेजों के लिखे इतिहास का अध्यन करके अपना ग्रन्थ "1857 -प्रथम स्वातंत्र्य समर" लिखा था. इस ग्रन्थ को अंग्रेजों ने झूठा घोषित कर प्रतिबंधित कर दिया था और सावरकर को कालापानी जेल भेज दिया था. लेकिन भारत की जनता ने अंग्रेजी इतिहास के बजाय उस ग्रन्थ को सच माना.
मंगल पांडे, बेगम हजरत महल, तात्या टोपे, लक्ष्मीबाई, बाबु कुंवर सिंह, आदि की जो गाथा इतिहास मानी जाती है, वो भी हमें लोककथाओं से ही प्राप्त हुई थी. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई पर लिखी, सुभद्रा कुमारी चौहान की जिस कविता को इतिहास माना जाता है, वो भी एक कविता है और उसका आधार बुंदेलो हरबोलों के द्वारा गाए जाने वाले गीत है.
चन्द्र शेखर आजाद, सरदार भगत सिंह, ठाकुर रोशन सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, आदि भी आधिकारिक इतिहास के अनुसार डाकू, आतंकी, युद्ध अपराधी है कोई क्रांतिकारी नहीं. इतिहास तो यह कहता है कि - गांधी के चरखा चलाने से देश आजाद हो गया था. परन्तु कहानियों और फिल्मो ने उनको क्रांतिकारी साबित किया है.
मेरा सौभाग्य है कि - बाजपुर (उत्तराखंड) में जॉब करते समय, रहते हुए, मुझे सरदार भगत सिंह के छोटे भाई (सरदार राजेन्द्र सिंह) जी के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था. भगत सिंह के भाई तक का कहना था कि- भगत सिंह, आजाद, आदि जैसे प्रशिद्ध क्रांतिकारियों को भी आजाद भारत में गुमनामी में धकेलने का प्रयास किया गया था.
सरदार राजेन्द्र सिंह जी का कहना था कि - क्रांतिकारियों की गाथा इतिहास में लिखने की बात तो छोडिये, बड़े अखबार तक सरकार के डर से कभी क्रांतिकारियों की कहानिया नहीं छापते थे. केवल छोटे स्थानीय अखबारों और लोगों के मुह से सुनाई जाने वाली कहानियों के माध्यम से ही क्रांतिकारियों का इतिहास जन-जन तक पहुँच सका था.
इसके अलावा वे फिल्मकार "मनोज कुमार" को बहुत साधुवाद देते थे जिन्होंने "शहीद" जैसी हिट फिल्म देकर क्रांतिकारियों का सम्मान बढ़ाया था. इसलिए "पद्मावती" के बारे में यह कहना कि - उनका जिक्र किसी ऐतिहासिक किताब में नहीं है इस लिए वे काल्पनिक हैं, सरासर झूठ है. महामानवों का इतिहास लोक कथाओं में ही मिलता है.
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