गीता का जन्म कुरुक्षेत्र के मैदान में स्वंय भगवान् श्रीकृष्ण के श्रीमुख से हुआ था. आज से लगभग 5150 बर्ष पूर्व का समय गीता का जन्म काल माना जाता है. कहा जाता है कि - गीता के जन्म के लगभग 30 बर्ष बाद कलयुग प्रारम्भ हो गया था. भगवान श्री कृष्ण ने "गीता" में कलयुग के मानवों को मुक्ति का मार्ग दिखाया है.
कौरव हमेशा पांडवों को सताते रहे. लाक्षागृह में जलाकर मारने का प्रयास किया, छल से राज्य छीन लिया, पत्नी को बेईज्ज़त करने का प्रयास किया, राज्य वापस करने से इनकार कर दिया. जिसके परिणाम स्वरूप महाभारत का युद्ध होना निश्चित हुआ. मगर युद्ध के मैदान में अपने स्वजनों को देखकर अर्जुन का मन व्याकुल हो गया.
अर्जुन को लगने लगा कि - अपने स्वजनों पर प्रहार कैसे करूँ. तब अर्जुन को इस मोह और भ्रम से निकालने के लिए, अर्जुन के सारथी बने भगवान् श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाकर, पुनः कर्तव्य के मार्ग पर अग्रेसित किया. अर्जुन ने श्रीकृष्ण के सामने अपनी शकाओं को रखा और श्री कृष्ण ने अर्जुन की उन शकाओं का उत्तर देकर निवारण किया.
श्रीकृष्ण और अर्जुन का यह संवाद "गीता" कहलाता है. गीता में जीवन का सार है. इसे पढ़कर मानव को जीवन की राह मिलती है. जिस दिन यह संवाद हुआ था, उस दिन मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष एकादशी थी, इसलिए "गीता" के महत्त्व को समझाने के लिए प्रतिबर्ष मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को "गीता जयंती" महोत्सव मनाया जाता है.
गीता कोई धार्मिक ग्रंथ नहीं है बल्कि यह एक दार्शनिक ग्रंथ है. गीता के अट्ठारह अध्यायों में मनुष्य के सभी धर्म और कर्म का ब्यौरा है. इसमें सतयुग से लेकर कलयुग तक के मनुष्य के कर्म और धर्म के बारे में चर्चा की गई है. हमारे पौराणिक साहित्य में गीता के बचनो को ज्ञान के स्रोत के रूप में देखा जाता है.
"गीता" केवल लाल कपड़े में बांधकर, पूजाघर में रखकर, पूजा करने के लिए नहीं है, बल्कि उसे पढ़कर, उसके संदेशों को आत्मसात करने के लिए है. गीता का चिंतन अज्ञानता को दूरकर, आत्मज्ञान की ओर प्रवृत्त करता है. श्रीमदभगवद् "गीता" के पठन-पाठन, श्रवण और मनन-चिंतन से जीवन में उदारता का उद्भव होता है.
गीता में हमारे सामान्य जीवन की समस्याओं का समाधान भी मिलता है. हम सब कोई भी काम करते हैं तो उसका नतीजा तुरंत चाहते हैं, लेकिन गीता बताती हैं कि - धैर्य के साथ अपना कर्म करो, कार्य के बीच में ही, परिणाम की कल्पनाओं में उलझ कर ढीले मत पड़ जाओ. अगर कर्तव्य का ठीक से पालन करोगे तो परिणाम भी अच्छा ही आएगा.
"गीता" हमें पलायन से पुरुषार्थ की तरफ ले जाती है. यह हमें दुख और सुख दोनों में समदृष्टा होने की सीख देती है. भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि - केवल अपने कर्तव्य का पालन करके ही "मोक्ष" को पाया जा सकता है. इसलिए गीता जयन्ति की इस तिथि (मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी) को मोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है.
गीता के कुछ सन्देश, जो हमारे जीवन को नई प्रेरणा और नई ऊर्जा देते हैं
1. मन को नियंत्रित करना कठिन है, लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है.
2. जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए वह शत्रु के समान कार्य करता है
3. अपने ह्रदय से अज्ञान के संदेह को, आत्म-ज्ञान की तलवार से काटकर, अलग कर दो.
4. मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है. जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है
5. हर काम का फल निश्चित रूप से मिलता है. जैसा कर्म करोगे बैसा ही फल मिलेगा.
6. क्रोध से भ्रम पैदा होता है. भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है. जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है. जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है.
7. इस तरह करें काम वो बोझ न लगे. इतना समर्पित होकर कर्म करें कि -'जो कार्य में निष्क्रियता और निष्क्रियता में कार्य का अहेसास हो.
8. जब आप अपने कार्य में आनंद खोज लेते हैं, तब वह कार्य कार्य नहीं रह जाता है और ऐसा कार्य अपनी पूर्णता को अवश्य प्राप्त करता हैं.
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